भारत ने 09 दिसंबर 2017 को स्वयं को आँखों के संक्रामक रोग ट्रेकोमा से मुक्त घोषित किया. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा द्वारा राष्ट्रीय ट्रेकोमा रिपोर्ट (2014-17) जारी करते हुए की गयी. यह भारत द्वारा स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
ट्रेकोमा रोग आँखों में होने वाला एक एक संक्रामक बैक्टीरिया संक्रमण है. यह आँख की ऊपरी पुतली की अंदरूनी सतह पर सूजन के कारण ग्रैन्यूलेशन द्वारा बनता है. इसके परिणामस्वरूप आँखों की रोशनी जा सकती है तथा अन्य विकार हो सकते हैं.
ट्रेकोमा के बारे में
• ट्रेकोमा आंखों की एक संक्रामक बीमारी है और विश्व स्तर पर संक्रामक अंधत्व का प्रमुख कारण है.
• खराब वातावरण में लगातार रहना, व्यक्तिगत स्वच्छता की कमी तथा प्रदूषित पानी के संपर्क में आखों का रहना, इसके मुख्य कारण हैं.
• यह रोग नेत्रश्लेष्मला अर्थात् आखों की पुतली एवं पलकों के नीचे प्रभावित करता है.
• बार-बार ट्रेकोमा के होने से संक्रमण में बार-बार चोट लग जाती है जिससे आँखों की झिल्ली और पलकों पर बेहद घातक प्रभाव पड़ता है.
• इस रोग के लगातार लंबे समय तक बने रहने से कॉर्निया और अंधापन तक हो सकता है.
• भारत में अब तक इस रोग से हज़ारों लोग प्रतिवर्ष दृष्टिबाधित हो जाते थे, यह छोटे बच्चों को ज्यादा जल्दी अपनी चपेट में लेता है.
• ट्रेकोमा भारत में गुजरात, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों की आबादी को सबसे अधिक प्रभावित कर रहा था.
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राष्ट्रीय ट्रेकोमा सर्वेक्षण रिपोर्ट (2014-17)
सर्वेक्षण के परिणाम बताते हैं कि सक्रिय ट्रैकोमा अब भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या नहीं है. दशकों तक सरकार और विभिन्न पहलों द्वारा किये गये अंतर-क्षेत्रीय हस्तक्षेप और प्रयासों के कारण आंखों की एंटीबायोटिक ड्रॉप्स, व्यक्तिगत स्वच्छता, पर्यावरणीय स्वच्छता, सुरक्षित पानी की उपलब्धता, पुरानी ट्रेकोमा के लिए शल्य चिकित्सा की उपलब्धता संभव हो पाई है.
सर्वेक्षण द्वारा पाया गया कि 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों में ट्रेकोमा को सभी जिलों में समाप्त कर दिया गया है. इसकी व्यापकता केवल 0.7 प्रतिशत बची है जो कि डब्ल्यूएचओ द्वारा परिभाषित संक्रामक ट्रैकोमा के उन्मूलन मानदंड से बहुत कम है. डब्ल्यूएचओ के लक्ष्य के अनुसार, यदि 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में ट्रेकोमा की मौजूदगी 5 प्रतिशत से कम है तो इसे समाप्त घोषित किया जा सकता है.
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