सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के राज्यसभा चुनावों में नोटा का प्रावधान करने संबंधी निर्वाचन आयोग की अधिसूचना पर रोक लगाने से 3 अगस्त, 2017 को इनकार कर दिया. निर्वाचन आयोग ने 01 अगस्त 2017 को गुजरात के राज्यसभा चुनावों में नोटा का प्रावधान करने सम्बन्धी अधिसूचना जारी की थी.
आखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दायर की थी. दायर याचिका के अनुसार इस विकल्प के प्रयोग से जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 और चुनाव संचालन नियम, 1961 का उल्लंघन होता है.
इस मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा और एएम खानिवलकर की पीठ ने की. सुप्रीम कोर्ट ने नोटा का विकल्प प्रदान करने सम्बन्धी अधिसूचना की संवैधानिक वैधता पर विचार करने के बाद अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
गुजरात कांग्रेस के मुख्य सचेतक शैलेश मनुभाई परमार ने सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले में याचिका दायर की थी. न्यायलय में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और हरीन रावल ने निर्वाचन आयोग की अधिसूचना के अमल पर अंतिरम रोक लगाने का आग्रह किया.
न्याय पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि नोटा का प्रावधान भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा. न्यायलय ने इस पर असहमति व्यक्त की.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 के एक फैसले के बाद निर्वाचन आयोग चुनावों में नोटा का प्रावधान मतदाताओं को उपलब्ध करा रहा है. न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से राज्य चुनाव में नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने पर विचार करने हेतु सलाह जारी की थी.
वर्तमान में गुजरात में राज्यसभा से तीन स्थान रिक्त हैं, जिन पर हाल ही में चुनाव होना है. चुनाव मैदान में कांग्रेस के कद्दावर नेता अहमद पटेल सहित चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. नोटा के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका में विधानसभा सचिव द्वारा 1 अगस्त 2017 को जारी परिपत्र निरस्त करने का आग्रह किया गया. परिपत्र के अनुसार राज्यसभा के चुनाव में नोटा का प्रावधान भी उपलब्ध रहेगा.
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