उच्चतम न्यायालय ने 11 मई 2016 को ट्राइ के काल ड्राप संबंधी आदेश कि दूरसंचार कंपनियों के लिए उपभोक्ताओं को मुआवजा देना अनिवार्य बनाने के नियम को खारिज करते हुए कहा कि यह मनमाना, अतर्कसंगत और गैर-पारदर्शी है.
न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और आर एफ नरीमन की खंड पीठ के अनुसार न्यायलय ने इस रद्द नियम को अधिकार क्षेत्र से बाहर, मनमाना, अतर्कसंगत और गैर-पारदर्शी करार दिया.
क्या कहा दूरसंचार परिचालकों ने-
उच्चतम न्यायालय ने भारत के एकीकृत दूरसंचार सेवा प्रदाताओं और वोडाफोन, भारती एयरटेल तथा रिलायंस जैसे 21 दूरसंचार परिचालकों के संगठन सीओएआई द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया.
याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसने ट्राइ के इस साल जनवरी से काल ड्राप के संबंध में उपभोक्ताओं को मुआवजा देना अनिवार्य बनाने के फैसले को उचित ठहराया था.
दूरसचांर कंपनियों ने इससे पहले उच्चतम न्यायालय से कहा था कि पूरा क्षेत्र भारी-भरकम कर्ज से दबा है और उन्हें स्पेक्ट्रम के लिए बड़ी राशि का भुगतान करना है.
काल ड्राप को बिल्कुल बर्दाश्त न करने का नियम उन पर लागू नहीं किया जाना चाहिए.
कंपनियों ने भारतीय दूरसंचार प्राधिकार (ट्राइ) के इस आरोप को भी खारिज किया कि वे भारी-भरकम मुनाफा कमाती हैं.
दूरसंचार कपंनियों ने कहा कि उन्होंने बुनियादी ढांचे में काफी निवेश किया हुआ है.
ट्राइ ने न्यायालय से कहा था कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हेतु वह काल ड्राप के लिए दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा क्योंकि सेवा प्रदाता उन्हें मुआवजा देने के लिए तैयार नहीं हैं.
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