जलवायु परिवर्तन के कारण यूरोप में हो रहे प्रतिकूल मौसम से इस सदी के अंत तक प्रतिवर्ष डेढ़ लाख लोगों की मौत की संभावना व्यक्त की गयी है. वर्ष 2100 तक यदि गर्मी इसी प्रकार बढ़ती रही तो यूरोप में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख लोगों की मृत्यु होगी.
लैंसेंट प्लेनेटरी हेल्थ जर्नल में अगस्त 2017 के पहले सप्ताह में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार गर्मी से मरने वाले लोगों का आंकड़ा बढ़कर 50 गुना अधिक हो जायेगा. वैज्ञानिकों ने शोधों के निष्कर्ष के आधार पर यह अनुमान व्यक्त किया है.
मुख्य बिंदु
• वैज्ञानिकों के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गंभीर उपाय नहीं किए गए तो प्रतिकूल मौसम से होने वाली मौतों से सामाजिक-आर्थिक बोझ बढ़ेगा और इससे यूरोप का प्रत्येक दूसरा व्यक्ति प्रभावित होगा.
• सबसे अधिक खतरा ग्रीन हाऊस गैसों और अन्य मौसमी बीमारियों से होगा.
• वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय नहीं किए गए तो बेहद गर्म और ठंडे मौसम, आग लगने की घटनाओं, सूखा और अकाल, तटीय क्षेत्रों में पानी का जल स्तर बढ़ने के कारण लोगों की मौतों का आंकड़ा बढ़ेगा.
• वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 1981 से 2010 तक यूरोप में मौसम संबंधी बीमारियों से तीन हजार लोगों की मौत हो गई थी और वर्ष 2071 से 2100 तक यह आंकड़ा बढ़ कर 1,52,000 हो जाएगा.
• जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बन कर उभरेगा और यही लोगों की मृत्यु का कारण भी बनेगा.
शोधकर्ता जोवानी फ़ॉर्जिएरी द्वारा मीडिया को दी गयी जानकारी में कहा गया कि यदि ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर आपात कदम नहीं उठाए गए तो इस सदी के अंत तक 35 करोड़ यूरोपियों पर हर साल आने वाले प्राकृतिक आपदा का ख़तरा पैदा हो जाएगा.
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