नासा के वैज्ञानिकों ने कहा की अंटार्कटिक के मैरी बाइर्ड लैंड के नीचे मेंटल प्लम नामक एक भूतापीय (जीओथर्मल) गर्म स्रोत के कारण बर्फ की सतह पिघल रही है. इसके परिणाम स्वरूप नदियां और झीलें बन रही हैं और जलस्तर बढ़ रहा है.
नासा के वैज्ञानिकों द्वारा इस पर अध्ययन करने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि यहां गर्म स्रोत मौजूद है. वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परितर्वन में तेजी आने के साथ बर्फ की सतह के पिघलने की दर बढ़ी है. इस अस्थिरता के कारणों का भी पता इस गर्म स्रोत से चल सकता है.
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नासा के मुताबिक, बर्फ की सतह की स्थिरता उसके नीचे मौजूद पानी की चिकनाहट से संबंधित होती है और इसी के कारण ग्लेशियरों को आसानी से खिसकने में मदद मिलती है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पश्चिमी अंटार्कटिक में गर्मी के स्रोत का पता चलने और इससे भविष्य में पिघलने वाली बर्फ का पता चलने से यह अनुमान लगाने में मदद मिलेगी कि बर्फ पिघलने की दर क्या होगी और भविष्य में इससे सागरों में जलस्तर किस दर से बढ़ेगा.
अंटार्कटिक का आधार नदियों और झीलों के साथ है, जिसमें सबसे बड़ा आकार एरी झील का है. यहां की ज्यादातर झीलें तेजी से पानी से भरती और खाली होती हैं, जिसके कारण उससे हजारों फीट ऊपर मौजूद बर्फ की सतह छह मीटर तक बढ़ती या घटती है.
लगभग 30 साल पहले, अमेरिका के कोलोराडो डेंवेर यूनिवर्सिटी के एक वैज्ञानिक ने यह मत दिया था कि मैरी बाइर्ड लैंड के नीचे एक मैंटल प्लम से क्षेत्रीय ज्वालामुखी की गतिविधि को समझा जा सकता है. हाल ही में एक भूंकपीय इमेजिंग से इस अवधारणा को समर्थन मिला.
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