सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक सुधार लाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार हेतु इसरो के जाने माने वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय समिति का गठन किया है.
इस समिति का गठन इस बात को ध्यान में रखकर किया गया कि विभिन्न सदस्य शिक्षा के विविध क्षेत्रों से जुड़ी विशेषज्ञता लेकर आयेंगे. यह समिति देश की विविधता भी दिखाती है क्योंकि सदस्य विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों से आते हैं.
समिति के सदस्य
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार प्रख्यात शिक्षाविद् और मुम्बई के एसएनबीटी विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. वसुधा कामत, केरल के कोट्टयम और एर्नाकुलम जिलों में सौ प्रतिशत साक्षरता दर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले के जे अल्फांसे और अमेरिका में गणित की प्राध्यापक डॉ. मंजु भार्गव, मध्यप्रदेश में महू स्थित बाबा साहब अम्बेडकर समाज विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रामशंकर कुरील, अमरकंटक स्थित जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. टी वी कट्टीमणि, सर्वशिक्षा अभियान को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले उत्तर प्रदेश हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट एग्जामिनेशन बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष कृष्णमोहन त्रिपाठी, गुवाहाटी विश्वविद्यालय में फारसी के प्राध्यापक डॉ. मजहर आसिफ और कर्नाटक के नालेज कमीशन से जुड़े डॉ. एम के श्रीधर को समिति का सदस्य बनाया गया है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति
भारतीय संविधान के चौथे भाग में उल्लिखित नीति निदेशक तत्वों में कहा गया है कि प्राथमिक स्तर तक के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये. वर्ष 1948 में डॉ॰ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के गठन के साथ ही भारत में शिक्षा-प्रणाली को व्यवस्थित करने का काम शुरू हो गया था. वर्ष 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग की अनुशंशाओं के आधार पर 1968 में शिक्षा नीति पर एक प्रस्ताव प्रकाशित किया गया जिसमें ‘राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध, चरित्रवान तथा कार्यकुशल’युवक-युवतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया. मई 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, जो अब तक कार्यरत है.
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