भारतीय वैज्ञानिकों ने डेंगू मच्छरों पर नियंत्रण हेतु नैनो कीटनाशक बनाया

भारतीय वैज्ञानिकों ने अब नीम यूरिया नैनो-इमलशन नामक नैनो-कीटनाशक बनाया है, जो डेंगू फैलाने वाले मच्छरों से निजात दिला सकता है.

Nov 17, 2017, 10:25 IST
Indian scientists developed Nano Pesticides to control dengue mosquitoes
Indian scientists developed Nano Pesticides to control dengue mosquitoes

भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में डेंगू तथा मस्तिष्क ज्वर फैलाने वाले मच्छरों पर काबू पाने में सफलता हासिल की. उन्होंने एक ऐसा कीटनाशक बनाया है जो इन्हें फैलने से रोकता है. भारत की विज्ञान पत्रिका इंडिया साइंस वायर में प्रकाशित लेख के अनुसार भारतीय वैज्ञानिकों ने अब नीम यूरिया नैनो-इमलशन (एनयूएनई) नामक नैनो-कीटनाशक बनाया है, जो डेंगू और मस्तिष्क ज्वर फैलाने वाले मच्छरों से निजात दिला सकता है.

पत्रिका इंडिया साइंस वायर में शुभ्रता मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु के वेल्लोर में स्थित वीआईटी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया यह नैनो-कीटनाशक डेंगू और मस्तिष्क ज्वर (जापानी एन्सेफलाइटिस) फैलाने वाले मच्छरों क्रमशः एडीस एजिप्टी और क्यूलेक्स ट्रायटेनियरहिंचस की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

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प्रकाशित शोध के मुख्य बिंदु


•    वैज्ञानिकों ने नीम के तेल, ट्वीन-20 नामक इमल्शीफायर और यूरिया के मिश्रण से माइक्रोफ्लुइडाइजेशन नैनो विधि से करीब 19.3 नैनो मीटर के औसत नैनो कणों वाला नीम यूरिया इमलशन तैयार किया है.

•    वैज्ञानिकों ने मदुरै स्थित आईसीएमआर के चिकित्सा कीट विज्ञान अनुसंधान केंद्र से लिए गए एडीस एजिप्टी और क्यूलेक्स मच्छरों के लगभग 50 ताजा अण्डों और 25 लार्वाओं पर एनयूएनई की दो मि.ग्रा. प्रति लीटर से लेकर 200 मि.ग्रा. प्रति लीटर की विभिन्न सांद्रता के प्रभाव का ऊतकीय तथा जैव-रासायनिक अध्ययन किया.


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•    एनयूएनई नैनो-कीटनाशक में मच्छरों के अण्डों और लार्वाओं की वृद्धि रोकने की अद्भुत क्षमता पाई गई है. अध्ययन में एनयूएनई का घातक प्रभाव इन मच्छरों के लार्वओं की आंतों में स्पष्ट रूप से देखने को मिला है और यह अण्डनाशी और लार्वानाशी पाया गया.

•    सामान्य संश्लेषी कीटनाशकों का प्रभाव सतही स्तर तक ही पड़ता है, लेकिन नैनो प्रवृत्ति होने के कारण एनयूएनई का प्रभाव मच्छरों की कोशिकाओं से लेकर एन्जाइम स्तर तक पड़ता है.

•    यह मच्छरों के लार्वा की कोशिकाओं में मिलने वाले प्रोटीन, लिपिड, कार्बोहाइड्रेट और एन्जाइमों की मात्रा को कम कर देता है, जिससे मच्छरों के प्रजनन के साथ-साथ लार्वा से मच्छर बनने और उनके उड़ने जैसे गुणों में कमी आती है.

शोधकर्ताओं की टीम में प्रभाकर मिश्रा, मेरिलिन केज़िया सेमुएल, रुचिश्या रेड्डी, बृजकिशोर त्यागी, अमिताभ मुखर्जी और नटराजन चंद्रशेखरन शामिल थे. उनका यह शोध इससे पहले स्प्रिंजर के एन्वायरन्मेंटल साइंस ऐंड पाल्युशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
(स्रोत: इंडिया साइंस वायर)

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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