नासा और नेशनल ओसनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वैज्ञानिकों ने घोषणा किया की ओजोन में वर्ष 1988 के बाद सबसे छोटा छेद बना हैं. अंटार्कटिका क्षेत्र में हर साल बनने वाले ओजोन छेद में इस साल सितंबर में 1988 के बाद सबसे ज्यादा घटाव पाया गया है.
गर्म वायु के कारण प्रत्येक साल सितंबर में किए जाने वाली जांच में अंटार्कटिक क्षेत्र के ऊपर ओजोन परत का छेद वर्ष 1988 के बाद सबसे छोटा पा गया है. नासा के अनुसार, 11 सितंबर 2017 को ओजोन छेद में सबसे ज्यादा विस्तार हुआ, जोकि आकार में तकरीबन अमेरिका के क्षेत्र का ढाई गुना यानी 76 लाख वर्गमील था. इसके बाद सितंबर से अक्टूबर 2017 तक ये छोटा होता रहा.
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इससे संबंधित मुख्य तथ्य:
• इस साल ओजोन छेद में इस परिवर्तन के पीछे वैज्ञानिक अंटार्कटिक भंवर की अस्थिरता और ज्यादा गर्मी को मानते हैं.
• अंटार्कटिक क्षेत्र के वायुमंडल में दक्षिणावर्त बनने वाले समतापमंडलीय निम्न दबाव के कारण उत्पन्न होती है.
• वर्ष 2016 में ओजोन छेद सबसे बड़ा 89 लाख वर्गमील का पाया गया था, जोकि वर्ष 2015 में 20 लाख वर्गमील से छोटा था. सबसे पहले ओजोन छेद का पता वर्ष 1985 में लगाया गया था.
• दाक्षिणी गोलार्ध में सिंतबर से दिसंबर के दौरान शीत ऋतु के बाद सूर्य की किरणों की वापसी से जो उत्प्रेरक प्रभाव पड़ता है, उससे अंटार्कटिक क्षेत्र में ओजोन छेद का निर्माण होता है.
• धरती से 25 मील ऊपर समताप मंडल में ओजोन परत है, जोकि सनस्क्रीन की तरह काम करती है और पृथ्वी को सूर्य की अल्ट्रावायोलेट किरणों के हानिकारक प्रभावों से बचाती है.
• अल्ट्रावायोलेट किरणों के विकरण से लोगों को कैंसर, मोतियाबिंद जैसे रोगों का खतरा रहता है. साथ ही इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी नष्ट हो सकती है.
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