राज्य सभा ने 11 मई 2016 को दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता विधेयक 2016 पारित किया. इस विधेयक को परिवर्तनकारी विधेयक के रूप में देखा जा रहा है जिससे विश्व बैंक के व्यापार सूचकांक में भारत की रैंकिंग में सुधार करने में मदद मिलेगी.लोकसभा द्वारा इस विधेयक को 5 मई 2016 को ही पारित किया जा चुका है.
यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशों पर आधारित है, जिसे भूपेन्द्र यादव की अध्यक्षता में बनाई गयी दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता 2015 के आधार पर तैयार किया गया. समिति ने 28 अप्रैल 2016 को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी.
विधेयक के मुख्य बिंदु
• दिवालिया रेसोल्यूशन: इसके तहत किसी व्यक्ति अथवा कम्पनी के दिवाला होने की स्थिति में निश्चित समय में हल निकाला जायेगा. इसके लिए 180 दिन की अवधि का समय तय किया जायेगा. यदि दिवालियापन हल नहीं होता तो संपत्ति को बेचकर कर्ज चुकाया जा सकता है.
• दिवालिया प्रोफेशनल: इसमें पेशेवर लाइसेंसधारी अधिकारियों द्वारा जांच की जाएगी. यह अधिकारी पेशेवर एजेंसी के सदस्य होंगे. वे संपत्ति के बराबर बांड प्रस्तुत करेंगे.
• सूचना उपयोगिता: इसका प्रयोग दिवाला रेसोल्यूशन की जानकारी एकत्रित करने, जानकारी सम्बंधित अधिकारियों से साझा करने में किया जायेगा.
• एनसीएलटी: राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) कम्पनियों के लिए दिवाला स्थिति में निर्णय लेगी.
• डीआरटी: ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) व्यक्तिगत दिवाला मामलों को हल करेगा.
• दिवालिया और दिवालियापन बोर्ड: भारतीय दिवाला और दिवालियापन बोर्ड इसकी नियामक संस्था होगी.
संयुक्त संसदीय समिति द्वारा की गयी सिफारिशों की है और सरकार द्वारा स्वीकार किये गये सुझावों में निम्न भी शामिल हैं:
• दिवाला विधेयक सीमा पार दिवाला - इसके अनुसार कोई व्यक्ति जिसपर दिवाला होने का आरोप लगा हो लेकिन वह सीमापार रहता हो. समिति की सिफारिश के अनुसार इसके तहत दूसरे देशों के साथ नए सिरे से नीतियों का निर्धारण किया जायेगा.
• सूचना संग्रह करना: किसी व्यक्ति के पास सूचना को मिटाने का अधिकार नहीं होगा, वह केवल इसमें सुधार कर सकता है अथवा इसे ठीक कर सकता है.
• दिवालियापन फंड बनाने का उद्देश्य – योगदानकर्ताओं को अपना अंश निकालने की सुविधा प्रदान की जाएगी.
• परिसमापन के दौरान कर्मचारी लाभ – कामगार को दिए जाने वाले किसी भी भुगतान को इस फण्ड से बाहर रखा जाना चाहिए. यह राशि परिसमापन श्रेणी से बाहर रखी जानी चाहिए.
• सूचना उपयोगिता - परिचालन लेनदारों में समिति के विचार-विमर्श का एक हिस्सा होना चाहिए.
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