भारतीय रिज़र्व बैंक ने पारंपरिक बैंको में ‘इस्लामिक विंडो ‘ को आरम्भ करने की सलाह दी है। इस्लामिक विंडो , इस्लामिक बैंकिंग का एक हिस्सा है। इससे भारत में इस्लामिक बैंकिंग या शरिया बैंकिंग या ब्याज मुक्त बैंकिंग की क्रमिक पहल होगी । केंद्र सरकार और आर.बी .आई. दोनो भारत में इस्लामिक बैंकिंग की संभावनाओं का समन्वेषण कर रहे है।
इस्लामिक बैंकिंग को शुरू करने की सिफारिश की मुख्य वजह समाज के उन तबकों का वित्तीय समावेशण करना है जो अब तक धार्मिक कारणों से हाशिये पर रह गए है। रिज़र्व बैंक का प्रस्ताव इस्लामिक बैंन्किंग के तकनीकी , कानूनी ,तथा नियामक पहलूवो की व्यावहारिकता के सर्वेक्षण की सिफारिशों पर आधारित है। ये सर्वेक्षण आरबीआई के एकअंतर विभागीय वर्ग (IDG) ने किया ।हमने इस पूरे मुद्दे की व्यापक समझ विकसित करने के लिए इस पर विस्तार पूर्वक चर्चा की है। इसी क्रम में सबसे पहले इस्लामिक बैंकिंग की संकल्पना को समझना जरूरी है।
इस्लामिक बैंकिंग क्या है ?
इस्लामिक बैंकिंग की व्यवस्था इस्लाम के क़ानून, जिसे शरिया भी कहा जाता है, पर आधारित है। इस्लामिक बैंकिंग में बैंक इस्लामिक अर्थशात्र के सिद्दांतो से संचालित होते है। इस्लामिक बैंकिंग के दो मुख्य सिद्धांत है: लाभ और हानि की हिस्सेदारी तथा ब्याज के भुगतान और संग्रह पर रोक। इसीलिए इस्लामिक बैंकिंग में वित्तीय सौदा का सांस्कृतिक पहलू , वित्तीय सौदे के अन्य तरीको से अलग एक नैतिक निवेश है। उदाहरण के लिए द्यूत , शराब, पोर्क, आदि चीजो मई निवेश पूर्णतया प्रतिबंधित है।
इस्लामिक बैंकिंग के सिद्धांत शरिया कानून का पालन करते है जो हदीथ तथा कुरान , और पैगम्बर मुहम्मद साहब के प्रवचनो तथा कार्यो पर आधारित है। जहां पर अधिक सलाह की जरूरत पड़ती है इस्लामिक बैंकर्स इस्लाम के विद्वानों से विमर्श करते हैं और अपनी स्वतंत्र तर्क क्षमता का इस्तेमाल करते हैं। ये सब करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उनके विचार कुरान के मौलिक सिद्धान्तो से विक्षेपित ना हो।
यह जानना रुचिकर है कि इस्लामिक बैंक बिना ब्याज लगाए लाभ अर्जित करते हैं। इस्लामिक बैंकिंग ने अपना एक तंत्र विकसित किया है जो बिना ब्याज लगाए लाभ अर्जित करता है। इस्लामिक बैंक इक्विटी भागीदारी का इस्तेमाल करते है।इस विधि में बैंक किसी व्यवसाय को बिना ब्याज के लोन देता है, व्यवसायी बिना ब्याज के लोन वापिस करता है लेकिन बैंक व्यापर में हुए लाभ से अपना तय हिस्सा लेता है। अगर व्यवसाय असफल हो जाता है या व्यवसाय में लाभ नहीं होता तो बैंक को भी कोई लाभ नहीं होता। इस्लामिक बैंकिंग में बचत खातो के लिए अलग विधि है। यहाँ पर बचत खाते दो तरह के होते है। पहले में ग्राहक अपना धन बैंक में जमा करता है और बैंक को इस शर्त पर अपना धन उपयोग करने देता है कि बैंक उसका जमा किया धन ज्यो का त्यों लौटा देगा। बैंक को भी कोई ब्याज चुकाना नहीं पड़ता है, कुछ बैंक ग्राहक के धन से हुए मुनाफे का कुछ हिस्सा ग्राहक को लिटाते भी है। दूसरे खाते में ग्राहक बैंक को अपना धन निवेश करने की छूट देता है। और निवेश किये हुए व्यवसाय के प्रदर्शन के हिसाब से वह अपना मुनाफे में अपना हिस्सा लेता है।
इस्लामिक बैंक मिस्र Mit Ghmar में 1963 में स्थापित किया गया। यह बैंक लाभ हिस्सेदारी के सिद्दांत पर शुरू हुआ था। इस बैंक ने व्यापार में लोन दिए तथा व्यापार में हुए लाभ में हिस्सेदारी से इसने मुनाफा कमाया। लोन देने में जोखिम से बचने के लिए केवल 40 % आवेदनों को ही स्वीकार किआ गया। इसीलिए इसकी चूक की दर शून्य रही
इस्लामिक बैंकिंग की शब्दावली रिबा: रिबा का मतलब ब्याज से होता है। यह शरिया के नियमो के तहत प्रतिबंधित है क्योकि शरिया में इसे शोषक कहा गया है। रिबा की अलग अलग व्याख्याए की जा सकती है परन्तु क्योकि यह एक ब्याज है इसीलिए यह प्रतिबंधित है। हरम / हलाल: यह नैतिक निवेश का एक कोड है। इसका कोड का इस्तेमाल ब्याज मुक्त वित्तीय क्रियाकलापो में किया जाता है।इसका निवेशो की प्राथमिकता निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए जरूरत संबधी चीजो में निवेश जैसे की खाना, कपडे ,स्वास्थ्य तथा शिक्षा, को प्राथमिकता दी जाती है। घरार : यह एक अरबी शब्द है,इसका सम्बन्ध अनिश्चितता ,जोखिम तथा धोखे से है। यह भी कहा जा सकता है की इसका सम्बन्ध जुवे से भी है जो हर तरह से प्रतिबंधित है। घरार का इस्तेमाल निवेशो की वैधता जानने के लिए किया जाता है। जकत: इस्लामिक बैंकिंग में यह एक मत्वपूर्ण साधन है।इसका इस्तेमाल धन के पुनर्विभाजन करने में, एक अनिवार्य लेवी की तरह किया जाता है। तकाफुल: यह एक तरह का इस्लामिक बीमा है। बैंक के सभी सदस्य हानि तथा क्षति के समय के लिए एक दुसरे की सुरक्षा के लिए गारंटी देते है। तकाफुल ब्रांडेड बीमा शरिया पर आधारित है। यह बताता है की कैसे एक दुसरे की सुरक्षा तथा सहयोग करना एक निजी जिम्मेदारी है। शिरका: शरिया कानून में शिरका दो भागो में विभाजित है, 1. शिरकत-उल –मिल्क : यहाँ विभिन्न गुटों के बीच संयुक्त स्वामित्व का सिद्धांत है। जहा कई गुटों ने किसी सम्पत्ती पर अपनी अपनी पूंजी निवेश की होती है। 2. शिरकत-उल-अकद : यह एक साझेदारी अनुबंध है। यह एक संयुक्त वाणिज्यिक उद्यम है। मिसिर: मिसिर हरम गितिविधियो जैसे कि शराब,वैश्यावृत्त्ति आदि, पर लगाया गया प्रतिबन्ध है। इस्लामिक बैंको पर ऐसी किसी भी चीज से कोई भी सम्बन्ध रखने का प्रतिबन्ध है। मुशरक: यह एक बैंक और ग्राहक का संयुक्त निवेश है। जहा पे दोनों किसी चीज में मिल के निवेश करते है तथा लाभ और हानि पहले से ही निर्धारित की जाती है। इजारा: इजारा के तहत बैंक ग्राहक हेतु कुछ संपत्ति खरीदता है। और सम्पत्ती का मालिकाना हक ग्राहक को निर्धारित समय के बाद दिया जाता है। यहाँ साधन उन ग्राहकों के लिए बनाया गया है जो इस्लामिक बैंको से ऋण ले के कुछ खरीदना चाहते है। |
वैश्विक परिपेक्ष्य में इस्लामिक बैंकिंग
वर्ल्ड बैंक ने 2015 में अपनी एक रिपोर्ट जारी की इस रिपोर्ट में ये कहा गया कि शरियत के अनुरूप चलने वाले बैंको तथा अन्य वितीय संस्थानों की कुल वैश्विक वित्तीय संपत्ति US $2 trillion है। जिसमे पूंजी बाजार, बैंकिंग और गैर बैंकिंग , बीमा तथा मुद्रा बाजार शामिल है। इस्लामिक वित्तीय उद्योग की विकास दर 10-12% प्रति वर्ष है। वर्ल्ड बैंक की इस रिपोर्ट के अनुसार कई देशी में इस्लामिक संपत्ति की विकास दर पारंपरिक बैंको की संपत्ति की विकास दर से ज्यादा है। गैर मुस्लिम देशो , जैसे लक्साम्बर्ग, यूं ।के।, हाँगकाँग तथा दक्षिण अफ्रीका में भी इस्लामिक वित्त में बढ़ोत्तरी हुयी है। दुनियाभर में इस बात पे गौरदिया गया है कि इस्लामिक वित्त उद्योग एक वित्तीय विकास के लिए एक प्रभावी साधन के रूप में उभरा है। बड़े वित्तीय बाजार इस बात के सबूतों पर गौर कर रहे है जो यह बताते है की इस्लामिक वित्त वैश्विक वित्त प्रणाली की मुख्यधारा का हिस्सा बन चुका है।
भारत में इस्लामिक बैंकिंग
रघुराम राजन के नेतृत्व में एक समिति ने 2008 में सरकार को एक रिपोर्ट सौपी। जिसमे समिति ने शरिया बैंकिंग या इस्लामिक बैंकिंग का जिक्र किये बगैर सुझाव दिया था कि भारत में ब्याज मुक्त बैंकिंग की जरूरत है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में ब्याज मुक्त बैंकिंग उद्पादो की गैरमौजूदगी बहुत सारे भारतीयों को, जिसमे वंचित लोग भी शामिल है, उनकी आस्था के कारण, बैंकिंग उद्पादों तथा सेवाओं से दूर रखती है। और यह गैरमौजूदगी बहुत सारे भारतीयों को अन्य देशो जहा इस्लामिक बैंकिंग है,की पूंजी से भी दूर रखती है।। इस रिपोर्ट पर गौर कर के केरल सरकार ने एक इस्लामिक वित्तीय संस्थान खोला, परन्तु सरकार के इस कदम को उच्च न्यायालय में चुनौती मिली।
के इस्मालिक बैंकिंग विचार को दीपक मोहंती की अध्यक्षता में गठित एक समिति, Medium-Term Path for Financial Inclusion”, ने अपना समर्थन दिया। इस समिति ने भारत के पारंपरिक बांको में ब्याज मुक्त विंडो के विचार को समर्थन दिया। दूसरी तरफ वर्तमान सरकार भी इस्लामिक बैंकिंग के विचार के विनियोग को ले कर के प्रवत्त है। भारतीय स्टेट बैंक ने २०१४ में शरिया के अनुरूप एक म्यूचुअल फंड जारी किया। यहाँ भारत में पहला ऐसा इस्लामिक वित्तीय साधन था जिसे भारत के किसी सरकारी बैंक ने लागू किया हो।
भारत में इस्लामिक बैंकिंग क्यों ?
भारत में एक ठोस मुस्लिम जनसंख्या है। यह भारत में इस्लामिक बैंकिंग के विकास का प्रमुख कारण बन सकती है। और इस्लामिक बैंकिंग इसकी जरूरत भी है। 2011 तक, भारत में कमसे कम 180 मिलियन मुस्लिम आबादी थी। और यहाँ आबादी 2050 तक 310 मिलियन होने की उम्मीद है। इतनी आबादी भारत को दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश बना देगी।
और भारत में अधिकतर मुस्लिम स्वरोजगार से जुड़े हुए है और उनके अधिकतर निवेश बैंको द्वारा नही किये जाते। आज की तारिख में भारत के मुसलमानों के वितीय समावेश को बढ़ावा देने की जरूरत है। जो कर पाने में अब तक भारतीय बैंक प्रणाली तथा वित्तीय प्रणाली असमर्थ रही है। क्योकि अभी तक इस्लामिक वित्तीय सिद्धान्तो को शामिल नहीं किया गया है। इसीलिए भारत में मध्य पूर्व तथा यूरोप की तरह के इस्लामिक उत्पादोंका अभाव है।
2006 में सच्चर समिति की एक रिपोर्ट में इस्लामिक वित्त की भारत में जरूरत पर बल दिया गया था। इस रिपोर्ट कहा गया था कि भारत में सरकारी बैंको में मुस्लिमो के केवल 12% खाते है तथा निजी बैंको में केवल 11.3 % खाते है। जो की उनकी जनसँख्या 13.4% से कम है, इसीलिए भारत में इस्लामिक बैंकिंग की जरूरत है।
फिर क्या दिक्कतें हैं?
भारत संवैधानिक रूप से एक धर्म निर्पेक्ष देश है। इसीलिए किसी भी धर्म के नाम किसी वित्तीय संस्थान को खोलने पर दुसरे धार्मिक गुटों को समस्या हो सकती है।इसके अलावा, कुछ राजनीतिक दलों ने कहा है कि वो भारत में इस्लामिक बैंक की किसी भी पहल का विरोध करेंगे। दूसरा कारण यह है की भारत में ऐसा कार्य बल बहुत कम है जिसे इस्लामिक बैंकिंग का पर्याप्त ज्ञान हो।
क्योकि इस्लामिक बैंक शरिया के ब्याज न देने वाले कानून पर आधारित है। इसीलिए इस्लामिक बैंक को भारत में लागू करने के लिये भारत के विनियामक नियमो को पूरी तरह से बदलना पढ़ेगा।
भारत में इस्लामिक बैंकिंग के विकास को ले कर के सबसे प्रमुख कारण यह भी है कि भारत में कानूनी, विनियामक ,तथा शाषन संबंधी व्यापक बदलाव करने पढेंगे। आर बी आई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने भारत में इस्लामिक बैंकिंग को लागू करने के विचार पर सवाल उठाये थे कि भारत के वर्तमान के नियम इस्लामिक बैंकिंग को लागू करने की अनुमती नहीं देते है।
भारत में बैंकिंग प्राचीन Negotiable Instruments Act of 1881, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया एक्ट 1934, तथा बैंकिंग रेगूलेशन एक्ट 1949 के द्वारा शाषित है, और ये सभी नियम इस्लामिक नियमो के विपरीत काम करते है। उदहारण के तौर पर बैंकिंग रेगूलेशन एक्ट 1949 की धारा 21 के तहत बैंक में जमा राशि पर ब्याज देना अनिवार्य है। लेकिन यह रिबा के सिद्धांत के हिसाब से इस्लामिक बैंकिंग में पूर्णतया प्रतिबंधित है।
बैंकिंग रेगूलेशन एक्ट की धारा 8 के तहत बैंक सामान की खरीददारी नहीं कर सकते। जब की शरिया के अनुरूप मुराबहा के अंतर्गत बैंक ये काम कर सकते है। यह इस बात को दर्शाता है की भारत के नियम शरिया के बैंकिंग नियमो के एकदम विपरीत है।
भारत में इस्लामिक बैंकिंग लागू करने के विचार की एक और आलोचना सुब्रमणियाम स्वामी के द्वारा की गई है। स्वामी ने इस विचार पर संदेह व्यक्त करते हुए दावा किया कि इस्लामिक बैंकिंग भारत में मध्य ऐशिया से आपत्ति जनक वित्त पोषण को बढ़ावा देगा। साथ ही साथ यह आतंकी संगठनों को पैसा मुहय्या कराने के अवसर भी उपलब्ध करवाएगा। उन्होंने यह भी दावा किया की इस्लामिक बैंकिंग से भारत में धर्म परिवर्तन के मामले भी बढ़ेंगे।
अब क्या ?
इस्लामिक बैंकिंग को भारत में लागू करने से इस्लाम में धर्म परिवर्तन के मामले बढ़ेंगे यह दावा अपने आप में संदेहजनक है क्योकि सिंगापूर , मलेशिया जिसे देशो में इस्लामिक बैंकिंग होने से ऐसे मामले कभी संज्ञान में नहीं आये है। और यह संदेह कि इस्लामिक बैंक आतंकी संगठनो को पैसा मुहैय्या करायेंगे भी अपने आप में त्रुटिपूर्ण है क्योकि भारत में जो भी पैसा बैंको को आवंटित किया जाता है वह आर बी आई की निगरानी में किया जाता है। इसीलिए पैसे के ऐसे दुरपयोग के अवसर पैदा होने के अवसर नगण्य है। इस्लामिक बैंक भारत की धर्मनिर्पेक्षिता के लिए समस्या खडी करेंगे ये बात गलत मालूम पढ़ती है क्योकि इस्लामिक बैंकिंग एक समविशी कदम होगा जो अपने साथ निचले तबके के सभी लोगो को जोड़ेगा। और भारतीय धर्मनिर्पेक्षिता एक समावेशी विचार है। अत: यह कहा जा सकता है की इस्लामिक बैंकिंग भारतीय धर्मनिर्पेक्षिता के लिए कोई खतरा नहीं है। हमने इस्लामिक बैंकिंग से जुड़े सभी पहलूवो की चर्चा की। अंत में यह कहना तर्कसंगत लगता है कि इस्लामिक बैंकिंग का विचार भारत में एक स्वागत योग्य कदम होना चाहिए। और भारतीय सरकार भी वितीय समावेश के पक्ष में अपने विचार रख चुकी है। और भारतीय जनसँख्या के एक बड़े हिस्से को वितीय समावेश की जरूरत है और इस्लामिक बैंकिंग उस जरूरत को पूरी करने में काफी अहम भूमिका निभा सकता है।
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