इलाहबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश डॉ. डीवाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की खंडपीठ ने 14 अक्टूबर 2015 को लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला देते हुए नियुक्ति को संवैधानिक प्रावधान के खिलाफ, अवैध और नियमों के विपरीत ठहराया है. साथ ही राज्य सरकार को नए सिरे से नियुक्ति का आदेश दिया है.
इस मामले को लेकर अधिवक्ता सतीश कुमार तथा अन्य ने यादव की नियुक्ति तथा अपने पद पर बने रहने को विभिन्न संवैधानिक आधार पर जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया था कि यादव के खिलाफ आगरा में आपराधिक मामले पंजीकृत हैं जिसके बारे में राज्य सरकार ने कोई जानकारी नहीं उपलब्ध करायी.
उच्च न्यायालय ने इस मामले पर 27 अगस्त की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को यादव पर आपराधिक मामलों की स्थिति के बारे में प्रति शपथपत्र दाखिल करने के लिए समय दिया था. इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने यादव से भी इस आरोप के जवाब में शपथपत्र दाखिल करने को कहा था क्योंकि यह सीधे तौर पर उनसे संबंधित था.
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा दायर प्रति शपथपत्र में दावा किया गया था कि यादव का अधिसंख्य आरोपित मामलों से कोई लेना देना नहीं. साथ ही यह दावा भी किया गया था कि अन्य मामलों में उनको बरी किया जा चुका है. इनमें से ज्यादातर मामले 1980 के थे.
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि अनिल यादव की नियुक्ति बिना किसी प्रक्रिया को अपनाए कर दी गई है. उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे दर्ज थे.
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