तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 2015 के अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह में राज्य में कीटोप्रोफेन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया. यह एक नॉन स्टेरॉयड एंटी इन्फ्लेमेट्री ड्रग(एनएसएआईडी) है. जिसका प्रयोग पशु चिकित्सा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किया जाता है. यह कदम राज्य में कदम राज्य में गिद्धों को गंभीर खतरे बचाने के लिए लिया गया है.
राज्य के पशुपालन निदेशालय की घोषणा के अनुसार दवा का यह उपयोग, कोयंबटूर, इरोड और नीलगिरी में बंद कर दिया जाएगा. इन क्षेत्रों में गिद्ध जनसंख्या खतरे में है इसलिए तमिलनाडु सरकार ने प्रतिबंधित दवा डाईक्लोफेनाक के एक विकल्प के रूप में प्रयोग की जा रही इस दवा पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है.
गिद्धों पर कीटोप्रोफेन के प्रतिकूल प्रभाव
• कीटोप्रोफेन से उपचारित पशु का मांस पक्षियों के लिए घातक होता है.
• रॉयल सोसाइटी जर्नल बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार यह दवा पक्षियों के गुर्दे की विफलता का कारण बनती है.
भारत में गिद्ध संकट
• बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के विभु प्रकाश ने सर्वप्रथम वर्ष 1990 के दशक में भारत में आसमान गिद्धों की संख्या में कमी का उल्लेख किया था.
• वर्ष 2003 में डॉ लिंडसे ओक्स और उनकी टीम ने पाया की डिक्लोफेनाक गिद्धों की संख्या में कमी का एक मूल कारण है.
• डाईक्लोफेनाक को 11 मार्च 2006 को भारत में बाजार से हटा लिया गया.
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