UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स :मानव नेत्र तथा दृष्टि दोष

यहाँ हम आपको UP Board कक्षा 10 विज्ञान के चौथे अध्याय मानव नेत्र तथा दृष्टि दोष के नोट्स को उपलब्ध कर रहें हैं, इस आर्टिकल में विज्ञान के चौथे चेप्टर के सभी बिन्दुओं को काफी सरल तरीके से समझाया गया है| जो आपके रिविज़न के लिए तथा सभी टॉपिक को ठीक तरीके से समझने के लिए काफी महत्वपूर्ण रहेगा|

May 26, 2017, 10:17 IST

आज हम इस आर्टिकल में कक्षा 10 वी के विज्ञान के चौथा अध्याय मानव नेत्र तथा दृष्टि दोष के सभी टॉपिक का शोर्ट नोट्स प्रदान करेंगे| जैसा की हमें पता है प्रकाश एक बहुत बड़ा और काफी महत्वपूर्ण यूनिट है इसलिए, छात्रों को इस अध्याय को अच्छी तरह समझ कर तैयार करना चाहिए। यहां दिए गए नोट्स उन छात्रों के लिए बहुत सहायक साबित होंगे जो UP Board कक्षा 10 विज्ञान 2018 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में हैं। आज इस नोट्स में हम जो टॉपिक्स के नोट्स प्रदान कर रहे हैं वह यहाँ अंकित हैं :

1. मानव नेत्र

2. रेटिना

3.कोर्निया

4. काचाभ द्रव

5.नेत्र लेंस

6. पुतली

7. सिल्यरी मसल्स

8. आईरिस

9. निकट दृष्टि दोष

10. दूर दृष्टि दोष

मानव नेत्र तथा दृष्टि दोष

आँख (मानव नेत्र) की समंजन क्षमता : जब नेत्र से अनंत पर स्थित किसी वस्तु को देखते हैं तो नेत्र पर गिरने वाली समांतर किरणें नेत्र लेंस द्वारा रेटिना R पर फॉक्स हो जाती हैं| और नेत्र को वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है| नेत्र लेंस से रेटिना तक की दूरी नेत्र लेंस की फोकस दूरी कहलाती है| इस स्तिथि में मांसपेशियां ढीली रहती हैं तथा नेत्र लेंस की फोकस दूरी सबसे अधिक होती है| लेकिन जब नेत्र के करीब स्थित किसी वास्तु को देखते हैं तो मांसपेशियां सिकुड़ कर लेंस की पृष्ठों की वक्रता त्रिज्याओं को कम कर देती है| इससे नेत्र लेंस की फोकस दूरी भी कम हो जाती है और वास्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब पुन: रेटिना पर बन जाता है|नेत्र की इस प्रकार फोकस दूरी को कम करने की क्षमता को आँख(नेत्र) की समंजन क्षमता कहते है|

human eye and defect of vision

मानव नेत्र के प्रमुख भागो का वर्णन :

मानव नेत्र : नेत्र (आँख) मनुष्य और सभी जीवों को प्रकृति की एक बहुमूल्य देन है| नेत्र लगभग फोटो कैमरा की तरह काम करता है जिसका व्यास लगभग 25 मिमी होता है| नेत्र में वस्तुओं का वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है| नेत्र एक विशेष प्रकार का प्रकाशित यंत्र है| इसका लेंस प्रोटीन से बने पारदर्शी पदार्थ का होता है|

नेत्र के निम्नलिखित भाग हैं :

दृढ़ पटल : मनुष्य का नेत्र एक खोखले गोले के समान होता है| ये बाहर से दृढ़ तथा अपारदर्शी श्वेत परत से ढका होता है| इस परत को दृढ़ पटल कहते हैं| यह नेत्र की भीतरी भागो की सुरक्षा तथा प्रकाश के अपवर्तन में सहायक होता है|

रक्तक पटल : दृढ़ पटल के भीतरी पृष्ट पर लगी काले रंग की झिल्ली को रक्त पटल कहते हैं| रक्त पटल आँख पर आपतित होने वाले प्रकाश का अवशोषण करता है और आंतरिक परावर्तन को रोकता है|

कोर्निया : दृढ़ पटल के सामने एक भाग उभरा तथा पारदर्शी होता है| इसे कोर्निया कहते हैं| नेत्र में प्रकाश इसी भाग से होकर प्रवेश करता है|

human eye diagram

परितारिका अथवा आईरिस : कोर्निया के पीछे एक रंगीन एवं अपारदर्शी झिल्ली का एक पर्दा होता है| जिसे आइरिस कहते हैं|

पुतली अथवा नेत्र तारा : आइरिस के बिच में एक छिद्र होता है|जिसे पुतली या नेत्र तारा कहते हैं| यह गोल तथा कलि दिखाई देती है| कोर्निया से आया प्रकाश पुतली से होकर ही लेंस पर पड़ता है| पुतली की सबसे अच्छी विशेषता है की अंधकार में ये अपने आप बड़ी और प्रकाश में ये अपने आप छोटी हो जाती है| इस प्रकार नेत्र में सिमित प्रकाश ही जा पाता है|

UP Board कक्षा 10 गणित चेप्टर नोट्स: कराधान(चैप्टर-4),पार्ट-I

UP Board कक्षा 10 गणित चेप्टर नोट्स: कराधान(चैप्टर-4),पार्ट-II

नेत्र लेंस : आइरिस के ठीक पीछे पारदर्शी उत्तक का बना द्वि- उत्तल लेंस होता है| जिसे नेत्र लेंस कहते हैं| नेत्र लेंस के पिछले भाग की वक्रता त्रिज्या छोटी और अगले भाग की वक्रता त्रिज्या बड़ी होती है| यह अनेक परतों से मिल कर बना होता है| जिनके अपवर्तनांक बाहर से अन्दर की ओर बढ़ते जाते हैं| तथा मध्य अपवर्तनांक लगभग 1.44 होता है| नेत्र लेंस अपने ही स्थान पर मंस्पशियों के बिच टिका रहता है|

नेत्रोद तथा जलिए द्रव : कोर्निया तथा लेंस के बिच के भाग को नेत्रोद कहते हैं| इसमें जल की तरह एक नमकीन द्रव भरा रहता है| जिसे जलीय द्रव कहते हैं| इसका अपवर्तनांक 1.336 होता है|

काचाभ कक्ष तथा काचाभ द्रव : नेत्र लेंस तथा रेटिना के बिच के भाग को काचाभ कक्ष कहते हैं| इसमें गाढ़ा, पारदर्शी एवं उच्च अपवर्तनांक वाला द्रव्य भरा रहता है| जिसे काचाभ द्रव कहते हैं|

रेटिना : रक्त पटल के निचे तथा नेत्र के सबसे अन्दर की ओर एक पारदर्शी झिल्ली होती है| जिसे रेटिना कहते हैं| इसे दृष्टि पटल भी कहते हैं|

पीत बिंदु : रेटिना के बीचो- बिच एक एक पिला भाग होता है| जहाँ पर बना हुवा प्रतिबिम्ब सबसे अधिक स्पष्ट दिखाई देता है, इसे पीत बिंदु कहते हैं|

अंध बिंदु : रेटिना के जिस स्थान को छेद कर दृष्टि तंत्रिकाएँ मष्तिष्क को जाती है| वहाँ पर प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है| इस स्थान पर प्रकाश- सुग्रहिता शून्य होती है, इसे अंध बिंदु कहते हैं|

नेत्र का कार्य : हमारी पलकें कैमरे के शतर की तरह काम करती हैं| जब पलके खुली होती हैं तब हमारे सामने रखी वस्तु से चलने वाली किरणें कोर्निया पर आपतित होती हैं| यहाँ से ये किरणें अपवर्तित होकर क्रमशः जलीय द्रव, लेंस और काचाभ द्रव में होती हुई रेटिना पर पड़ती है| रेटिना पर वास्तु का उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है| प्रतिबिम्ब की सुचना प्रकाश तंत्रिकाओ द्वारा रेटिना की संवेदी कोशिकाओं से होकर मस्तिष्क में पहुँचती है| मस्तिष्क अनुभव के आधार पर उसका ज्ञान सीधे रूप से प्राप्त कर लेता है|

दृष्टि दोष :

निकट दृष्टि दोष :

इस दोष से युक्त नेत्र द्वारा मनुष्य पास की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं लेकिन एक निश्चित दूरी से आगे की वास्तु स्पष्ट नही दिखाई देती है| अर्थात नेत्र का दूर बिंदु अन्नत पर न बन कर बस बनने लगता है|  चित्र में स्पष्ट है की अन्नंत से आने वाली किरणें दृष्टि पटल पर फोकस न होकर दृष्टि पटल से पहले ही बिंदु P पर फोकस हो जाती है| इसलिए दृष्टि पटल पर स्पष्ट प्रतिबिम्ब नहीं बनता|

Short sightedness diagram

निकट दृष्टि दोष के कारण :

1. नेत्र लेंस के पृष्ठों की वक्रता बढ़ जाती है, जिससे फोकस दुरी कम हो जाती है|

2. नेत्र के गोले का व्यास बढ़ जाना अर्थात नेत्र लेंस और रेटिना के बिच की दुरी का बढ़ जाना|

निवारण : इस प्रकार के दोष को दूर करने के लिए एक ऐसे अवतल लेंस का प्रयोग करते हैं की अनंत से चलने वाली किरणें अवतल लेंस से अपवर्तन के पश्चात् नेत्र के दूर बिंदु F से आती प्रतीत होती है| चित्र के अनुसार ये किरणें नेत्र द्वारा अपवर्तित होकर रेटिना के पीत बिंदु R पर मिल जाती हैं| इसप्रकार अनंत पर रखी हुई वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर स्पष्ट बन जाता है और नेत्र को वस्तु स्पष्ट दिखाई देने लगती है|

दूर दृष्टि दोष :

इस दोष से युक्त नेत्र द्वारा मनुष्य को दूर की वस्तुएं तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, परन्तु पास की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई नहीं देती अतः नेत्र का निकट बिंदु 25 सेमी से अधिक दूर हो जाता है| ऐसे व्यक्ति को पढ़ने के लिए पुष्तक 25 सेमी से अधिक दूर रखनी पड़ती है| इस दोष में समीप की वास्तु का प्रतिबिम्ब दृष्टि पटल R पर न बन कर उसके पीछे बिंदु P पर बनता है|

Long sightedness diagram

दूर दृष्टि दोष के कारण :

1. नेत्र लेंस की वक्रता का कम हो जाना, जिससे फोकस दूरी बढ़ जाती है|

2. नेत्र के गोले का व्यास कम हो जाना, जिससे लेंस और रेटिना के बिच की दूरी कम हो जाती है|

निवारण :

इस दोष को दूर करने के लिए एक ऐसे उत्तल लेंस का प्रयोग करते हैं की दोषित नेत्र से 25 सेमी की दूरी पर रखी वस्तु से चलने वाली किरणें उत्तल लेंस से अपवर्तन के पश्चात् नेत्र के निकट बिंदु N से आती हुई प्रतीत होती है| चित्र के अनुसार ये किरणें नेत्र से अपवर्तित होकर रेटिना के पीत बिंदु R पर मिल जाती हैं| इस तरह वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर बन जाता है और नेत्र को वास्तु स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगती है|

UP Board कक्षा 10 विज्ञान चेप्टर नोट्स : प्रकाश का अपवर्तन (गोलीय तलों पर):लेंस

Jagran Josh
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Education Desk

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