भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का अवलोकन

Mar 29, 2016, 10:33 IST

जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। इसकी लगभग 55% जनसंख्या इस क्षेत्र में कार्यरत है। कृषि का भारतीय अर्थव्यस्था के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14% योगदान है। लेकिन लगातार हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घट रहा है। 1950 के दशक में हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 53% प्रतिशत होता था जो वर्तमान में करीब 14% रह गया है। देश में निर्यात के क्षेत्र में कृषि का 10% हिस्सा है। देश की 1.26 अरब आबादी की खाद्य सुरक्षा कृषि पर निर्भर है।

जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। इसकी लगभग 55% जनसंख्या इस क्षेत्र में कार्यरत है। कृषि का भारतीय अर्थव्यस्था के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14% योगदान है। लेकिन लगातार हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घट रहा है। 1950 के दशक में हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 53% प्रतिशत होता था जो वर्तमान में करीब 14% रह गया है। देश में निर्यात के क्षेत्र में कृषि का 10% हिस्सा है। देश की 1.26 अरब आबादी की खाद्य सुरक्षा कृषि पर निर्भर है।

भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का अवलोकन

1950 के दशक में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आधा हिस्सा कृषि क्षेत्र से आता था । वर्ष 1995 तक यह घटकर 25 प्रतिशत रह गया, जो वर्तमान में करीब 14% घट गया है।

जैसा कि अन्य देशों के विकास में देखा गया है कि जैसे जैसे कोई देश विकास करता है उसके हिस्से में कृषि का योगदान कम होता जाता है यही कारण है कि भारत में अन्य क्षेत्रों के विकास के कारण,यहाँ की अर्थव्यस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी में लगातार गिरावट आई। जो कि नीचे दिए गए आंकड़ों से समझा जा सकता है।

वर्ष

1951

1965

1976

2011-12

2012-13

2013-14

2015-16

सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा (%में)

52.2

43.6

37.4

18.9

18.7

18.6

14

पिछले पांच दशकों से आंतरिक और बाहरी कारणों से समय समय पर सरकार कृषि नीति में बदलाव करती रही। कृषि नीतियों को आपूर्ति पक्ष और मांग पक्ष में विभाजित किया जा सकता है।

आपूर्ति पक्ष की बात की जाए तो इसमें भूमि सुधार, भूमि उपयोग,  कृषि विकास , नई प्रोद्योगिकी, सिंचाई और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश शामिल है। दूसरी तरफ मांग पक्ष की बात की जाए तो  राज्यों का कृषि बाजार में हस्तक्षेप, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का ठीक संचालन इत्यादि आता है । कृषि के लिए बनाई गई नीतियाँ सरकार के बजट को प्रभावित करती हैं। सरकार की औद्योगिक नीतियों में भी कृषि क्षेत्र के विकास के लिए विशेष प्रावधान रखे जाते हैं ।

हरित क्रांति से पहले 1964-1965 की अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में 2.7 प्रतिशत की वार्षिक औसत वृद्धि हुई। इस अवधि में भूमि सुधार नीति और सिंचाई के विकास की दिशा में जोर दिया गया । हरित क्रांति के समय 1960 से 1991 के दशकों में, वर्ष 1965-66 से 1975-76 की अवधि में कृषि क्षेत्र में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई और वर्ष 1976-1977 से 1991-1992 के दौरान कृषि क्षेत्र में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस अवधि के दौरान सरकार की ओर से पर्याप्त नीति और पैकेज में इन उपायों को शामिल किया गयाः

क) कृषि को मजबूत बनाने के लिए गेहूं और चावल की उन्नत किस्मों का उपयोग, कृषि से सम्बंधित अनुसंधान और विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देना।

ख) कृषि उपज को बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा देना।

ग) प्रमुख लघु सिंचाई सुविधाओं का विस्तार।

घ) प्रमुख फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा, सरकारी खरीदी और सार्वजनिक वितरण जरूरतों को पूरा करने और अनाजों के बफर स्टॉक के लिए इमारतों का निर्माण।

ई) प्राथमिकता के आधार पर कृषि ऋण का प्रावधान।

च) इस अवधि में भी केंद्र व राज्य सरकार ने बाजार की जरूरतों का ध्यान रखा। किसानों की उपज को खरीदने के लिए उपयुक्त कदम उठाए। ताकि उनके उत्पाद का उन्हें सही मूल्य मिल सके।

खाद्यान्न उत्पादन में बृद्धि:

वर्ष 2011-12 के लिए  कुल 250.42  खाद्यान्न उत्पादन का हुआ था, जो पिछले वर्ष के रिकॉर्ड उत्पादन से 5.64 लाख टन अधिक था। इसमें चावल का उत्पादन 102.75 लाख टन, गेहूं का 88.31 लाख टन व  मोटे अनाज 42.08 लाख टन और दलहन का उत्पादन 17.28 लाख टन था। 2011-12 के दौरान तिलहन का उत्पादन 30.53 लाख टन,  गन्ने का उत्पादन 347.87 लाख टन व कपास का उत्पादन 34.09 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान लगाया गया। वहीं जूट का उत्पादन 10.95 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान लगाया गया।

देश के कुछ हिस्सों में अनिश्चित मौसम के बावजूद  रिकार्ड उत्पादन हुआ। वर्ष 2011-12 के दौरान 245 लाख टन लक्षित उत्पादन की तुलना में पांच करोड़ टन अधिक खाद्यान्न हुआ। कृषि फसलों का उत्पादन कुल रकबा और पैदावार पर निर्भर करता है। रकबा का विस्तार होने से  पैदावार में सुधार हुआ। गेहूं के मामले में वर्ष 2001 से 2011 के दौरान  रकबा बढ़ा लेकिन औसत उत्पादकता नहीं बढ़ी । इसके लिए लिए सुझाव दिया गया कि उत्पादन को बढ़ाने के लिए जमीन की नए सिरे से अनुसंधान की जरुरत है।

वर्ष 2001 से 2011 के दौरान मक्का को छोड़कर सभी मोटे अनाजों का उत्पादन अनुमान के अनुरूप नहीं रहा। इस दौरान मक्का में 2.68 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई। हालांकि बाद में मक्के के उत्पादन में 7.12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

दो अवधियों में पैदावार की विकास दर में वृद्धि हुई है जो कि मूंगफली और कपास में देखी गई। वर्ष 2002 के दौरान बीटी कपास के आने से कपास की फसल में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया। 2002-03 की तुलना में 2011-12  में कपास का उत्पादन दोगुना हो गया।  कपास क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत स्थान बीटी काटन ले लिया । इस दौरान कपास की पैदावार में लगभग 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई और प्रति वर्ष कच्चे कपास का निर्यात 10,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया।

इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से यह बात सिद्ध हो जातो है कि भारत अभी भी काफी हद तक कृषि प्रधान देश ही है और यदि इस देश को विकसित देश बनना है तो कृषि के विकास को साथ लेकर चलना पड़ेगा, अन्यथा देश में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो जायेगा, और कोई भी देश भूखे पेट विकास के रास्ते पर नहीं पहुच सकता I

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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