उत्पादन के सिद्धांत क्या हैं?
उत्पादन के सिद्धांत के अंतर्गत अर्थशास्त्र के कुछ मौलिक सिद्धांतों को शामिल किया जाता है. इस सिद्धांत की व्याख्या के सन्दर्भ में किसी उत्पादक या फर्म के द्वारा यह प्रयास किया जाता है कि किसी भी वस्तु की कितनी संख्या का उत्पादन किया जाये और उसके उत्पादन के लिए किन किन सामानों की आवश्यकता है, कितनी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता है और कितने श्रम की आवश्यकता है.
इसके अंतर्गत वस्तुओं की कीमतों और उनके रख-रखाव पर खर्च किये जाने वाले पूंजी को भी जोड़ा जाता है. इस सन्दर्भ में एक तरफ किसी वस्तु की कीमत और उत्पादनकारी कारकों के मध्य के संबंध की व्याख्या की जाती है. साथ ही दूसरी तरफ वस्तु की मात्रा और उत्पादनकारी कारकों के मध्य भी संवंधों की भी व्यख्या की जाती है.
व्यापार फर्म का अर्थ
कोई भी आर्थिक इकाई जोकि किसी एक वस्तु या अनेक वस्तुओं के उत्पादन में संलिप्त रहती है उसे व्यापारिक फर्म कहते हैं. इसके अंतर्गत आर्थिक स्रोत, उत्पादन के कारक आदि तथ्य वस्तु या वस्तुओं के उत्पादन में शामिल रहते हैं और लाभ की स्थिति पैदा करते हैं.
उत्पादन और लागत की सापेक्षता
एक व्यावसायिक फर्म विभिन्न आर्थिक संसाधनों को खरीदता है जिसे इनपुट कहा जाता है जबकि वह जब उन्हें बेंचता है तो उसे उस फर्म के आउटपुट कहा जाता है. उत्पादन के कारक जोकि किसी व्यावसायिक फर्म के द्वारा किसी वस्तु या सेवा के उत्पादनकारी कार्यों में इस्तेमाल किये जाते हैं इनपुट कहे जाते हैं. कोई भी फर्म इन इनपुटों के लिए पूंजी की इस्तेमाल करती है. इनपुट किसी भी वस्तु के लिए मूल्य पैदा करते हैं और अंततः आउटपुट को उत्पन्न करते हैं.
और विस्तृत रूप में किसी वस्तु के उत्पादन के कारक कभी भी कम समय में बदले नहीं किये जा सकते हैं इन्हें स्थिर कीमत कहते हैं. जबकि उत्पादन के कारक जोकि किसी वस्तु के उत्पादन के कारकों के स्तर के ऊपर निर्भर करता है उसे बदलता हुआ इनपुट कहते हैं. बदलते हुए इनपुट यदि हम किसी वस्तु के उत्पादन को चुन लें तो परिवर्तित किये जा सकते हैं.
लागत नियम
लागत सिद्धांत सीधे रूप में उत्पादन सिद्धांत से संबंधित होता है. ये अक्सर एक साथ इस्तेमाल किये जाते हैं. सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि किसी वस्तु के उत्पादन में कितनी मात्रा में संसाधनों की जरुरत होगी. इसके अलावा किस वस्तु के उत्पादन से कितनी मात्रा में लाभ प्राप्त किया जा सकता है और उसके उत्पादन के दौरान कम से कम संसाधनों का इस्तेमाल किया जाये. इस सन्दर्भ में हमें एक चीज यह भी जान लेनी चाहिए कि किसी वस्तु के उत्पादन और उसकी कीमत को उसके प्रबंधक के द्वारा निर्धारित किया जाता है. साथ ही किसी वस्तु को कितनी मात्रा में उत्पादित किया जाये और उत्पादित वस्तु को कितनी कीमत पर बेंचा जाये.
रिटर्न ह्रासमान का कानूनी अर्थ
अर्थशास्त्र में एक अवधारणा का इस्तेमाल किया जाता है, की उदारहरण के लिए यदि किसी वस्तु के उत्पादन के लिए श्रमिकों की संख्या को बढ़ा दिया जाये और उदाहरण के लिए मशीनों और काम के स्थानों को स्थिर रखा जाये तो एक तरफ वस्तुओं का उत्पादन बढ़ जायेगा और प्रति वस्तु उत्पादन का खर्च भी कम आएगा.
यदि आउटपुट में जैसे ही बढ़ोत्तरी होती हैं तो कार्यबल की सीमांत उत्पादकता उत्पादन कम होती है. एक उदहारण के माध्यम से हम समझ सकते हैं. रिटर्न ह्रासमान का मतलब यह नहीं कि नकारात्मक रिटर्न है जब तक की श्रमिकों की संख्या उपलब्ध मशीनों से अधिक है. हर रोज के अनुभव में, इस कानून को निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है: "लाभ दर्द के लायक नहीं होता है।"
वापसी ह्रासमान कानून को अधिक, स्पष्ट करने के लिए निम्नवत तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है.
- उत्पादन की विधि इनपुट परिवर्तन के अनुसार परिवर्तित नहीं होता है.
- जब लागू नहीं होता तब सभी आदान विविध रहते हैं.
- हम जब उत्पादन के कारकों में इसका इस्तेमाल करते हैं तो शास्त्रीय उत्पादन प्रक्रिया को प्राप्त करते हैं.
- पहली बार में मामूली रिटर्न बढ़ती है और बाद में सीमांत रिटर्न कम होती है.
- यह संभव है कि सीमांत रिटर्न चर इनपुट आवेदन के शुरुआत के साथ ही कम हो सकता है.
उत्पादन के कारक
किसी एक वस्तु या वस्तुओ या सेवा के उत्पादन हेतु जरुरी संसाधन भूमि, श्रम, पूंजी होते हैं. इन जरुरी इनपुट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. श्रम, से यहाँ आशय है की किसी एक कम्पनी में किसी वस्तु के उत्पादन हेतु मजदूरों और कामगारों की जरुरत से है. ये कामगार वर्ग वस्तुओं के उत्पादन में अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभाते है और किसी कम्पनी के लाभ में अपनी सहभागिता निभाते हैं किसी भी कम्पनी में कोई उद्योगपति किसी वस्तु केउत्पादन में यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से तो भूमिका नहीं निभाता है लेकिन वह उन वस्तुओं के उत्पादन को संभव बनाने के लिए जरुरी संसाधनों को मुहैया कराता है. साथ ही कम्पनी को लाभकारी स्थिति में पहुँचाने में मदद करता है.
इसके अलावा वह उस कम्पनी को आगे बढ़ने के लिए विविध विचार भी समय-समय पर देता रहता है. इसके अलावा एक उद्योगपति अपने लाभ को बढ़ने के लिए अन्य सभी संभव उपाय भी करता रहता है. उपरोक्त के अलावा एक उद्यमी अपने व्यापार में अन्य जोखिम भी उठाता रहता है. यह जानते हुए की व्यापार में उसे नुकसान का सामना करना पड सकता है फिर भी वह अपने कार्य को जारी किये रहता है.
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