चीन का 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स प्रोजेक्ट' भारत की सुरक्षा को कैसे प्रभावित करेगा?

Jul 24, 2017, 14:52 IST

12 जुलाई 2017 को चीन ने अपना "पहला विदेशी मिलिट्री बेस" बनाने के लिए अपना एक युद्ध पोत अफ्रीका महाद्वीप के देश जिबूती के लिए रवाना किया था. चीन के इस कदम से पता चलता है कि चीन भारत के पड़ोसी देशों में "मिलिट्री बेस" बनाकर समुद्र के रास्ते भारत को घेरने की योजना बना रहा है. चीन के इन्ही विभिन्न "मिलिट्री बेसों" को 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स प्रोजेक्ट' का नाम दिया गया है.

12 जुलाई 2017 को, चीन ने अपना "पहला विदेशी मिलिट्री बेस" बनाने के लिए अपना एक युद्ध पोत अफ्रीका के देश जिबूती के लिए रवाना किया था. चीन के इस कदम से पता चलता है कि चीन भारत के पड़ोसी देशों में "मिलिट्री बेस" बनाकर समुद्र के रास्ते भारत को घेरने की योजना बना रहा है. चीन के इन्ही विभिन्न "मिलिट्री बेसों" को 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स प्रोजेक्ट' का नाम दिया गया है.
"स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” क्या है?
"स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" की बात का जिक्र 2005 में पेंटागन ने ‘एशिया में ऊर्जा का भविष्य’ नाम की एक खुफिया रिपोर्ट में किया था. पेंटागन की इस रिपोर्ट में चीन द्वारा समुद्र में तैयार किए जा रहे "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" का विस्तृत विवरण दिया गया था. ये समुद्र में पाए जाने वाले मोती नहीं बल्कि दक्षिण चीन सागर से लेकर मलक्का संधि, बंगाल की खाड़ी और अरब की खाड़ी तक (यानि पूरे हिंद महासागर में) सामरिक ठिकाने (बंदरगाह, हवाई पट्टी, निगरानी-तंत्र इत्यादि) तैयार करना था. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन ये ठिकाने अपने ऊर्जा-स्रोत और तेल से भरे जहाजों के समुद्र में आवागमन की सुरक्षा के लिए तैयार कर रहा है. लेकिन पूरी सच्चाई यह है कि जरुरत पड़ने पर इन सामरिक-ठिकानों को सैन्य-जरुरतों के लिए भी इस्तेमाल कर सकता है.
इन खाड़ियों के अलावा "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" प्रोजेक्ट के अंतर्गत पाकिस्तान में ग्वादर और कराची बंदरगाह में मिलिट्री बेस, श्रीलंका में कोलंबो और नये पोर्ट हम्बनटोटा में आर्मी फैसिलिटी के साथ साथ बांग्लादेश के चटगांव में कंटेनर सुविधा बेस और म्यांमार में यांगून बंदरगाह पर मिलिट्री बेस की स्थापना को भी गिना जाता है.

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Image source:Global Balita

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आइये अब इस प्रोजेक्ट के मोतियों को एक-एक कर जानते हैं
1. पाकिस्तान: चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) समझौते के अंतर्गत एक मिलिट्री बेस बनाया है. इस बेस के माध्यम से चीन भारत को पश्चिमी मोर्चे पर घेरने की कोशिश कर रहा है.

gwadar port
2. श्रीलंका: चीन ने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह से हिंद महासागर में अपनी नौसैनिक गतिविधियों के संचालन की योजना बनाई है. उल्लेखनीय है कि हम्बनटोटा बंदरगाह को विकसित करने के लिए श्रीलंका ने सबसे पहले भारत से ही आग्रह किया था. लेकिन इससे पहले कि भारत तैयार होता, चीन ने श्रीलंका को जरुरी मदद करने की पेशकश कर डाली और अपनी चाल में कामयाब भी हो गया.
इस बंदरगाह पर हाल ही में चीन की पनडुब्बियों को देखा गया है. साफ है कि भले ही चीन ये कहे कि वो दूसरे देशों में बंदरगाह पूरी तरह से व्यापारिक दृष्टिकोण से तैयार कर रहा है. लेकिन श्रीलंका में उसकी पनडुब्बियों की मौजूदगी ने साफ कर दिया है कि व्यापारिक-बंदरगाहों को जरुरत पड़ने पर सैन्य-बंदरगाहों में भी बदला जा सकता है.
बांग्लादेश: चीन ने भारत के एक दूसरे पड़ोसी देश बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह पर अपने लिए एक कंटनेर-पोर्ट तैयार किया है. हाल ही में बांग्लादेश ने अपनी सुरक्षा के लिए चीन से दो पनडुब्बियां खरीदने की घोषणा की है. साथ ही चीन बांग्लादेश से राजनयिक संबध मजबूत करने की लगातार कोशिश कर रहा है और उसको हर तरह की वित्तीय मदद दे रहा है.

(हम्बनटोटा बंदरगाह का दृश्य)

Hambantota PORT SriLanka
Image source:lanka-houses.com
म्यांमार: चीन, भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए और भारत के पडोसी देशों की जमीन भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए म्यांमार के साथ सैन्य और आर्थिक संबंधों में वृद्धि कर रहा है. चीन, म्यांमार के एक बंदरगाह यांगून पर भी मिलिट्री बेस बना रहा है.
चीन अपने नौसैनिक बेस हिन्द महासागर में स्थित मालदीव और शेसेल्स में भी स्थापित कर रहा है.
3. जिबूती में नौसैनिक बेस: चीन ने अफ़्रीकी देश जिबूती में अपना पहला विदेशी नौसैनिक बेस स्थापित करने के लिए अपना युद्ध पोत जुलाई 2017 में भेजा है. केवल 8 लाख की जनसँख्या वाला जिबूती भारत के दाहिने हाथ पर अरब सागर के किनारे स्थित है. इस जगह पर नैसैनिक अड्डा बनाने के बाद चीन की स्थिति अरब सागर में भी मजबूत हो जाएगी. हालाँकि चीन की निर्माण गतिविधियाँ इस जगह पर फ़रवरी 2016 से ही चल रहीं थीं.

Djibouti
Image source:PrabhasakshiSunshine Action
फ्रांस, अमरीका और जापान जैसे देशों ने पहले से ही अपने नौसैनिक अड्डे जिबूती में बना रखे हैं. जिबूती के लेमनियर (अफ्रीका में संयुक्त राज्य अमेरिका का एकमात्र स्थायी बेस) में अमेरिका का नौसैनिक अड्डा चीन के नये अड्डे से कुछ किलोमीटर दूर है. ज्ञातव्य है कि चीन, जिबूती बेस के लिए किराए के रूप में 20 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष का भुगतान कर रहा है.
सारांश के रूप यह कहा जा सकता है कि चीन पूरे दक्षिण एशिया में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है और इस वर्चस्व को यदि कोई चुनौती दे सकता है तो वह भारत ही है. यही कारण है कि चीन, भारत को चारों ओर से घेरने के लिए "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स”प्रेजेक्ट का सहारा ले रहा है. अब यह आने वाला वक़्त ही बताएगा कि चीन अपने मंसूबों में कितना कामयाब होता है.

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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