हिन्दू रामायण और जैन रामायण में क्या अंतर है

Mar 9, 2017, 13:35 IST

हिंदू धर्म के जैसे ही जैन धर्म भी स्वयं को सनातन धर्म मानता है l महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण ने हिन्दू धर्म को श्रीराम, सीता, लक्ष्मण जैसे महान रूप प्रदान किए हैं और प्रत्येक अध्याय की बहुत सुंदर रचना की है लेकिन भारत में विभिन्न राज्यों में रामायण युग को लेकर तरह-तरह की लोक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें कुछ अलग–अलग तथ्यों का वर्णन हैं l आइए जैन और हिन्दू रामायण में क्या अंतर हैं इसके बारें में अध्ययन करते हैंl

हिंदू धर्म के जैसे ही जैन धर्म भी स्वयं को सनातन धर्म मानता है जो कि एक अनन्त विश्वास है, जिसकी ना कोई शुरुआत है (अनादी) और ना ही अंत (अनंत) । महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण ने हिन्दू धर्म को श्रीराम, सीता, लक्ष्मण तथा हनुमान जैसे महान रूप प्रदान किए हैं और उस काल के प्रत्येक अध्याय की बहुत सुंदर रचना की गई है लेकिन भारत में विभिन्न राज्यों में रामायण युग को लेकर तरह-तरह की लोक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें कुछ अलग–अलग तथ्यों का वर्णन हैं l

आइए देखतें हैं जैन रामायण के अनुसार हिन्दू रामायण में क्या अंतर हैं l

1. हम सभी जानते है कि अयोध्या के राजा श्री राम ने रावण का वध किया था पर जैन रामायण के अनुसार लक्ष्मण द्वारा रावण मारा गया था न कि भगवन राम के द्वारा l जैन रामायण के अनुसार राम को अहिंसावादी बताया गया है इसीलिए रावण का वध करने के लिए श्री राम ने हथियार धारण नहीं किए थे और मोक्ष प्राप्ति के लिए उन्होंने अपने राज्य को छोड़ दिया था और जैन साधू बन गए थे l
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2. जैन रामायण के अनुसार, साकेत के रजा दशरथ की चार रानियाँ थी : अपराजिता, सुमित्रा, सुप्रभा और कैकेयी l इन चार रानियों के चार पुत्र थे अपराजिता का पुत्र पदमा जिसे राम के नाम से जाना जाने लगा, सुमित्रा का बेटा नारायण था जिसे लक्ष्मण के नाम से जाना जाने लगा, कैकेयी का पुत्र भरत और सुप्रभा का पुत्र शत्रुघ्न था l इसके अलावा सीता कि राम के लिए निष्ठा के बारे में ज्यादा कुछ वर्णन नही हैं l दूसरी और हन्दू रामायण में अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा l कौशल्या के गर्भ से राम का, कैकेयी के गर्भ से भरत का तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।
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3. जैन रामायण के अनुसार राम की चार रानियाँ थी : मैथिली, प्रभावती, रतिनिभा और श्रीदमा और दूसरी तरफ भगवान राम की एक ही पत्नी थी सीता l
4. जैन धर्म में रामायण को पौमाचरिता कहा जाता है या पदमा की कथा जो राम का ही जैन नाम है और रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।
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5. भगवान श्री राम द्वारा माता सीता की रक्षा करते हुए मारे गए लंकापति रावण को ‘जैन समुदाय’ का अनुगामी बताया जाता है और साथ ही रावन के चरित्र को अच्छा बताया गया है l पर वाल्मीकि द्वारा लिखी गई हिन्दू रामायण के अनुसार रावण को राक्षसों के राजा के रूप में दर्शाया गया है| जब रावण ने माता सीता को वन में देखा तो उनकी खूबसूरती से दंग रह गया था और विवाह करना चाहता था पर ऐसा हो ना सका l इसीलिए उसने वेष बदलकर सीता माता का हरण किया और चरित्रहीन कहलाया l
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6. रावण को जैन धर्म के अनुसार प्रतिवासुदेव माना जाता है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि वह शांतिनाथ का महान भक्त था l जैन समुदाय में प्रतिवासुदेव नारायण तथा बलदेव के बाद काफी खास माने जाते है पर प्रतिवासुदेव धारण करने वाले व्यक्ति की ताकत एक वासुदेव से कम होती है। इससे यह पता चलता है कि जैन समुदाय में वासुदेव, बलदेव तथा प्रतिवासुदेव के आधार पर पुरुष का विभाजन किया जाता था l दूसरी तरफ ऐसी कोई मान्यता नही थी l भगवान् राम विष्णु के अवतार थे  इस अवतार का उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आदर्श जीवन के लिये मार्गदर्शन देना था। अन्ततः श्रीराम ने राक्षस जाति के राजा रावण  का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की।
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7. जैन समुदाय में ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मण ने रावण को मारा है जिस कारण वे दोनों ही नरक में जाएँगे l एक दिन वे ईमानदार पात्रों के रूप में फिर जन्म लेंगें और भविष्य में मोक्ष प्राप्त करेंगे l जैन का मानना है कि रावण जैन तीथंकर के रूप में पुनर्जन्म होगा पर हिन्दू रामायण में ऐसा कुछ नही बताया गया है l

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8. जैन रामायण में राम, सीता तथा रावण को विभिन्न स्थान पर प्रदर्शित किया गया है। जैन विद्या के अनुसार प्रत्येक समय चक्र में एक बलदेव, वासुदेव एवं प्रतिवासुदेव का जन्म होता है। जैन धर्म ने श्री राम को बलदेव, लक्ष्मण को वासुदेव और रावण को प्रतिवासुदेव बताया है।
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पर प्रतिवासुदेव से आप क्या समझते है : जैन धर्म में तीर्थंकर की एक अहम मान्यता तथा उच्चतम स्थान है। तीर्थंकर की तरह ही प्रतिवासुदेवों का भी हर चतुर्युग के सामान्य चक्रीय कालक्रम में अवतरण होता है। मान्यतानुसार इनकी कुल संख्या नौ है। प्रतिवासुदेवों द्वारा एक समय धारा के भीतर जन्म लिया जाता है। यह समय अपना चक्र पूरा कर के वापस लौटता है इसलिए इसे चक्रीय कहा जाता है। हर एक चक्रीय कालक्रम में 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 बलदेव तथा 9 प्रतिवासुदेव का जन्म होता है। इन्हें शलक पुरुष भी कहा जाता है। इन सभी श्रेणियों का विभाजन उस विशेष पात्र द्वारा पूर्व जन्म में किए गए पाप तथा पुण्य पर आधारित होता है। विभिन्न तप तथा उपासना के बाद ही किसी को उच्चतम पद हासिल होता है।
9. जैन धर्म की मान्यता है कि रावण तीर्थंकर के रूप में पुनर्जन्म लेंगे l इस धर्म में तीर्थंकर उच्चतम माना जाने वाला स्थान है। दूसरी और हिन्दू रामायण में ऐसा कुछ नही कहा गया है कि रावण का भगवान के रूप में पुनर्जन्म होगा l
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10. जैन धर्म में मानयता है कि रावण मुनिसुविरात का भक्त था, जो 20 वे  जैन तीर्थंकर थे l पर हिन्दू रामायण के अनुसार रावण भगवान शिव का भक्त था l

Shikha Goyal is a journalist and a content writer with 9+ years of experience. She is a Science Graduate with Post Graduate degrees in Mathematics and Mass Communication & Journalism. She has previously taught in an IAS coaching institute and was also an editor in the publishing industry. At jagranjosh.com, she creates digital content on General Knowledge. She can be reached at shikha.goyal@jagrannewmedia.com
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