नई कृषि योजना के अनुसार उच्च उपज देने वाली बीज की किस्मों के ऊपर विशेष ध्यान देने और उनके महत्व को समझाने की बात की गयी है. भारत सरकार नें योजना प्रक्रिया के प्रारंभ में फसलो के उत्पादन के गुणात्मक संवर्द्धन एवं उत्पादन की मजबूती के तरीकों पर विशेष जोर दिया था. लेकीन असली प्रभाव एवं जोर खरीफ सीजन के फसलो के ऊपर वर्ष 1966 में दिया गया जबकि कृषि के उत्पादन को बढाने के सन्दर्भ में अनेक कार्य किये गए.
उन्नत बीज के उत्पादन और विशेष रूप से उच्च उत्पादनकारी बीज की किस्मों को केंद्र सरकार,राज्य सरकार और पंजीकृत बीज उत्पादकों द्वारा प्रोत्साहित किया गया था. प्रारभिक समय में भारत के चयनित क्षेत्रों में गेहूं की मैक्सिकन किस्मो सोनारा 64 और लारमा रोजो-64-A से उत्पादन की प्रक्रिया शुरू की गयी. बाद के दिनों में भारतीय किस्मों के साथ मैक्सिकन किस्मों के संकरण को बढ़ावा दिया गया और अधिक उपज देने वाली किस्म का उद्भव किया गया.
इस तरह के उच्च गेहूं के उत्पादन को बढ़ावा देने में उर्वरक, पर्याप्त पानी की आपूर्ति, कीटनाशकों और कीटनाशकों की पहुंच नें काफी अहम् योगदान दिया. इस तरह से इसे कार्यक्रम को 'पैकेज कार्यक्रम' के रूप में शुरू किया गया. लेकिन एक बात सत्य थी की इस तरह के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उच्च सिंचाई की जरुरत है क्योंकि इनका उच्च उत्पदान बिना पर्याप्त सिंचाई वाले क्षेत्रों के नहीं किया जा सकता.
भारत के बीज क्षेत्र में शामिल हैं:
• राष्ट्रीय बीज निगम
• भारत की राज्य फार्म निगम
• राज्य के 13 बीज निगम
• लगभग 100 निजी क्षेत्र की बीज कंपनियां
• बीज के गुणवत्ता नियंत्रण और प्रमाणन के लिए निम्नलिखित संस्थाएं हैं:
• 22 राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियां
• 101 राज्य बीज परीक्षण प्रयोगशाला
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