देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता का राष्ट्रीय स्तर तेज़ी से घट रही है, 1998 मे जंहा प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1986 क्यूबिक मीटर थी वहीं 2005 मे यह घट कर 1731 क्यूबिक मीटर रह गयी है। यह कमी भारत को खतरनाक रूप से 1700 क्यूबिक मी के नज़दीक पहुँचा रही है जिसके बाद भारत विश्व में एक पानी की कमी वाला क्षेत्र घोषित हो जाएगा।
एक अनुमान के मुताबिक , जल के अक्षय स्रोतों से प्रतिवर्ष प्राप्त होने वाले 350 मिलियन हेक्टेयर मीटर जल मे से केवल 160 मिलियन हेक्टेयर ही नदियो के ज़रिये समुद्रों में वापस पहुँच पाता है। इसके विपरीत भारत के 29 प्रतिशत जल ब्लाक उन क्षैत्रो में पड़ते हैं जो भूमिगत जल के अत्याधिक उपयोग की वाली श्रेणी के हैं । हरित क्रांति के प्रमुख क्षेत्र रहे, पंजाब के 60 प्रतिशत तथा हरियाणा के 40 प्रतिशत जल ब्लॉक अत्यंत खतरनाक स्थिति मे हैं।
जबकि उत्तरी क्षेत्र अपने भूमिगत जल संसाधनों को 87 प्रतिशत तक विकसित कर चुका है , पूर्वी क्षेत्र अपना 70 प्रतिशत से अधिक भूमिगत जल सिंचाई के लिए प्रयोग कर रहा है। इसीलिए पूर्वी क्षैत्र मे सिंचाई मे बड़ा निवेश किये जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही सिंचाई के विकास की कमियो को दूर करना होगा। ऐसी योजना ही व्यापक विकास की ओर ठोस शुरूआत होगी।
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