भारत अभी हाल ही में विश्व बैंक की ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नस की रैंकिंग में 30 पायदान की छलांग लगाकर पिछले साल के130 वें स्थान से ऊपर खिसककर 100 वें स्थान पर आ गया है. इस रैंकिंग के आने के बाद राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी के साथ भारत के सेंसेक्स में भी बाढ़ सी आ गयी है. इस लेख में हम ऐसे ही विभिन्न रिपोर्ट्स में भारत की स्थिति के बारे में जानेंगे. भारत की बिजनेस और इकॉनमी के 16 विभिन्न इंडेक्स में से 10 में भारत की रैंकिंग नीचे गयी है, जिनमे 3 में मामूली सुधार और 3 में स्थिति बहुत अच्छी हुई है. लोगों की सुविधा के लिए इसमें 2014 से 2017 के बीच भारत की रैंकिंग के बारे में बताया गया है.
1. ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नस रैंकिंग: इस रैंकिंग को विश्व बैंक के द्वारा हर साल जारी किया जाता है. विभिन्न सालों में भारत की रैंकिंग इस प्रकार है: वर्ष 2014 में 189 देशों की रैंकिंग में भारत को 142 वां स्थान प्राप्त हुआ था जबकि 2018 में 190 देशों की रैंकिंग में भारत का स्थान 100 वां हो गया है. इस प्रकार सन 2014 से 2017 की इस अवधि में भारत की रैंकिंग में 30 स्थानों का सुधार आ चुका है. विभिन्न वर्षों में भारत की ईज ऑफ़ डूइंग बिज़नस की रैंकिंग इस प्रकार है:
वर्ष | रैंकिंग |
2018 | 100 |
2017 | 130 |
2016 | 130 |
2015 | 134 |
2014 | 142 |
2013 | 132 |
2. ग्लोबल कंपीटीटिवनेस इंडेक्स: इस रिपोर्ट का प्रकाशन विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा किया जाता है. सन 2014 में 144 देशों की रैंकिंग में भारत का स्थान 71 वां था जो कि 2017 में 137 देशों में 40 वां हो गया है. इस प्रकार इस रैंकिंग में भी मोदी सरकार में कार्यकाल में भारत की रैंकिंग में बहुत सुधार हुआ है.
3. ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स: इस रैंकिंग को कॉर्नेल विश्वविद्यालय, इनसीड ( INSEAD) और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया जाता है. वर्ष 2014 में 143 देशों में भारत की रैंकिंग 76 थी जो कि 2017 में सुधरकर 130 देशों में 60 पर आ गयी है.
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4. वर्ल्ड ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स: इस रिपोर्ट को हर साल संयुक्त राष्ट्र संघ के संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत जारी किया जाता है. वर्ष 2014 में 187 देशों में भारत की रैंकिंग 135 थी जो कि वर्ष 2017 में सुधरकर 131 पर आ गयी है.
5. ग्लोबल कनेक्टिविटी इंडेक्स: इस रिपोर्ट को हुवाई (Huawei) नामक प्राइवेट कंपनी के द्वारा जारी किया जाता है. वर्ष 2014 में 25 देशों में भारत की रैंकिंग 15 थी जो कि 2017 में बढ़कर 43 हो गयी है. इस प्रकार भारत को 18 स्थानों का नुकसान हुआ है.
6. ग्लोबल पीस इंडेक्स: इस रैंकिंग को अर्थशास्त्र और शांति संस्थान (Institute for Economics and Peace) के एक्सपर्ट की देखरेख में जारी किया जाता है. वर्ष 2014 में भारत की रैंकिंग 163 देशों में 144 थी जो कि 2017 में थोडा सुधरकर 137 पर पहुँच गयी है.
7. करप्शन परसेप्शन इंडेक्स: इस रिपोर्ट को ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी किया जाता है. इसे वर्ष 1996 से हर साल पब्लिश किया जा रहा है. 2014 से 2017 की अवधि में इसमें 7 अंकों का सुधार हुआ है.
2014: 176 देशों में 86 वां स्थान
2017: 176 देशों में 79 वां स्थान
8. ग्लोबल हंगर इंडेक्स: इस इंडेक्स को अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा जारी किया जाता है. यह संस्थान भूख के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में प्रगति और असफलताओं का आकलन करता है. इस रिपोर्ट को हर वर्ष जारी किया जाता है. इस इंडेक्स में भारत 2014 से 2017 की अवधि में 45 रैंकिंग नीचे आया है अर्थात नुकसान हुआ है. यह भारत सरकार के लिए चिंता का विषय बन गया है.
2014: 120 देशों में 55 वां स्थान
2017: 119 देशों में 100 वां स्थान
9. FDI कॉन्फिडेंस इंडेक्स: A.T.केअरनी (A.T. Kearney) एक अमेरिकी वैश्विक प्रबंधन परामर्शदाता फर्म है; जिसके द्वारा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) विश्वास सूचकांक हर साल जारी किया जाता है. इस इंडेक्स में भारत को 2014 से 1 स्थान का नुकसान हुआ है.
2014: 25 देशों में 7 वां स्थान
2017: 25 देशों में 8 वां स्थान
10. सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल इंडेक्स: सतत विकास लक्ष्य सूचकांक को संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किया जाता है. इन गोल को हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये हुए हैं. इन लक्ष्यों को सभी देशों को 2030 तक प्राप्त करना है. वर्ष 2014 से 2017तक भारत को इस रैंक में 10 स्थानों का नुकसान हो चुका है.
2014: 149 देशों में 110 वां स्थान
2017: 157 देशों में 116 वां स्थान
11. वर्ल्ड हैपीनेस इंडेक्स: यह रैंकिंग बताती है कि कोई देश कितना खुश है. इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क (United Nations Sustainable Development Solutions Network) द्वारा जारी किया जाता है. पहली वर्ल्ड हैपीनेस इंडेक्स रिपोर्ट 1 अप्रैल, 2012 को जारी की गई थी. इस रैंकिंग में भी भारत को 2013 की तुलना में 5 रैंकिंग स्थानों का नुकसान हो चुका है.
2013: 158 देशों में 117 वां स्थान
2017: 155 देशों में 122 वां स्थान
12. ग्लोबल प्रोस्पेरिटी इंडेक्स: यह लेगैटम इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित वार्षिक रैंकिंग है. इसमें किसी देश की धनाढ्यता को मापा जाता है. यह रैंकिंग विभिन्न कारकों पर आधारित है जिसमें संपत्ति, आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, निजी कल्याण और जीवन की गुणवत्ता शामिल है. इस रैंकिंग में भी भारत की स्थिति 2014 से 2 स्थान नीचे आ गयी है.
2014: 142 देशों में 102 वां स्थान
2017: 149 देशों में 104 वां स्थान
13. इकनोमिक फ्रीडम इंडेक्स: आर्थिक स्वतंत्रता का सूचकांक 1995 में द हेरिटेज फाउंडेशन और द वॉल स्ट्रीट जर्नल द्वारा विश्व के देशों में लोगों को कितनी आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त है इस बात का आकलन किया जाता है. यदि किसी देश जैसे चीन में लोगों को स्वतंत्र रूप से आर्थिक निर्णय लेने की आजादी नही है तो ऐसे देश की रैंकिंग ख़राब होती है. भारत में 2013 के बाद से 2017 तक आर्थिक आजादी कम हुई है या लोगों के आर्थिक निर्णय लेने में सरकार/नीतियों/लाल फीताशाही का हस्तक्षेप ज्यादा रहा है.
2014: 186 देशों में 120 वां स्थान
2017: 186 देशों में 143 वां स्थान
सारांश के रूप में यह कहा जा सकता है कि वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकाल में बिज़नस और इकॉनमी के 13 इंडेक्स में से 7 में भारत की रैंकिंग में गिरावट आई है, 3 में मामूली सुधार हुआ है और 3 में स्थिति बहुत अच्छी हुई है. यहाँ यह भी बताना जरूरी है कि इन 13 इंडेक्स में से 7 इंडेक्स में भारत की रैंकिंग दुनिया में 100 या इससे भी नीचे है जो कि भारत सरकार के लिए चिंता की बात होनी चाहिए.
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