रासायनिक आनुवंशिकी जैव रसायन और आनुवांशिकी का एक संयोजन है. बायोकैमिस्ट्री सेल्युलर घटकों के संरचना और कार्य, जैसे कि प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, न्यूक्लिक एसिड, अन्य जैविक अणुओं, और जीवन की प्रक्रियाओं के दौरान उनके कार्यों और परिवर्तनों का विक्रय करता है. आनुवंशिकी मूल रूप से आनुवंशिकता का एक अध्ययन है, विशेषकर वंशानुगत संचरण के तंत्र, और समान या संबंधित जीवों के बीच विरासत में मिली विशेषताओं की भिन्नता. आनुवांशिकी की कुछ शाखाओं में जैवरासायनिक आनुवंशिकी, साइटोजिनेटिक्स, विकास आनुवांशिकी, आनुवंशिक इंजीनियरिंग आदि शामिल हैं. इस प्रकार, जैव रासायनिक आनुवांशिकी, आनुवांशिकी की एक वह शाखा है जिसमें जीनों के रासायनिक संरचना और उसके तंत्र के बारे में पढ़ते है, जिसके द्वारा ही जीन का नियंत्रण, विनियमित और प्रोटीन का संश्लेषण होता है. इस लेख में जीन और जैव रासायनिक एंजाइम के कार्य के संबंध में और उनके नियंत्रण के बारे में अध्ययन करेंगे.
ब्रिटेन के एक चिकित्सक आर्किबोल्ड गैरड (Garrod) ने 1909 में ‘उपापचय में अन्तर्जात त्रुटी’ (In born errors in metabolism) नामक पुस्तक में मनुष्य के कई वंशागत रोगों का वर्णन किया. उनका निष्कर्ष था कि इस प्रकार के रोगी मनुष्यों में कुछ विशिष्ट एन्जाइमों की कमी होती है, जिससे उनका उपापचय (metabolism) सामान्य नहीं होता है.
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डीएनए और आरएनए के बीच क्या अंतर है?
इस सन्दर्भ में, बीडिल (Beadle) एवं टैटम (tatum) ने न्यूरोस्पोरा नामक कवक पर विस्तृत अध्ययन से यह सिद्ध किया कि ‘प्रत्येक जीन एक विशेष एन्जाइम’ (One gene-one Enzyme) उत्पादित करता है. यह एन्जाइम एक विशेष जैवरासायनिक अभिक्रिया (Biochemical reaction) का नियंत्रण करता है. यह अध्ययन जैवरासायनिक आनुवंशिकी का आधार माना जाता हैं. इससे सर्वप्रथम जीन द्वारा लक्षण पैदा करने की क्रियाविधि (Gene expression) के बारे में ज्ञान हुआ. इस कार्य के लिए बिडिल एवं टैटम (तथा Lederberg, एक अन्य कार्य के लिए) को 1958 में नोबल पुरस्कार दिया गया.
मुलर (Muller) ने 1927 में एक्स-किरणों (X-rays) द्वारा ड्रोसोफिला में जीन उत्परिवर्तन (mutation) पैदा किया. इस प्रकार उन्होंने मनुष्य द्वारा जीन में इच्छा अनुसार परिवर्तन कर सकने की संभावना प्रमाणित की एवं उसके लिए एक विधि प्रदान की. इसी वर्ष (1927 में) थोड़े समय बाद Stadler ने जौ में एक्स-किरणों द्वारा उत्परिवर्तन प्रेरित कर मुलर के परिणामों की पुष्टि की. इस कार्य के लिए मुलर को 1946 में नोबल पुरस्कार से अलंकृत किया गया.
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