Chapter-wise revision notes on Chapter-1: Reflection of light class 10th Science notes is available here.
Reflection of light is one of the important chapters of UP Board class 10 Science. So, students must prepare this chapter thoroughly. The notes provided here will be very helpful for the students who are going to appear in UP Board class 10th Science Board exam 2019.
प्रकाश की परिभाषा : प्रकाश, ऊर्जा का ही एक रूप है जो हमारी दृष्टि के संवेदन का कारण है। प्रकाश द्वारा अपनाए गए सरल पथ को किरण कहते हैं। अनेक किरणों से किरण पुंज बनता है जो अपसारी तथा अभिसारी हो सकते हैं। आइये अब बात करते हैं प्रकाश के पहले चेप्टर, “प्रकाश का परावर्तन पर” :
प्रकाश का परावर्तन : जब किसी वस्तु पर पड़ने वाली प्रकाश किरण वस्तु पर पड़ने के बाद पुनः उसी माध्यम में लौट जाती है तो प्रकाश की यह परिघटना प्रकाश का परावर्तन कहलाती है|
परावर्तन के नियम- 1. आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब, सभी एक ही ताल में स्थित होते हैं|
2. परावर्तन कोण हमेशा आपतन कोण के बराबर होता है|
गोलीय दर्पण : गोलीय दर्पण वह दर्पण है, जिसका कम से कम एक पृष्ट वक्रीय हो| ये दो प्रकार के होते हैं :
अवतल दर्पण : वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ट अन्दर की तरफ वक्रीय होता है| यह मुख्य अक्ष के समांतर आने वाले प्रकाश किरणों को परावर्तन के पश्चात् एक बिंदु पर मिला देता है|
उत्तल दर्पण : वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ट बाहर की तरफ वक्रीय होता है| यह मुख्य अक्ष के समांतर आने वाले प्रकाश किरणों को परावर्तन के पश्चात् एक बिंदु पर फैला देता है|
गोलीय दर्पण के लिए कुछ मुख्य बिन्दुओं से परिचित होना आवश्यक है :
1. मुख्य अक्ष : दर्पण के ध्रुव और वक्रता केंद्र को मिलाने वाली रेखा दर्पण की मुख्य अक्ष कहलाती है|
2. वक्रता त्रिज्या : गोलिये दर्पण कांच के जिस गोले का भाग होता है उसकी त्रिज्या को दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहते हैं|
3. वक्रता केंद्र : गोलीय दर्पण कांच के जिस खोखले गोले का भाग होता है| उस गोले के केंद्र को दर्पण का वक्रता केंद्र कहते हैं|
4. मुख्य फोकस : गोलिये दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर चलने वाली, प्रकाश की किरण, दर्पण से परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के जिस बिंदु पर वास्तव में मिलती है या मिलती हुई प्रतीत होती है उस बिंदु को दर्पण का मुख्य फोकस कहते हैं|
5. फोकस दूरी : गोलिये दर्पण का ध्रुव तथा मुझी बिंदु के बीच की दूरी को उस दर्पण की फोकस दूरी कहते हैं|
6. फोकस तल : फोकास बिंदु से होकर जाने वाली तथा मुख्य अक्ष के लम्बवत तल को फोकस तल कहते हैं|
गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या और उसकी फोकस दूरी में सम्बन्ध :
गोलीय दर्पण की फोकस दूरी उसके वक्रता त्रिज्या के आधे के बराबर होती है| अर्थात :
f = R/2
वास्तविक और आभासी प्रतिबिम्ब में अंतर :
वास्तविक प्रतिबिम्ब : जिन प्रतिबिम्ब को परदे पे प्राप्त किया जा सकता है वास्तविक प्रतिबिम्ब कहलाता है| वास्तविक प्रतिबिम्ब सामान्यत: अवतल दर्पण द्वारा और उत्तल लेंस द्वारा प्राप्त किया जा सकता है| ये प्रतिबिम्ब उलटे प्राप्त होते हैं|
आभासी प्रतिबिम्ब : जिन प्रतिबिम्बों को परदे पे प्राप्त नही किया जा सकता उसे आभासी प्रतिबिम्ब कहते हैं| आभासी प्रतिबिम्ब सामान्यत: अवतल लेंस द्वारा और उत्तल दर्पण, समतल दर्पण द्वारा प्राप्त किया जा सकता है| ये प्रतिबिम्ब सीधे प्राप्त होते हैं|
गोलीय दर्पण द्वारा प्रकाश किरणों के परावर्तन का नियम :
गोलीय दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब उस बिंदु पर बनता है जहाँ कम से कम परावर्तित किरणें एक दुसरे को काटती हैं या काटती हुई प्रतीत होती हैं| गोलीय दर्पण से परावर्तन के मुख्य नियम कुछ इस प्रकार हैं :
1. दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली प्रकाश किरण दर्पण से परावर्तन के पश्चात् उसके फोकस से होकर गुज़रती है या गुज़रती हुई प्रतीत होती है|
2. दर्पण के फोकस से होकर गुजरने वाली प्रकाश किरण, परावर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है|
3. दर्पण के वक्रता केंद्र से गुजरने वाली प्रकाश किरण, परावर्तित होने के पश्चात् उसी दिशा में वापस लौट जाती है|
4. प्रकाश की किरण जो दर्पण के ध्रुव पर आपतित होती है, मुख्य अक्ष के साथ वहीँ कोण बनती हुई वापस परिवर्तित हो जाती है|
अवतल दर्पण द्वारा अलग-अलग स्तिथियों में रखे वस्तु का प्रतिबिम्ब, आकार तथा परिस्तिथि :
वस्तु की स्तिथि | प्रतिबिम्ब की स्तिथि | प्रतिबिम्ब का आकार | प्रतिबिम्ब की प्रकृति |
ध्रुव एवं फोकस के मध्य | दर्पण के पीछे | बड़ा | आभासी एवं सीधा |
फोकस पर | अनंत पर | अत्यधिक बड़ा | वास्तविक एवं उल्टा |
फोकस एवं वक्रता केद्र के मध्य | वक्रता केंद्र के बाहर | बड़ा | वास्तविक एवं उल्टा |
वक्रता केद्र पर | वक्रता केद्र पर | वास्तु के बराबर | वास्तविक एवं उल्टा |
वक्रता केद्र के बाहर | फोकास एवं वक्रता केंद्र के मध्य | छोटा | वास्तविक एवं उल्टा |
अन्नत पर | फोकस पर | अत्यधिक छोटा | वास्तविक एवं उल्टा |
अवतल दर्पण के मुख्य उपयोग :
1. टोर्च, हेड लाइटों, वाहनों की हेड लाइटों से प्रकाश का किरण पुंज प्राप्त करने के लिए प्रवर्तक के रूप में|
2. चेहते का बड़ा प्रतिबिम्ब देखने के लिए, ह्जमती दर्पण के रूप में|
3. दंत्चिकित्सको द्वारा दांतों के बड़े प्रतिबिम्ब देखने के लिए|
4. सौर भट्टियों में सूर्य के प्रकाश को केन्द्रित करने के लिए बड़े अवतल दर्पण का उपयोग किया जाता है|
उत्तल दर्पण द्वारा अलग-अलग स्तिथियों में रखे वस्तु का प्रतिबिम्ब, आकार तथा परिस्तिथि :
वस्तु की स्तिथि | प्रतिबिम्ब की स्तिथि | प्रतिबिम्ब का आकार | प्रतिबिम्ब की प्रकृति |
अनंत पर | दर्पण के पीछे फोकस पर | अत्यधिक छोटा | आभासी एवं सीधा |
ध्रुव तथा अनंत के मध्य | दर्पण के पीछे फोकस एवं ध्रुव के मध्य | छोटा | आभासी एवं सीधा |
उत्तल दर्पण के मुख्य उपयोग :
उत्तल दर्पण का उपयोग दर्पण के पश्च दृश्य दर्पण के रूप में किया जाता है| इसका मुख्य कारण यह है कि उत्तल दर्पण हमेशा सीधा प्रतिबिम्ब बनाते हैं| साथ ही उत्तल दर्पण समतल दर्पण की तुलना में गाड़ी चालक को अपने पीछे के बड़े छेत्र को देखने में काफी सहायक होता है|
दर्पण से दूरियां नापने की चिन्ह परिपाटी : प्रकाश में दर्पण से वास्तु की दूरी(u), दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी(v), फोकस दूरी(f) आदि को उचित चिन्ह देने होते हैं| इसके लिए निर्देशांक जय्मिति की परिपाटी अपने जाती है जो कुछ इस प्रकार हैं :
1. दर्पण पर प्रकाश किरणें हमेशा बाई ओर से डाली जाती हैं|
2. समस्त दूरियां दर्पण के ध्रुव से मुख्य अक्ष के साथ नपी जाती हैं|
3. आपतित किरणों की दिशा में नपी गई दूरियां धनात्मक चिन्ह के साथ ली जाती हैं|
4. आपतित किरणों के विपरीत दिशा में नपी गई दूरियां ऋणात्मक चिन्ह के साथ ली जाती हैं|
5. वास्तु तथा प्रतिबिम्ब की लम्बईयाँ धनात्मक तथा मुख्य अक्ष के निचे की ओर ऋणात्मक ली जाती हैं|
इन नियमों के अनुसार अवतल दर्पण की दूरी ऋणात्मक तथा उत्तल दर्पण की दूरी धनात्मक होती है|
दर्पण सूत्र तथा दर्पण द्वारा उत्पन्न रेखीय आवर्धन :
दर्पण सूत्र के द्वारा दर्पण के ध्रुव से वास्तु की दूरी (u), दर्पण के ध्रुव से ही प्रतिबिम्ब की दूरी (v), एवं दर्पण की फोकस दूरी (f) के मध्य सम्बन्ध प्रदर्शित किया जाता है|
1/v+1/u = 1/f
रेखीय आवर्धन : दर्पण द्वारा उत्पन्न रेखीय आवर्धन-प्रतिबिम्ब की ऊँचाई एवं वस्तु की ऊँचाई का अनुपात, वास्तु का रेखिक आवर्धन कहलाता है|
अर्थात, आवर्धन = प्रतिबिम्ब की ऊँचाई / वास्तु की ऊँचाई
m = h’/ h = -v/u जहाँ, m= वास्तु का आवर्धन
h’= प्रतिबिम्ब की ऊँचाई
h= वास्तु की ऊँचाई
आवर्धन के मान में ऋणात्मकचिन्ह बताता है प्रतिबिम्ब वास्तविक है तथा आवर्धन का धनात्मक मान बताता है प्रतिबिम्ब आभासी है|
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