हम सभी जानते हैं कि जब हम आकाश में कोई वस्तु फेंकते हैं या किसी फिसलन वाली ढलान पर एक गेंद या चट्टान को रखते हैं तो वह नीचे आ जाती है| इसका कारण पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल है जिसके कारण पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है| यह भी कहा जाता है कि पूरे ब्रह्मांड में प्रत्येक वस्तु दूसरे वस्तु को खींच रही है।
लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि तमिलनाडु के महाबलिपुरम में “कृष्ण का बटरबॉल (Butterball)” नाम से मशहूर 250 टन वजन एवं 20 फीट ऊँची तथा 5 मीटर चौड़ी एक चट्टान 4 फीट से भी कम आधार वाले एक पहाड़ी की ढलान पर स्थित है| इसे “कृष्ण का बटरबॉल (Butterball)” इसलिए कहा जाता है क्योंकि मक्खन (Butter) कृष्ण का पसंदीदा भोजन है और ऐसी मान्यता है कि यह मक्खन खाते वक्त स्वर्ग से गिर गया था। इस चट्टान को तमिल में 'वनिरैकल' कहा जाता है जिसका अर्थ “आकाश के देवता का पत्थर” है। यह चट्टान इस प्रकार स्थित है कि देखने पर ऐसा लगता है कि अभी ढलान से नीचे आ जाएगी| लेकिन, यह चट्टान अभी भी अपने स्थान पर स्थिर है और पर्यटक इसकी छाया में बैठ सकते हैं। यहाँ तक कि सुनामी, भूकंप या चक्रवात आने के बावजूद यह चट्टान 1200 से भी अधिक वर्षों से अपने स्थान पर स्थिर है|
वास्तव में, यह चट्टान एक अर्द्धवृत्त (half circle) की तरह दिखता है जिसका एक हिस्सा खंडित है लेकिन चट्टान किस प्रकार खंडित हुआ, इसकी जानकारी किसी को नहीं है| “कृष्ण का बटरबॉल (Butterball)” हमारे आधुनिक प्रौद्योगिकी के लिए एक चुनौती है कि कैसे एक 250 टन का चट्टान 4 वर्ग फीट से भी कम क्षेत्रफल वाले एक छोटे आधार पर खड़ा हो सकता है?
जहाँ एक तरफ भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि प्राकृतिक क्षरण के कारण चट्टान का आकार असामान्य हो गया है दूसरी तरफ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह चट्टान एक प्राकृतिक संरचना है|
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कुछ लोगों का कहना है कि चट्टान की स्थिरता का कारण “घर्षण” और “गुरूत्व केन्द्र” हो सकते हैं| उनका मानना है कि घर्षण चट्टान या गेंद को नीचे फिसलने से रोकती है, जिसकी वजह से यह जमीन पर झुका हुआ है, जबकि गुरूत्व केंद्र इसे छोटे से संपर्क क्षेत्र में खड़े होने के लिए संतुलन प्रदान करता है| जबकि कई लोगों का मानना है कि इस चट्टान को देवताओं द्वारा वर्तमान स्थिति में रखा गया था क्योंकि वे हजारों साल पहले अपनी शक्ति साबित करना चाहते थे|
इस बटरबॉल की स्थिति के पीछे जो भी कारण हो लेकिन इसने विज्ञान को असफल साबित कर दिया है|
इस चट्टान से संबंधित एक कहानी भी है| 1908 में मद्रास के गवर्नर अर्थुर लॉली ने इस चट्टान को हटाने का निर्णय किया क्योंकि उसे डर था की कहीं यह चट्टान पहाड़ की चोटी से गिरकर पहाड़ की तलहटी में बसे शहर को नुकसान न पंहुचा दे| अतः उसने चट्टान को हटाने के लिए सात हाथियों की मदद ली थी लेकिन चट्टान अपनी जगह से एक इंच भी नहीं खिसका| क्या यह विज्ञान है या अलौकिक शक्तियों का काम है| यह बटरबॉल गुरुत्वाकर्षण को चुनौती दे रहा है|
Source: www.ancient-origins.ne
एक मान्यता यह भी है कि पल्लव राजा नरसिंहवर्मन (630 से 668 ईस्वी तक दक्षिण भारत का शासक) ने सर्वप्रथम इस चट्टान को हटाने का प्रयास किया था क्योंकि उसका मानना था कि यह एक “दिव्य चट्टान” है अतः मूर्तिकारों द्वारा इसे छुआ नहीं जाना चाहिए| लेकिन यह चट्टान अपने स्थान पर स्थिर रहा| वास्तव में यह चट्टान पेरू या माचू पिचू के मेगालिथिक चट्टान “ओल्लनटेटैम्बो” (Ollantaytambo) से भी भारी है।
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इसके अलावा बटरबॉल (Butterball) “तंजौर बोम्मई” के नाम से प्रसिद्ध कीचड़ से बनने वाली गुड़िया के निर्माण के लिए भी प्रेरणास्रोत है। ऐसी मान्यता है कि जिस प्रकार यह चट्टान एक छोटे आधार पर खड़ा है और ढलान से नहीं गिरता है उससे चोल राजा राज राज प्रथम (1000 ईस्वी) बहुत प्रभावित था| अतः उसने कीचड़ से गुड़िया बनाने की परंपरा की शुरूआत की थी जो कभी गिरती नहीं थी| इस गुड़िया को अर्द्धगोलीय आधार पर बनाया जाता है जो झुकी हुई रहती है लेकिन कभी गिरती नहीं है|
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“कृष्ण का बटरबॉल (Butterball)” वर्तमान में एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन गया है, जहाँ लोग इस अद्भुत प्राकृतिक चट्टान को देखने के लिए आते है और इस चट्टान की तस्वीरें लेते है। इसके अलावा यह स्थान स्थानीय लोगों के लिए एक पिकनिक स्पॉट बन गया है। कुछ लोग इस चट्टान को धक्का देकर पहाड़ी से नीचे गिराने का असफल प्रयास करते हैं और थककर इसकी छाँव में बैठ जाते है|
गीता के श्लोक 18.66 में भगवान कृष्ण ने कहा है:
“सर्वधर्मान् परित्यज्य” “माम् एकम् शरणम् व्रज”
“अहम् त्वा सर्वपापेभ्य” “मोक्षयिष्यामि मा शुच”
जिसका अर्थ है “तुम सभी धर्मों को त्याग कर मेरे शरण में आ जाओ, मै तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा”|
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