प्राचीन भारत का साहित्य प्रसिद्ध विद्वानों के प्रभाव के कारण अत्यन्त विपुल एवं विविधता से भरी हुई है। इन विद्वानों में राजा, संत, ऋषि, गणितज्ञ और कला एवं साहित्य के जानकार लोग थे। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, व्याकरण आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, सैन्य विज्ञान आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं। प्राचीन भारत के राजाओ की एक अच्छी बात ये थी की वो विद्वानों और उनके विद्वता काफी से प्रभावित थे तथा उनको हर संभव संरक्षण देते थे ताकि उनके साहित्य के माध्यम से एक विरासत बनया जा सके जिससे आने वाली पीड़ी लाभ उठा सके।
प्राचीन भारतीय विद्वानों और उनके संरक्षकों की सूची
विद्वान | संरक्षक |
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हेमचन्द्र | अन्हिलवाड़ के कुमारपाल चालुक्य |
नागार्जुन | कनिष्क |
अमरसिंह | चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य |
रविकीर्ति | पुलकेशिन |
वाकपतिराज भवभूति | कन्नौज के यशोवर्मन |
हरिसेन | समुद्रगुप्त |
राजशेखर | प्रतिहार शासक महीपाल और महेन्द्रपाल |
सोमदेव | पृथ्वीराज III |
चन्दबरदाई | पृथ्वीराज चौहान |
बाणभट्ट | हर्ष |
दण्डिन | पल्लव शासक नरसिंहवर्मन |
भारवि | पल्लव शासक सिंहविष्णु |
गुणाध्याय | सातवाहन शासक हाल |
जिनसेन | राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष |
जयदेव | बंगाल के शासक लक्ष्मणसेन |
बिल्हण | कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य VI |
लक्ष्मीधर | कन्नौज के गहड़वाल शासक गोविन्दचन्द्र |
कल्हण | कश्मीर के शासक हर्ष |
प्राचीन भारत में गणित, विज्ञान, खगोल विज्ञान और धर्म आदि जैसे कई क्षेत्रों का विकास हुआ जबकि चोल वंश के समय वास्तुकला, तमिल साहित्य और काँस्य जैसे कार्यों में भी बहुत विकास हुआ था। इसी दौरान कई प्रसिद्ध विद्वान हुये जैसे आर्यभट्ट, कालिदास और वारहमिहिर जिन्होंने कई क्षेत्रों में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया था। दार्शनिकों ने यह भी पता लगाया था कि पृथ्वी चपटी नहीं बल्कि गोल है और यह अपनी धुरी पर स्वयं घूर्णन करती है जिसके फलस्वरूप चंद्र ग्रहण होता है। प्राचीन भारत में न केवल विज्ञान का बल्कि साहित्य का भी विकास हुआ, गुप्त साम्राज्य के समय में प्रसिद्ध पंचतंत्र की कहानियाँ, अत्यंत लोकप्रिय कामसूत्र, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों को भी लिखा गया था।
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