कंकाल तंत्र मानव शरीर को सख्त संरचना या रूपरेखा प्रदान करता है जो शरीर की रक्षा करता है। यह अस्थियों, उपास्थियों, शिरा (टेंडन) और स्नायु/ अस्थिरज्जु (लिगमेंट) जैसे संयोजी ऊतकों से बना है। क्या आप जानते हैं कि यदि कंकाल बिना किसी जोड़ के हो तो किसी प्रकार की गतिविधि नहीं होगी और मानव शरीर एक पत्थर के सिवा कुछ नहीं रह जाएगा?
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शरीर में मौजूद कंकाल के आधार पर, कंकाल दो प्रकार के होते हैं:
1. बाहरी (एग्जो) कंकाल: शरीर के बाहरी परत में पाए जाने वाले कंकाल को बाहरी कंकाल कहते हैं। ये मूल रूप से अपरिपक्व बाहरी त्वचा (ectoderm) या मध्यजनस्तर (mesoderm) से बनता है। यह भीतरी अंगों की रक्षा और संरक्षण करता है और मृत होता है। जैसे मछलियों के शल्क, कछुए का बाहरी सख्त परत, पंक्षियों के पंख आदि।
2. आंतरिक (एंडो) कंकाल: यह कंकाल मानव शरीर के भीतर पाया जाता है और यह मध्यजनस्तर (mesoderm) से बनता है। ये लगभग सभी कशेरुकी जंतुओं में पाया जाता है और शरीर की मुख्य संरचना का निर्माण करता है। क्या आप जानते हैं कि ये कंकाल मांसपेशियों से ढंके होते हैं?
संरचना के आधार पर आंतरिक कंकाल दो मूल घटकों से बना होता है:
1. हड्डी: यह फाइबर और मैट्रिक्स से बना ठोस, सख्त और मजबूत संयोजी ऊतक है। इसका मैट्रिक्स प्रोटीन से बना होता है और इसमें कैल्शियम और मैगनीशियम की भी प्रचूरता होती है। क्या आप जानते हैं कि हड्डियों की मजबूती उसमें मौजूद खनिजों की वजह से होती है? हड्डी का मैट्रिक संकेंद्रिक छल्लों के रूप में होता है जिसे लामेल्ला कहते हैं। हड्डी की कोशिकाओं को ऑस्टियोब्लास्ट (osteoblasts) or या ऑस्टियोसाइट्स (osteocytes), कहते हैं। ये तरल से भरे स्थानों जिसे गर्तिका (lacunae) कहते हैं, में लामेल्ला के बीच रहता है।
हड्डी के चारो तरफ दोहरी परत वाली एक झिल्ली होती है जो पेरिओस्टियम (periosteum) नाम के संयोजी ऊतक से बनी होती है। इस झिल्ली के माध्यम से मांसपेशियां, अस्थिरज्जु और स्नायु जुड़े होते हैं।
मोटी और लंबी हड्डियों में खोखले गड्ढ़े जैसी जगह होती हैं, जिन्हें अस्थि गुहा (marrow cavity) कहते हैं। इस गुहा में एक तरल पदार्थ पाया जाता है। इस पदार्थ को अस्थि मज्जा (bone marrow) कहते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि मध्य हिस्से में अस्थि मज्जा पीले रंग का होता है और हड्डियों के किनारों पर लाल रंग का | इसलिए क्रमशः पीला अस्थि मज्जा और लाल अस्थि मज्जा के नाम से जाना जाता है। लाल अस्थि मज्जा का काम आरबीसी बनाना और सफेद अस्थि मज्जा का काम डब्ल्यूबीसी बनाना होता है।
हड्डी के काम:
- यह शरीर को आकार प्रदान करता है।
- मस्तिष्क, फेफड़ों आदि जैसे महत्वपूर्ण अंगों की सुरक्षा करता है।
- शरीर और सहारा देने वाली मांसपेशियों (एंकर मसल्स) को संरचनात्मक सहायता प्रदान करता है।
- कैल्शियम और फॉस्फेट का भंडारण करता है।
2. उपास्थि (Cartilage): यह विशेष संयोजी ऊतक है जो ठोस और कम संवहिनी नाड़ियों वाला होता है। इसका मैट्रिक्स(matrix)प्रोटीनों से बना होता है और कैल्शियम लवणों की वजह से थोड़ा सख्त हो जाता है लेकिन यह ठोस, चीज के जैसा और मजबूत होता है। साथ ही इसमें थोड़ा लचीलापन भी होता है। इसी कारण उपास्थि हड्डी के जैसा सख्त और कड़ा नहीं होता।
इसके मैट्रिक्स में कोलाजन फाइबरों और जीवित कोशिकाओं का अच्छा खासा नेटवर्क होता है जिसे कॉन्ड्रोसाइट्स (chondrocytes) कहते हैं। ये तरल से भरे स्थानों जिन्हें गर्तिका(lacunae)कहते हैं, में मौजूद होते हैं। याद रखें रक्त वाहिनियां मैट्रिक्स में नहीं होतीं। उपास्थि के चारो तरफ एक झिल्ली पाई जाती है जिसे पेरीकॉन्ड्रियम (perichondrium) कहा जाता है।
उपास्थिशरीरकेनिम्नलिखितहिस्सोंमेंहोतेहैं– कान के बाहरी हिस्से, नाक की नोक, कंठच्छद, अंतरकशेरुकी डिस्क (intervertebral discs), लंबी अस्थियों के छोरों पर, पसलियों के नीचले हिस्से पर और श्वसननली के छल्लों यानि वायु नली में।
मानव शरीर में विभिन्न ग्रंथियां और हार्मोन्स
आईए अब मानव कंकाल तंत्र के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।
पूरे मानव शरीर के कंकाल में 206 अस्थियां होती हैं और यह मुख्य रूप से दो हिस्सों से बना हैः
1. अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton– 80 अस्थियां)
वह कंकाल जो शरीर के मुख्य अक्ष का निर्माण करता है अक्षीय कंकाल तंत्र कहलाता है। इसमें खोपड़ी की हड्डी, मेरुदंड, पसलियां एवं उरोस्थि (sternum) होते हैं।
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• अक्षीयकंकालखोपड़ीकेघटक: मानव की खोपड़ी में 29 अस्थियां होती हैं जिनमें से 8 अस्थियां मानव के मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करती हैं और खोपड़ी के अस्थि के जोड़ (sutures) से जुड़ी होती हैं। बाकी की अस्थियां मनुष्य का चेहरा बनाती है जिनमें से 14 अस्थियां उल्लेखनीय रूप से प्रतिवादी होती हैं।
• मेरुदंड (Vertebral Column): यह शरीर की मुख्य धुरी है और एक ऐसे छड़ की तरह दिखती है जो लंबी और मोटी अस्थियों से बना है। यह मनुष्य के शरीर के गठीले सतह में सिर के मध्य से कमर तक पीछे की ओर होता है। यह 33 अस्थियों से मिल कर बनता है और पृष्ठरज्जु (notochord) द्वारा संयोपूर्वक और सुचारू रूप से विकसित होता है। केंद्र में रीढ़ की प्रत्येक अस्थि खोखली होती है।
• उरोस्थि (Sternum): पसलियों को जोड़ने वाली अस्थि को उरोस्थि कहते हैं और यह मनुष्य के शरीर के छाती के मध्य में होती है।
• पसली (Rib): मनुष्य के शरीर में पसलियों की 12 जोड़ियां पाई जाती हैं और ये अस्थि की रेशे जैसी संरचना होती है।
इसलिए अक्षीय कंकाल में:
खोपड़ी – में कपाल, चेहरा और कान (श्रवण अस्थिका – auditory ossicles) होते हैं।
हिऑइड (Hyoid) – अंग्रेजी के अक्षर U - के आकार वाली अस्थि या जटिल अस्थियां, ठोड़ी और कंठनली के बीच गर्दन में होती हैं।
मेरुदंज – मेरुडंद का अस्थिखंड।
छाती (Thoracic Cage) – पसलियां और उरोस्थि (वक्षस्थल की हड्डी) होती है।
2. उपबंध कंकाल ( Appendicular Skeleton – 126 bones)
यह तंत्र हाथों और पैरों की अस्थियों एवं उनके अवलंब से बनता है। इसके अंतर्गत कमर, हाथों, पैरों आदि की अस्थियां आती हैं।
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• गर्डल्स (Girdles): अक्षीय कंकाल पर आगे और पीछे वाले अंगों (forelimb और hindlimb ) को समायोजित करने वाले वृत्तचाप जैसी दो संरचनाओं को गर्डल्स कहते हैं। आगे वाले अंग (forelimb) के गर्डल को आंसपेशी घेरा (pectoral girdle) और पीछे वाले अंग (hindlimb) के गर्डल को श्रोणि चक्र (pelvic girdle) कहा जाता है।
आंसपेशी घेरा में सामने वाले अंग की अस्थि और श्रोणि चक्र में पीछे वाले अंग की अस्थि क्रमशः ह्यूमेरस (humerus) और फीमर (femur) से जुड़े होते हैं और उलूखल (Acetabulum) नाम से जाने जानी वाली गुहा में समायोजित होती है।
• आंसपेशी गर्डल्स और हाथ की अस्थियां: मनुष्य के शरीर में आंसपेशी गर्डल्स के दोनों हिस्से अलग हो जाते हैं और प्रत्येक हिस्से में सिर्फ एक सपाट और तिकोनी अस्थि एक साथ पाई जाती है जिसे कंधे की हड्डी (scapula) कहा जाता है और हाथों की अस्थियों को जोड़ने के लिए आंसपेशी गर्डल्स स्वयं जोड़ प्रदान करती हैं।
सामने वाले प्रत्येक अंग (फोरलिंब) और हाथ में पांच हिस्से होते हैं: उपरी हाथ, सामने वाला हाथ, कलाई, हथेली और उंगलियां।
ह्यूमेरस, रेडियस अल्न, कलाई की हड्डी, करभिकास्थिक (Metacarpals) और उंगलियों/ अंगूठे की हड्डी क्रमशः उपरी हाथ, सामने का हाथ, कलाई और उंगलियों की हड्डियां होती हैं।
• श्रोणि चक्र और पैर की हड्डियां: श्रोणि चक्र मुख्य रूप से तीन हड्डियों से मिल कर बना है– कूल्हे की हड्डी (Ilium), इस्चियम (Ischium) और पुरोनितंबास्थि (Pubis)। व्यस्कों में ये तीनों हड्डियां एक दूसरे से परस्पर जुड़ी होती हैं। इन हड्डियों के संधि स्थल पर एक संकरी गुहा होती है जिसे एसीटाबुलम कहते हैं। इसमें फीमर हड्डी का सिरा जुड़ा होता है। यहां तक कि श्रोणि चक्र पैर की हड्डियों को जोड़ने के लिए जोड़ प्रदान करता है। मनुष्यों में फीमर, टिबिया, फिब्युला, टारसाल्स, मेटा टरसाल्स आदि जैसे कई प्रकार के पैर की हड्डियां पाईं जाती हैं। इन हड्डियों में से टिबिया फिबुला मुक्त होता है और फीमर एवं टिबिया फिबुला के संधि स्तान पर एक गोलाकार अस्थि पाई जाती है जिसे घुटने के उपर की हड्डी (knee bone petal) कहते है। मनुष्य का पैर इस स्थान पर सिर्फ एक बार मुड़ता है।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि उपबंध कंकाल में:
आंसपेशी घेरा (Pectoral Girdle) – में कंधे की हड्डियां होती हैं (हंसली और स्कंधास्थि)।
उपरी अंग (Upper Limbs) – में हाथों की हड्डियां होती हैं।
श्रोणी चक्र (Pelvic Girdle) - में कूल्हे की हड्डियां होती हैं।
नीचले अंग – पैरों और पंजों की हड्डियां होती हैं।
हड्डियों के विकार
गठिया (Arthritis): बुढ़ापे में होने वाली यह आम बीमारी है। यह जोड़ों में होने वाले सूजन से होता है जिसकी वजह से जोड़ों में बहुत दर्द और जकड़न हो जाती है। इसका कोई इलाज नहीं है सिर्फ दर्दनिवारक दवाओं का ही उपयोग किया जा सकता है।
- अस्थिसंधिशोथ (Osteoarthritis): यह जोडों की अपक्षयी बीमारी है जिसमें जोड़ों की हड्डियां कमजोर होती चली जाती हैं और नई हड्डियां तेजी से बढ़ने लगती हैं।
- संधिवात गठिया (Rheumatoid arthritis): यह इम्युनोग्लोब्युलिन (IgM) नाम के गठिया जैसे कारक की उपस्थिति की वजह से होता है और साथ ही इसका प्राथमिक लक्षण होता है श्लेष झिल्ली में सूजन।
- गाउट अर्थराइटिस (Gout arthritis): यह यूरिक एसिड के बहुत अधिक बनने या उसे शरीर से बाहर करने में शरीर की अक्षमता की वजह से होता है। मूल रूप से यह बीमारी आहार संबंधी है इसलिए मरीज को मांस खाने से बचना चाहिए।
अस्थि– सुषिरता (Osteoporosis): यह उम्र पर निर्भर करने वाला क्रमिक विकार है जिसमें हड्डियों का द्व्यमान कम हो जाता है, हड्डियों की बनावट में धीरे– धीरे गिरावट होने लगती है, हड्डी आसानी से टूटने लगते हैं और इसके प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
जोड़:
जोड़ वह स्थान होते हैं जो दो या दो से अधिक हड्डियों या एक हड्डी और उपास्थि को जोड़ने का काम करते हैं।
जोड़ के प्रकार:
गतिशीलता एवं गति के आधार पर जोड़ों को तीन श्रेणियों में रखा जाता है: पूर्ण जोड़ (Perfect Joint), अपूर्ण जोड़ (Imperfect Joint) और स्थिर जोड़ (Fixed Joint)
1. पूर्ण जोड़ (Perfect Joint): इस प्रकार के जोड़ में हड्डियां अलग अलग दिशाओं में गतिशील हो सकती हैं और उनमें गतिशीलता या गति साथ– साथ हो सकती है। इस प्रकार के जोड़ों वाली हड्डियों पर उनके किनारों पर उपास्थि की पतली परत भी पाई जाती है और हड्डियों के जोड़ों पर स्नायुबंधन होते हैं।
पूर्ण जोड़ को पांच उपश्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- बॉल और सॉकेट जोड (Ball and Socket Joint): इस प्रकार के जोड़ में गेंद के आकार वाली हड्डियां आंसपेशी गर्डल और ह्यूमरस अस्थि के जोड़, फीमर और श्रोणी बंध आदि के जोड़ जैसे किसी भी दिशा में गतिमान हो सकते हैं। इसमें फीमर और ह्यूमरस हड्डी किसी भी दिशा में मुड़ा या गतिशील हो सकती है।
- हिन्ज ज्वाइंट (Hinge Joint): इस प्रकार के जोड़ वाली अस्थियां सिर्फ एक ही दिशा में घूम या गतिशील हो सकती हैं। उदाहरण कोहनी और घुटने के जोड़।
- चूल जोड़ (Pivot Joint): इस प्रकार के जोड़ में तेज नुकीला उभार होता है और दूसरी हड्डी में संकरा अंतर जिसमें नुकीला उभार समायोजित हो जाता है। यह एक धुरी की तरह गति करता है। उदाहरण– माध्यमिक कशेरुकी अस्थि और अटूल्स (atulus)।
- ग्लाइडिंग ज्वाइंट (Gliding Joint): इस प्रकार के जोड़ में हड्डियां एक दूसरे को निर्धारित सीमा तक धकेल सकती हैं लेकिन कभी मुड़ या झुक नहीं सकतीं। उदाहरण, कुहनी और अंडप आदि के जोड़
2. सैडल ज्वाइंट (Saddle joint): इस प्रकार के जोड़ में एक हड्डी का उभार दूसरी हड्डी के अंतराल में पूरी तरह से समायोजित हो जाता है लेकिन आसानी और सुचारू रूप से गतिशील या घूम नहीं पाता। जैसे– थिंब के अंडप और मेटा कार्पल के जोड़।
3. अपूर्ण जोड़: श्लेष गुहा और स्नायुबंधन के भीतर पाई जाने वाली हड्डियों में इस प्रकार के जोड़ नहीं होते। इसके अलावा, इन अस्थियों में कुछ गतिशील गतिविधियां भी पाई जाती हैं। जैसे श्रोणी चक्र के प्युबिस अस्थि में पाया जाता है और कशेरुकाओं के जोड़ों के बीच भी।
4. स्थिर जोड़ (Fixed Joint): इस प्रकार के जोड़ स्थिर होते हैं और किसी प्रकार की गति नहीं दर्शाते इसलिए स्थिर जोड़ कहलाते हैं। जैसे– खोपड़ी और गर्डल्स की हड्डियां।
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