भारत के 9 ऐसे क्षेत्र जो अलग राज्य की मांग कर रहे हैं

Mar 9, 2017, 12:38 IST

भारत में समय-समय पर नए राज्यों के निर्माण की मांग उठती रहती हैl यह मांग किसी क्षेत्र विशेष में हावी कुछ स्वायत संगठनो और किसी क्षेत्र विशेष में प्रभावी विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा उठाई जाती रही हैl भारत में नए राज्यों और क्षेत्रों के गठन का अधिकार केवल भारत के राष्ट्रपति के हाथों में हैंl राष्ट्रपति नए राज्यों की घोषणा कर किसी मौजूदा राज्य से किसी क्षेत्र विशेष को अलग कर सकते हैं या दो या दो से अधिक राज्यों या इसके कुछ हिस्सों को आपस में विलय कर सकते हैं। इस लेख में हम भारत के उन क्षेत्रों का विवरण दे रहे हैं, जहाँ वर्तमान समय में अलग राज्य के लिए मुहीम चलाए जा रहे हैंl

भारत में समय-समय पर नए राज्यों के निर्माण की मांग उठती रहती हैl यह मांग किसी क्षेत्र विशेष में हावी कुछ स्वायत संगठनो और किसी क्षेत्र विशेष में प्रभावी विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा उठाई जाती रही हैl लेकिन सवाल यह उठता है इस बात की क्या गारंटी है कि वांछित राज्य को बना दिए जाने के बाद वह सब हासिल किया जा सकता है जिसके आधार पर नए राज्य का गठन किया जाता हैl इस सवाल के पक्ष और विपक्ष में जानकारों के अपने-अपने तर्क हैं जिनमे से कुछ आशंकित अस्थिरता की ओर ध्यान दिलाते हैं जबकि कुछ राज्य के विकास-कार्यों और औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए इसे जरूरी कदम बताकर उसका समर्थन करते हैंl
भारत में नए राज्यों और क्षेत्रों के गठन का अधिकार केवल भारत के राष्ट्रपति के हाथों में हैंl राष्ट्रपति नए राज्यों की घोषणा कर किसी मौजूदा राज्य से किसी क्षेत्र विशेष को अलग कर सकते हैं या दो या दो से अधिक राज्यों या इसके कुछ हिस्सों को आपस में विलय कर सकते हैं। इस लेख में हम भारत के उन क्षेत्रों का विवरण दे रहे हैं, जहाँ वर्तमान समय में अलग राज्य के लिए मुहीम चलाए जा रहे हैंl

भारत के 9 ऐसे क्षेत्र जो अलग राज्य की मांग कर रहे हैं

1. हरित प्रदेश (पश्चिमी उत्तर प्रदेश)
हरित प्रदेश एक प्रस्तावित राज्य है जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वर्तमान छह मंडलों आगरा, अलीगढ़, बरेली, मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर के अंतर्गत आने वाले 22 जिलों को शामिल करने की मांग होती रही हैl राष्ट्रीय लोक दल पार्टी के नेता अजीत सिंह इस नए राज्य के प्रबल समर्थक हैंl दिसम्बर 2009 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भी हरित प्रदेश के गठन का भी समर्थन किया थाl
 harit pradesh map
उत्तर भारत के मैदान का संरचनात्मक विभाजन
भारत का पूर्वी तटीय मैदान

2. पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश)
पूर्वांचल उत्तर-मध्य भारत का एक भौगोलिक क्षेत्र है जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य का पूर्वी छोर शामिल हैl यह क्षेत्र उत्तर में नेपाल, पूर्व में बिहार राज्य, दक्षिण में मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र और पश्चिम में उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र घिरा हुआ हैl पूर्वांचल क्षेत्र में तीन प्रभाग - पश्चिम में अवध क्षेत्र, पूर्व में भोजपुरी क्षेत्र और दक्षिण में बघेलखंड क्षेत्र शामिल हैl
पूर्वांचल में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भोजपुरी हैl यह क्षेत्र 23 सांसदों को चुनकर भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में भेजता हैl इसके अलावा 403 सदस्यों वाले उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा में इस क्षेत्र से 117 विधायक चुने जाते हैंl
purvanchal
3. बोडोलैंड (उत्तरी असम)
एक अलग बोडोलैंड राज्य के निर्माण के लिए शुरू हुए आंदोलन के परिणामस्वरूप भारत सरकार, असम राज्य सरकार और बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स के बीच एक समझौता हुआ थाl 10 फरवरी, 2003 को हस्ताक्षरित इस समझौते के अनुसार असम में बोडो-बहुतायत वाले चार जिलों के 3082 गांवों में शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए असम सरकार की अधीनस्थ इकाई के रूप में बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन किया गया थाl बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद समय-समय पर अलग राज्य की मांग भी उठाती रही हैl
 Bodo land
Image source: Wikipedia
4. सौराष्ट्र (दक्षिणी गुजरात)
अलग सौराष्ट्र राज्य के लिए सौराष्ट्र राज्य आंदोलन की शुरूआत 1972 में वकील रतिलाल तन्ना के नेतृत्व मंस हुई थी, जो पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के करीबी सहयोगी थेl सौराष्ट्र संकलन समिति के मुताबिक सौराष्ट्र क्षेत्र के 300 से अधिक संगठन अलग राज्य की मांग का समर्थन करते हैंl इस समिति का यह भी दावा है कि गुजरात के अन्य हिस्सों की तुलना में सौराष्ट्र अधिक अविकसित क्षेत्र हैl इस क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में मान्यता देने की मांग के पीछे इस क्षेत्र में बेहतर जल आपूर्ति का अभाव, नौकरी के अवसरों की कमी और युवाओं के पलायन को प्रमुख कारणों के रूप में उद्धृत किया गया है। भाषाई रूप से सौराष्ट्र क्षेत्र राज्य के बाकी हिस्सों भिन्न है और इस क्षेत्र में सौराष्ट्र बोली उपयोग में लाई जाती हैl
saurashtra map
Image source: Saurashtra Ginners Association
5. लद्दाख (पूर्वी जम्मू-कश्मीर)
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में लद्दाख के लिए केंद्रशासित प्रदेश का वादा किया था लेकिन अंतर्राष्ट्रीय कानून ने भारत को इसे विभाजित करने से रोक दिया क्योंकि जम्मू-कश्मीर राज्य संयुक्त राष्ट्र संघ में पूरी तरह से विवादित क्षेत्र है। इसके बावजूद लद्दाख को अलग राज्य के रूप में मान्यता देने की मांग समय-समय पर उठती रही है क्योंकि यह क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से जम्मू-कश्मीर से बहुत अलग हैl
वास्तव में लद्दाख को एक पर्यटन स्थल और भारत के स्विट्जरलैंड के रूप में विकसित किया जा सकता है लेकिन दुःख की बात यह है कि भारत सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार अब तक इसे विश्व स्तर के पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में सफल नहीं हो पाई हैl
 Ladakh map
Image source: विकिपीडिया
भारत का पश्चिमी तटीय मैदान
6. गोरखालैंड (उत्तरी पश्चिम बंगाल)
गोरखालैंड पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में दार्जिलिंग पहाड़ियों और द्वार से घिरा क्षेत्र है जहाँ के निवासी गोरखा (नेपाली) लोग अलग राज्य की मांग समय-समय पर उठाते रहे हैंl गोरखालैंड के लिए आंदोलन को गति उन लोगों की जातीय-भाषाई-सांस्कृतिक भावनाओं के कारण प्राप्त हुई है जो खुद को गोरखा के रूप में संबोधित करते हैं। इस क्षेत्र को एक अलग प्रशासनिक क्षेत्र के रूप में मान्यता देने की मांग 1907 में ही शुरू हुआ था जब दार्जिलिंग के “हिलमैन एसोसिएशन” ने मॉर्ले-मिंटो सुधार समिति को इसके संबंध में एक ज्ञापन सौंपा थाl
अलग गोरखालैंड राज्य के गठन के लिए आंदोलन को गति 1980 के दशक के दौरान प्राप्त हुई जब “सुभाष घीसिंग” की अगुआई में “गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF)” ने एक हिंसक आंदोलन किया था।
 Gorkhaland map
Image source: Wikipedia
7. कोंगूनाडू (दक्षिणी तमिलनाडु)
जनसांख्यिकी, संस्कृति, भाषाविज्ञान एवं अन्य कारकों पर आधारित और पश्चिम तमिलनाडु, दक्षिणी कर्नाटक एवं केरल के मध्य-पूर्व के क्षेत्रों को मिलाकर एक अलग राज्य “कोंगूनाडू” (जिसे कोंगादेसम भी कहा जाता है) के गठन के लिए समय-समय पर मांग की जाती रही हैl इस राज्य की राजधानी के लिए “कोयम्बटूर” का नाम प्रस्तावित किया गया हैl
ऐसा दावा किया जाता है कि राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा योगदानकर्ता होने के बावजूद “कोंगूनाडू” क्षेत्र को लगातार सरकारों द्वारा अनदेखा किया गया है। इस क्षेत्र के अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करने वाले कई राजनीतिक संगठन जैसे “कोंगूनाडू मक्कल देशिया काची”, “कोंगू वेल्लाला ग्वार्थवर्गाल पेरावई” और “तमिलनाडु कोंगू इलाग्नार पेरावई” इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
 Kongu Nadu Tamil Nadu
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8. विदर्भ (पूर्वी महाराष्ट्र)
विदर्भ एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें पूर्वी महाराष्ट्र के अमरावती और नागपुर संभाग शामिल हैं। 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम में विदर्भ को बॉम्बे राज्य में रखा गया था। इसके कुछ ही समय बाद राज्यों के पुनर्गठन आयोग ने नागपुर को राजधानी बनाकर अलग विदर्भ राज्य की स्थापना की सिफारिश की थी लेकिन इसके बजाय इसे महाराष्ट्र राज्य में ही शामिल किया गया जिसका गठन 1 मई, 1960 को हुआ थाl विदर्भ को एक अलग राज्य के रूप में विकसित करने का इच्छा “लोकनायक बापूजी अनले” और “बृजलाल बियानी विदर्भ” द्वारा व्यक्त किया गया था।
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Image source: www.vidarbhamaza.com
9. मिथिलांचल (उत्तर बिहार)
मिथिलांचल एक प्रस्तावित राज्य है, जिसमें बिहार एवं झारखंड के मैथिली बोलने वाले क्षेत्र और ऐतिहासिक मिथिला क्षेत्र का हिस्सा शामिल हैl इस प्रस्तावित राज्य में कुछ अंगिका और बज्जिका बोलने वाले जिलों को भी शामिल किया जाएगा जिन्हें मैथिली की सहायक बोलियां माना जाता हैl मिथिलांचल की राजधानी के बारे में अभी निर्णय नहीं लिया गया हैl ऐसा माना जा रहा है कि इस क्षेत्र के सबसे बड़े  सांस्कृतिक केंद्र दरभंगा को राजधानी के रूप में नामित किया जा सकता हैl इसके अलावा मुजफ्फरपुर, बेगुसराय और पूर्णिया भी राजधानी शहर होने के मजबूत दावेदार हैंl
 Mithilanchal
Image source: Bihar Post
अंत में हम यह कह सकते हैं कि चाहे बड़ा राज्य हो या छोटा राज्य वहां की सरकार की प्राथमिकता उस राज्य का विकास होना चाहिएl अगर बड़ा राज्य होने के कारण किसी राज्य के विकास में समस्या उत्पन्न हो रही है तो उसे छोटे राज्यों में बाँट देना चाहिए, लेकिन इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि इससे किसी दल या व्यक्ति को राजनीतिक लाभ न मिलेl  
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