आखिर भारतीय अर्थव्यवस्था को प्लास्टिक के नोटों से क्या फायदा होगा?

Jun 23, 2017, 18:55 IST

भारत में नकली नोटों की बढती समस्या और कागज के नोटों के जल्दी फटने के कारण होने वाले वित्तीय नुकशान को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2014 से देश के पांच शहरों: कोच्चि, मैसूर, जयपुर, शिमला और भुवनेश्वर में प्रयोग के तौर पर 10 रुपये के प्लास्टिक के नोट चलाने का फैसला लिया हैl

भारत में नकली नोटों की बढती समस्या और कागज के नोटों के जल्दी फटने के कारण होने वाले वित्तीय नुकशान को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2014 से देश के पांच शहरों: कोच्चि, मैसूर, जयपुर, शिमला और भुवनेश्वर में प्रयोग के आधार पर 10 रुपये के प्लास्टिक के नोट चलाने का फैसला लिया है, हालांकि अभी इसे अमल में नही लाया जा सका है l इस काम के लिए शुरुआत में 10 रुपये मूल्य के लगभग 1 अरब नोट्स छापे जायेंगे l  उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक हर वर्ष दो लाख करोड़ रुपये के गंदे या कटे-फटे नोट बदलता है।

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प्लास्टिक के नोट्स की शुरुआत सबसे पहले कहां हुई थी ?

सबसे पहले प्लास्टिक नोट्स की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में 1988 में हुई थी l इसे विकसित करने का श्रेय रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया, मेलबर्न यूनिवर्सिटी और राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन को जाता है। इस प्रयोग में सफलता मिलने पर 1996 में इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया था।

कितने देशों में प्लास्टिक के नोट्स चलन में हैं?

ऑस्ट्रेलिया के बाद प्लास्टिक के नोट्स कनाडा, इस्राइल,  न्यूजीलैंड, फिजी, पापुआ न्यू गिनी,वियतनाम रोमानिया, मॉरिशस और ब्रुनेई जैसे देशों में चलन में आए। वैसे पिछले पांच वर्षों के दौरान दुनिया के करीब 30 देशों ने प्लास्टिक के नोट्स को अपनाया है। भारत में रिजर्व बैंक इस दिशा में वर्ष 2010 से काम कर रहा है।

(विभिन्न देशों में प्रचलित प्लास्टिक नोट्स)

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Image Source:CNN Mone

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प्लास्टिक के नोटों के क्या फायदे हैं ?

1. वर्ष 2012-13 में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने विभिन्न मूल्य वर्गों के नोट्स छापने में 2,376 करोड़ रुपये खर्च किए थे जो कि कुल मुद्रा का लगभग 1.5% है। यहाँ पर यह बात बताना जरूरी है कि कागज के बने नोट्स लगभग 2 साल तक ही चलते हैं जबकि पॉलीमर नोट के नाम से भी पुकारे जाने वाले प्लास्टिक से बने नोट करीब 5 साल चलते हैं। इस प्रकार प्लास्टिक के नोट्स बनाकर सरकार हर साल अपना बहुत खर्चा बचा सकती है l

(ऑस्ट्रेलिया में प्लास्टिक के नोट का फाड़ने का प्रयास करता हुआ व्यक्ति)

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Image Source:Livemint

2. सुरक्षा के मामले में भी प्लास्टिक नोट कहीं बेहतर हैं। इस पर किए जाने वाले सुरक्षा उपायों की नकल नहीं हो सकती है। जैसे, ट्रांसपेरेंट विंडो, वॉटरमार्क का निशान या ऐसे अंकों का प्रयोग, जो आसानी से नहीं दिखेंगे।

3. जहां कागज के नकली नोट छापने के लिए पेपर प्रिंटिंग आसान होती है जबकि  प्लास्टिक पर प्रिंटिंग आसान नहीं होती।

(नकली कागज के नोट और उनको बनाने की सामग्री)

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4. प्लास्टिक के नोट्स कागज के नोटों की तुलना में काफी साफ-सुथरे होते हैंl

5. प्लास्टिक के नोटों का वजन, पेपर वाले नोटों की तुलना में कम होता है। इस कारण इनको एक जगह से दूसरी जगह ले जाना भी आसान होता है।

6. पर्यावरण की रक्षा के मामले में भी प्लास्टिक के नोटों का बड़ा योगदान हो सकता है क्योंकि ये नोट ज्यादा समय तक चलते हैं इस कारण ऊर्जा की कम जरुरत होगी जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग में 32% तक की कमी आने का अनुमान व्यक्त किया गया है l

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Image Source:googleimage

7. कागज वाले पुराने नोटों को नष्ट करने के लिए जलाना पड़ता था (हालांकि अब उनको काटने के लिए एक मशीन का सहारा लिया जाता है) जबकि प्लास्टिक वाले नोटों को रिसाइकिल कर छर्रे बनाए जाते हैं या फिर उनसे प्लास्ट‍िक की दूसरी चीजें बनाई जा सकती हैं।

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Image Source:Siasat

8. जैसा कि हम सब जानते हैं कि कागज के नोट्स बहुत से इंसानों के हाथों से होकर गुजरते हैं इस कारण इन नोटों पर कई खतरनाक बैक्टीरिया चिपक जाते हैं जो कि स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं को पैदा करते हैं l लेकिन प्लास्टिक के नोटों में यह समस्या इतनी बड़ी नही होगी क्योंकि बैक्टीरिया प्लास्टिक के नोटों पर जल्दी नही चिपक पाता है और यदि चिपक भी जाता है तो नोटों को धोकर उनको हटाया भी जा सकता है l

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Image Source:Times of India

 ज्ञातब्य है कि लिलेन-कॉटन बेस्ड डॉलर नोटों का इस्तेमाल अमेरिका में होता है और वाशी बेस्ड नोट येन केवल जापान में छापे जाते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्लास्टिक नोट कई मामलों में कागज के नोटों से बेहतर है। इन नोटों के काटने फटने की आशंका भी कम रहती है और तो और यदि इन नोटों को गलती से धुल भी दिया जाये तो भी ये फटते नही हैं l

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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