भारत अपनी जरूरत का करीब 80% तेल आयात करता है तथा यह भारत की सबसे बड़ी आयात की जाने वाली वस्तु (item) है|अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल प्रति बैरल के हिसाब से बेचा जाता है। एक बैरल में तकरीबन 159 लीटर कच्चा तेल आता है। सऊदी अरब, भारत के लिए सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है |
पेट्रोलियम पदार्थों के खनन से लेकर इस्तेमाल होने तक की पूरी प्रक्रिया क्या है ?
स्टेप 1:
जैसा कि हम सबको पता है कि खाड़ी के देशों में कच्चे तेल का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है| यहाँ पर कच्चे तेल के कुए बहुत बड़ी मात्रा में हैं और इन्ही कुओं से कच्चा तेल निकाला जाता है जो कि देश की घरेलू जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अन्य देशों को भी निर्यात कर दिया जाता है |
अब सामान्य लोगों को समझाने के लिए हम यह मान लेते हैं कि भारत की हिन्दुस्तान पेट्रोलियम (HP) नाम की कंपनी सऊदी अरब से कच्चे तेल का आयात करती है | हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, सऊदी अरब की किसी कम्पनी से तेल का आयात करती है और समझौते की शर्त के अनुसार सऊदी कंपनी उस कच्चे तेल को नजदीकी भारतीय बंदरगाह पर पहुंचा देती है | इसे FOB (Free on Board) कहते हैं |
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स्टेप 2: समझौते के अनुसार, तेल की परिवहन लागत को भारत की हिन्दुस्तान पेट्रोलियम को वहन करना है, इसे ओसियन मूल्य (Ocean Price) कहते हैं | इस प्रकार अब भारत के बंदरगाह पर पहुंचे तेल की कुल लागत होगी :
“तेल की लागत : FOB मूल्य + OCEAN मूल्य”
स्टेप 3: जब तेल से लदा जहाज भारतीय बंदरगाह पर पहुँच जाता है तो केंद्र सरकार इस पर आयात कर, सीमा शुल्क, बंदरगाह शुल्क (बंदरगाह के प्रयोग के लिए) लगाती है, साथ ही बीमा कम्पनी को भी बीमा शुल्क का भुगतान किया जाता है | ये सभी भुगतान हिन्दुस्तान पेट्रोलियम ही करती है |
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अब तक के प्रमुख सौर मिशनों का एक संक्षिप्त परिचय
स्टेप 4 : अब हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, इस कच्चे तेल को तेल परिशोधन कारखानों (Oil Refineries) तक पहुंचाती है ताकि यह प्रयोग करने योग्य हो जाये | यहां पर इसी कच्चे तेल को विभिन्न क्रियायों से गुजारकर इसमें से पेट्रोल, डीज़ल, मिटटी का तेल तथा अन्य पदार्थ भी निकाले जाते हैं | इस परिशोधन प्रक्रिया में जो सबसे शुद्ध तरल पदार्थ सबसे ज्यादा शुद्ध होता होता है उसे पेट्रोल कहा जाता है और जो इससे कम शुद्ध होता है उसे डीजल और उसके बाद सबसे कम शुद्ध तेल को मिटटी का तेल कहा जाता है |
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स्टेप 5: अब इस परिशोधित तेल को तेल विपणन कंपनियों (जैसे हिंदुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम, इंडियन आयल कारपोरेशन इत्यादि) द्वारा रिटेल स्टोरों या अपने-अपने पेट्रोल पम्पों को भेज दिया जाता है | इसकी परिवहन लागत भी तेल विपणन कम्पनियां ही वहन करती हैं |
स्टेप 6 : इन रिटेल दुकानों या पेट्रोल पम्पों पर केंद्र सरकार उत्पादन ड्यूटी (Excise Duty), राज्य सरकार बिक्री कर (VAT) लगाती है | यहाँ पर यह बात गौर करने वाली है कि प्रत्येक राज्य में वैट की दर अलग-अलग है, इसी कारण हर राज्य में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में अंतर पाया जाता है | यदि कोई राज्य पेट्रोलियम पदार्थों पर ज्यादा कर लगता है तो वहां पर इसकी कीमतें बढ़ जाती है |
दिल्ली और हरियाणा सरकारें कम कर लगातीं है इसी कारण इन दो राज्यों में पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य अन्य राज्यों की तुलना में थोड़े कम होते हैं | इसी स्टेज पर तेल विपणन कम्पनियाँ अपना मुनाफा भी कुल मूल्य में जोड़ लेतीं हैं |
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स्टेप 7: अब इन्ही पेट्रोल पम्पों से डीजल और पेट्रोल उपभोक्ताओं तक सीधे इस्तेमाल के लिए पहुँच जाता है | हम और आप यहीं से अपनी करों और मोटरसाइकिल में तेल भरवाते हैं |
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तेल का मूल्य कैसे निर्धारित होता है?
जिस मूल्य पर हम पेट्रोल खरीदते हैं उसका करीब 48 फीसदी उसका बेस मूल्य होता है। इसके अलावा करीब 35 फीसदी एक्साइज ड्यूटी, करीब 15 फीसदी सेल्स टैक्स, कस्टम ड्यूटी 2 फीसदी लगती है।
पूरी प्रक्रिया को समझाने के बाद अब हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि तेल का मूल्य कैसे निर्धारित होता है| इसे इस चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है:
तो ये थी भारत में टैक्स लगाने की प्रक्रिया.उम्मीद है कि इस लेख को पढने के बाद आप समझ गये होंगे कि भारत में डीजल और पेट्रोल पर टैक्स कैसे लगाया जाता है (How is the price of petrol determines)? ऐसे ही और रोचक लेख पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें.
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