भारत की पर्वतीय रेलवे: एक नजर तथ्यों पर

Aug 26, 2016, 17:43 IST

दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे, नीलगिरि पर्वतीय रेलवे, और कालका-शिमला रेलवे को क्रमशः  1999, 2005 एवं 2008 में यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर स्थल का दर्जा प्रदान किया गया था । दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे (पश्चिम बंगाल) को 1881 में शुरू किया गया था। 46 किलोमीटर की लंबाई और सिंगल रेलवे ट्रैक वाले नीलगिरि पर्वतीय रेलवे को 1908 में शुरू किया गया था। 96 किलोमीटर की सिंगल रेलवे ट्रैक वाले कालका शिमला रेलवे को 9 नवंबर, 1903 को यातायात के लिए शुरू किया गया था।

दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे, नीलगिरि पर्वतीय रेलवे, और कालका-शिमला रेलवे को क्रमशः 1999, 2005 एवं 2008 में यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर स्थल का दर्जा प्रदान किया गया था। दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे (पश्चिम बंगाल) को 1881 में, नीलगिरि पर्वतीय रेलवे को 1908 में एवं कालका शिमला रेलवे को 1903 को यातायात के लिए शुरू किया गया था।

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A- दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे

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1. दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे भारत में पहाड़ी यात्री रेल सेवा का पहला अद्भुत उदाहरण है।
2. इसकी शुरूआत 1881 में दार्जिलिंग स्टीम ट्रामवे कंपनी द्वारा किया गया था।
3. इसका निर्माण कार्य सर एशले ईडन (तब पश्चिम बंगाल सरकार के लेफ्टिनेंट गवर्नर) के अनुरोध पर नियुक्त एक समिति और फ्रेंकलिन प्रेस्टेज (पूर्वी बंगाल रेलवे कंपनी के एजेंट) की सिफारिशों द्वारा शुरू किया गया था।
4. इस रेलवे लाइन का कार्य 1879 में शुरू हुआ था और जुलाई 1881 में इसे पूरा कर लिया गया था।
5. 15 सितंबर, 1881 को कंपनी ने इसका नाम बदलकर दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे कंपनी रख दिया था।
6. 20 अक्टूबर, 1948 को दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे कंपनी को भारत सरकार द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया था।
7. यह रेलवे ट्रैक 88 किलोमीटर (55 मील) का है जिसमें पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच ट्रेनें चलती है।
8. घूम स्टेशन इस रेलवे का सबसे ऊँचा स्टेशन है जिसकी ऊँचाई 7,407 फुट है| यह भारत का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन है|
9. भारत की यह पहली पर्वतीय रेलवे है जिसे सबसे पहले 1999 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्रदान किया गया था।
10. इस रेलमार्ग पर सभी ट्रेनें छोटी लाइन (नैरो गेज) पर चलती है।

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B. नीलगिरी पर्वतीय रेल

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1. नीलगिरि पर्वतीय रेल सिंगल ट्रैक एवं मीटर गेज लाइन वाली रेलमार्ग है|
2. इसकी लंबाई लगभग 46 किलोमीटर (29 मील) है और इसे  1908 में शरू किया गया था।
3. यह दक्षिण भारत (तमिलनाडु) में 'ब्लू माउंटेन्स' के नाम से प्रसिद्ध नीलगिरी पहाड़ियों में स्थित पर्वतीय शहर उडगमंडलम (उंटी) को मेट्टूपलयम शहर के साथ जोड़ता है ।
4. यह भारत का एकमात्र 'रैक रेलवे' है।
5. इस रेलमार्ग पर अल्टरनेट बिटिंग सिस्टम (ABT) ,जिसे आमतौर पर 'रैक एंड पिनियन' के रूप में जाना जाता है, के साथ भाप इंजनों का प्रयोग किया जाता है।
6. इस रेलमार्ग पर चलने वाली रेलगाड़ी को अपनी यात्रा के दौरान 208 मोड़ो, 16 सुरंगों और 250 पुलों से गुजरना पड़ता है।
7. इस रेलमार्ग पर ऊपर की ओर यात्रा करने के दौरान 290 मिनट (4.8 घंटे) का समय लगता है जबकि ढलान पर यात्रा करने के दौरान 215 मिनट (3.6 घंटे) का समय लगता है।
8. यह 'रेक एंड पिनियन तकनीक' वाली सबसे पुरानी और सबसे तेज रेल है।
9. इस रेलमार्ग पर मेट्टूपलयम शहर से 7.2 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी स्टेशन कल्लर है, और यह दूरी 12 सुरंगों से होकर गुजरता है। इसके बाद रैक रेलमार्ग शुरू होती है|
10. जुलाई 2005 में यूनेस्को ने नीलगिरि पर्वतीय रेलवे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी थी और यह मान्यता मिलने के बाद इसकी आधुनिकीकरण की योजना को स्थगित कर दिया गया।

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C- कालका-शिमला रेलवे

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1. कालका शिमला रेलवे हिमाचल प्रदेश (उत्तर पश्चिमी भारत) के हिमालयी  तलहटी में स्थित है।
2. कालका-शिमला रेलवे का निर्माण कार्य दिल्ली-अंबाला-कालका रेलवे कंपनी द्वारा 2 फीट (610 मिमी) की छोटी लाइन वाली पटरियों के साथ 1898 में शुरू किया गया था। यह लाइन 7234 फीट (2,205 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है।
3. 95.66 किलोमीटर (59.44 मील) की लंबाई वाले इस रेलमार्ग को 9 नवंबर, 1903 को यातायात के लिए खोल दिया गया था।
4. भारतीय युद्ध विभाग द्वारा निर्धारित मानंदड़ो का पालन करते हुए सन् 1905 में इस लाइन को 2 फीट 6 इंच  (762 मिमी) का कर दिया गया।
5. इस सेक्शन पर 103 सुरंग होने के कारण शिमला में आखिरी सुरंग को 103  नंबर सुरंग नाम दिया गया है। इसी कारण इस सुरंग के ठीक ऊपर बने बस स्टॉप को भी अंग्रेजों के जमाने से ही “103 स्टेशन” के नाम से जाना जाता है|
6. इस परियोजना के मुख्य अभियंता एच एस हेरलिंगटन थे।
7. भारत में इस परियोजना का उद्धाटन भारत के वायसराय 'लॉर्ड कर्जन' द्वारा किया गया था।
8. इस परियोजना की अनुमानित लागत 86,78,500 रुपये थी लेकिन निर्माण के दौरान यह लागत दोगुनी हो गयी थी।
9. 1 जनवरी 1906 को इस रेलवे को सरकार द्वारा इसके निर्माता कंपनी से 1.71 करोड़ रुपये में खरीद लिया गया।
10. 2008 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया।

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