भारत में फेरा और फेमा: मुख्य विशेषताएं, उद्देश्य और अंतर

Jun 10, 2016, 17:07 IST

सन 1997-98 के बजट में सरकार ने फेरा-1973 के स्थान पर फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) को लाने का प्रस्ताव रखा। दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा प्रस्तावित किया गया था। राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद 1999 में फेमा प्रभाव में आ गया। फेमा के तहत, विदेशी मुद्रा से संबंधित प्रावधानों को संशोधित और उदार बनाया गया तांकि विदेशी व्यापार को आसान बनाया जा सके। सरकार को इस बात की उम्मीद है कि फेमा विदेशी मुद्रा बाजार को अनुकूल विकास प्रदान करेगा।

सन 1997-98 के बजट में सरकार ने फेरा-1973 के स्थान पर फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) को लाने का प्रस्ताव रखा। दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा प्रस्तावित किया गया था। राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद 1999 में फेमा प्रभाव में आ गया। फेमा के तहत, विदेशी मुद्रा से संबंधित प्रावधानों को संशोधित और उदार बनाया गया तांकि विदेशी व्यापार को आसान बनाया जा सके। सरकार को इस बात की उम्मीद है कि फेमा विदेशी मुद्रा बाजार को अनुकूल विकास प्रदान करेगा।

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा), 1973:-

विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा) 1973 में लागू किया गया था और यह 1 जनवरी, 1974 को यह अस्तित्व में आया। इस कानून की धारा 29 भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के संचालन से संबंधित है। इस धारा के अनुसार, सभी गैर-बैंकिंग विदेशी शाखाओं और 40 फीसदी से अधिक विदेशी इक्विटी वाले सहायक कंपनियों को नए उपक्रमों की स्थापना करने, मौजूदा कंपनियों के शेयर खरीदने, या पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से प्राप्त किसी भी अन्य कंपनी के शेयर खरीदने के लिए सरकार की अनुमति प्राप्त करनी होती है।

यह नियम भुगतान विनियमन के कानूनों में संशोधन करने उसे मजबूत बनाता है। इसका संबंध देश के विदेशी मुद्रा संसाधनों के संरक्षण के लिए विदेशी मुद्रा और प्रतिभूतियों में लेन-देन, अप्रत्यक्ष रूप से विदेशी मुद्रा को प्रभावित करने वाले लेनदेन व मुद्रा के आयात तथा निर्यात एवं देश के आर्थिक विकास से है।

फेरा की विशेषताएं:

(1) इस अधिनियम को विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 कहा जाता है।

(2) यह पूरे भारत में लागू था।

(3) यह भारत या देश बाहर रहने वाले सभी भारतीय नागरिकों, भारत में पंजीकृत या निगमित संस्थाओं, शाखाओं, कंपनियों या निकाय कॉर्पोरेट पर लागू होता था।

(4) यह केन्द्र सरकार द्वारा तय की गई उस तारीख से लागू हुआ जब सरकारी राजपत्र में अधिसूचना जारी की गई I

इन दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रमुख नियम यह था कि भारत में कार्यरत सभी विदेशी कंपनियों की सभी शाखाओं को कम से कम 60 फीसदी स्थानीय इक्विटी भागीदारी के साथ खुद को भारतीय कंपनियों में परिवर्तित करना होगा। इसके अलावा इसके तहत सभी विदेशी सहायक कंपनियों की शेयर इक्विटी को 40% या उससे नीचे लाना था। देश के आर्थिक विकास पर इस अधिनियम का वास्तविक प्रभाव पूरी तरह से नकारात्मक रहा क्योंकि इससे बड़े व्यापारिक घरानों के हाथ बंध गए जिससे उन्हें अपने कारोबार का विस्तार करने का मौका नहीं मिला। इसलिए इसके नीति निर्माताओं द्वारा यह महसूस किया गया कि इस अधिनियम में कुछ छूट मिलनी चाहिए जिससे देश में औद्योगीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास को गति मिल सके।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999

विदेशी मुद्रा प्रबंधन विधेयक (फेमा) को भारत सरकार द्वारा 4 अगस्त, 1998 को संसद में पेश किया गया था। विधेयक का उद्देश्य विदेशी व्यापार से संबंधित कानून में संशोधन के जरिए इसे मजबूत करने के साथ विदेशी व्यापार तथा भुगतान की सुविधा को सरल बनाना था। इसके साथ में इसका लक्ष्य भारत में व्यवस्थित विकास और विदेशी मुद्रा बाजार का रखरखाव करना था।

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के विभिन्न उद्देश्यों के बीच, इसका एक महत्वपूर्ण लक्ष्य विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी कानूनों का संशोधन और एकीकरण करना है। इसके अलावा फेमा का लक्ष्य देश में विदेशी भुगतान और व्यापार को बढ़ावा देना है। विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) का एक अन्य महत्वपूर्ण मकसद भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रखरखाव और सुधार को प्रोत्साहित करना है।

फेमा की विशेषताएं

विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन निम्नवत है:

  1. यह पूर्णरूप से चालू खाते की परिवर्तनीयता के अनुरूप है और इसमें पूंजी खाते के लेन-देन हेतु प्रगतिशील उदारीकरण के प्रावधान हैं।
  2. इसकी आवेदन प्रक्रिया बहुत पारदर्शी है और इसमें विदेशी मुद्रा के अधिग्रहण/ जमाखोरी पर रिजर्व बैंक या भारत सरकार के निर्देश बिलकुल स्पष्ट हैं ।
  3. यह विदेशी मुद्रा के लेनदेन को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करता है: पूंजी खाता और चालू खाता लेनदेन।
  4. यह भारत में रहने वाले एक व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह भारत के बाहर संपत्ति को खरीद सकता है मालिक बन सकता है और उसका मालिकाना हक़ भी किसी और को दे सकता है (जब वह विदेश में रहता था)I
  5. इस अधिनियम एक सिविल कानून है और अधिनियम के उल्लंघन के मामले में असाधारण मामलों केवल गिरफ्तारी हो सकती है।
  6. फेमा, भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिक पर लागू नहीं होता।

फेमा और फेरा के बीच अंतर:

तुलनात्मक बिंदु

फेमा-2000

फेरा-1973

सामग्री

इसके तहत 49 खंड हैं जिनमें से में 12 का संबंध संचालन संबंधी कार्यों से है और बाकि अन्य पैनल संबंधित प्रावधान हैं

इसके तहत 81 खंड थे जिसमें से 32 का संबंध संचालन संबंधी कार्यों से था और बाकि अन्य जुर्माने, अपील आदि से संबंधित थे।

प्रकृति

सामान्यत: यह एक दीवानी कानून (सिविल लॉ) है

इसे एक आपराधिक कानून के जैसा माना जाता था।

प्रयोज्यता (लागू होना)

यह कानून सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा भारत से बाहर की शाखाओं या भारत से नियंत्रित एक व्यक्ति द्वारा संचालित कार्यों पर लागू होता है।

यह भारत में रहने वाले सभी लोगों और शाखाओं व भारतीय तथा भारत के बाहर डील करने वाली सभी एजेंसियों पर लागू होता था।

नई शर्तें

पूंजी खाता लेनदेन, चालू खाते के लेन-देन, नई सेवाओं औऱ शर्तों की शुरूआत करते समय।

इसकी शर्तों के बारे में जानकारी नहीं दी गई है।

फेमा: फेरा के स्थान पर एक प्रमुख कानून:

जैसा कि अधिनियम के ही नाम से ही स्पष्ट है, फेमा के तहत 'मुद्रा प्रबंधन' पर जोर होता है जबकि फेरा के तहत 'मुद्रा विनियमन' या विदेशी मुद्रा नियंत्रण पर होता था। फेरा के अधिकतम मामलों में चाहे वो सामान्य हों या विशेष, रिजर्व बैंक की अनुमति प्राप्त करना जरूरी हो गया था। इस संबंध में फेमा, केवल धारा 3 जो विदेशी मुद्रा आदि से संबंधित है, को छोड़कर एक बड़ा परिवर्तन लाया और इसके अलावा फेमा के किसी अन्य प्रावधान में रिजर्व बैंक की अनुमति प्राप्त करना जरूरी नहीं है।

Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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