भारत में मानसून के पहुँचने को ‘मानसून का आगमन’ और भारत से मानसून के वापस लौटने को ‘मानसून का निवर्तन’ कहा जाता है|
मानसून का आगमन
मानसून के आगमन की ऋतु को ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु’ के नाम से भी जाना जाता है| मानसून भारत के मालाबार तट पर जून के प्रथम साप्ताह में पहुँच जाता है,जहां से यह अरब सागर और बंगाल की खाड़ी नाम की दो शाखाओं में बंट जाता है| अरब सागर शाखा उत्तर की ओर बढ़ती हुई लगभग दस दिन बाद मुंबई तक पहुँच जाती है| बंगाल की खाड़ी शाखा की एक उप-शाखा असम व अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों की ओर चली जाती है और दूसरी उप-शाखा भारत के पूर्वी तट से टकराती है| जून के मध्य तक मानसून मध्य गंगा मैदान तक पहुँच जाता है और आगे बढ़ती हुई मानसूनी हवाएँ जुलाई की शुरुआत तक सम्पूर्ण भारत को अपने प्रभाव में ले लेती हैं|
इस तरह मानसून जून के प्रथम सप्ताह तक प्रायद्वीपीय भारत में प्रवेश करता है और सितंबर के आरंभ में इसका भारत से निवर्तन होने लगता है| अतः जून से सितंबर के मध्य मानसून की अवधि लगभग 100-120 दिनों की होती है|
Image Cortesy:thomsonreuters.com
मानसून के आगमन के कारण अचानक होने वाली वर्षा को ‘मानसून का प्रस्फोट’ कहा जाता है| इसके आगमन के साथ ही वर्षा प्रारम्भ हो जाती है और कई बार तो कई-कई दिनों तक वर्षा लगातार होती रहती है| लेकिन सामान्यतः मानसून में वर्षा रुक-रुक होती है| मानसून के आगमन के दौरान जिन-जिन क्षेत्रों से मानसूनी हवाएँ गुजरती हैं,वहाँ वर्षा होती है| भारत की लगभग दो-तिहाई वर्षा इसी मौसम के दौरान होती है| इसी कारण मानसून के आगमन में कोई भी विचलन भारत की कृषि के साथ-साथ सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर देता है|
भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में लिए क्लिक करें:
भारतीय मानसून को कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
मानसून का निवर्तन
मानसून के निवर्तन की शुरुआत सितंबर के प्रथम सप्ताह से होने लगती है और सर्वप्रथम उत्तर-पश्चिमी भारत, जहाँ मानसून का आगमन सबसे बाद में आता है, से मानसून वापस लौटने लगता है और मध्य सितंबर तक यह राजस्थान, उत्तर-पूर्वी मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों से वापस लौट जाता है| मध्य अक्तूबर तक सम्पूर्ण उत्तरी भारत से मानसून वापस जा चुका होता है और नवंबर के अंत तक सम्पूर्ण भारत मानसून के प्रभाव से मुक्त हो जाता है|
Image Cortesy:britannica.com
मानसून के निवर्तन की ऋतु को ‘उत्तर-पूर्वी मानसून की ऋतु’ के नाम से भी जाना जाता है| लौटते हुए मानसून या मानसून के निवर्तन के दौरान वर्षा नहीं होती है,लेकिन तमिलनाडु के तटीय इलाकों में अपवादस्वरूप लौटते हुए मानसून से वर्षा होती है जबकि मानसून के आगमन की ऋतु या ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून की ऋतु’ में यहाँ वर्षा नहीं होती है| इसका कारण तमिलनाडु के तटीय इलाकों का दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं के समानांतर होना माना गया है|
Comments
All Comments (0)
Join the conversation