संविधान बनने से पहले पारित हुए अधिनियम

Dec 24, 2015, 16:55 IST

भारत में संविधान निर्माण से पहले ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न कानूनों और अधिनयमों को पारित कर दिया था।  इन नियमों पर भारतीय समाज के अलग-अलग हिस्सों से विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आयी थी और भारतीय राजनीतिक प्रणाली तैयार करने में इन कानूनों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, अंत में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त कर दिया और 15 अगस्त 1947 को भारत को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में घोषित कर दिया गया।

भारत में संविधान निर्माण से पहले ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न कानूनों और  अधिनयमों को पारित कर दिया था।  इन  नियमों पर भारतीय समाज के अलग-अलग हिस्सों से विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आयी थी और भारतीय राजनीतिक प्रणाली तैयार करने में इन कानूनों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, अंत में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त कर दिया और 15 अगस्त 1947 को भारत को एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में घोषित कर दिया गया।

संविधान बनने से पहले, पारित हुए अधिनियम

महत्वपूर्ण और परिणामिक अधिनयमों का वर्णन इस प्रकार है:

विनियमन अधिनियम, 1773

  • विनियमन अधिनियम, 1773 यह पहला कानून था जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी की कार्यप्रणाली को विनियमित करने के लिए सबसे पहले लागू किया गया था।
  • गवर्नर जनरल से मिलकर बंगाल में एक मंडल सरकार का गठन किया गया था जिसके हाथों में नागरिक और सैन्य शक्तियां निहित थी।
  • एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीशों को शामिल कर बंगाल में एक सुप्रीम कोर्ट स्थापित किया गया था।

पिट्स इंडिया एक्ट, 1784

यह अधिनियम  कंपनी मामलों पर ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण का एक और विस्तार था।

  • नागरिक, सैनिक और राजस्व मामलों को नियंत्रित करने के लिए नियंत्रण बोर्ड स्थापित किया गया था।
  • नियंत्रण बोर्ड द्वारा मंजूर किये गये निर्देशकों के प्रस्ताव को रद्द या निलंबित करने का कोर्ट के पास कोई अधिकार नहीं रह गया था।

1833 का चार्टर एक्ट (अधिनियम)

अधिनियम का मुख्य केंद्र शक्तियों का विकेंद्रीकरण करना था।

  • बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया था। भारत के पहले गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक थे।
  • बम्बई और मद्रास के गवर्नरों सहित पूरे भारत के विधायी अधिकार दिये गये थे।
  • कंपनी ने एक वाणिज्यिक निकाय का दर्जा खो दिया था और अब यह विशुद्ध रूप से एक प्रशासनिक निकाय बन गयी थी।
  • भारतीय कानूनों को मजबूत और बदलने के लिए करने के लिए एक विधि आयोग की स्थापना की गयी थी।

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के नियमों और आक्रामक क्षेत्रीय नीतियों ने भारत के अभिजात शासक वर्ग के मन में अंसतोष पैदा कर दिया था जिसके परिणामस्वरूप 1857 के विद्रोह अथवा क्रांति का जन्म हुआ था।

  • भारत में ताज (क्राउन) के नाम पर वायसराय के माध्यम से शासन संचालित हो रहा था जो (वायसराय) भारत में क्राउन का प्रतिनिधि होता था। भारत के गवर्नर जनरल का पद वायसराय में तब्दील हो गया था। इस प्रकार, गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग भारत का पहला वायसराय बना था।
  • नियंत्रण बोर्ड और निदेशक मंडल की सारी शक्तियों को समाप्त कर इसकी शक्तियां ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित कर दी गयी थी।
  • उसकी सहायता करने के लिए 15 सदस्यीय भारतीय परिषद के साथ एक राज्य सचिव का नया कार्यालय बनाया गया था।

इंडियन काउंसिल एक्ट, 1861 (भारतीय परिषद अधिनियम)

अधिनियम का प्रमुख ध्यान भारत के प्रशासन पर केंद्रित था। कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीयों को शामिल करने के लिए यह पहला कदम था।

  • अधिनियम में यह प्रावधान था कि कि वाइसराय को विधान परिषद में गैर सरकारी सदस्य के रूप में कुछ भारतीयों को मनोनीत करना होगा।
  • मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी की विधायी शक्तियों को बहाल कर दिया गया था।
  • इस अधिनियम ने बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) और पंजाब में विधान परिषदों की स्थापना करने का अधिकार दिया था।
  • वायसराय के पास यह अधिकार था कि वह आपातकालीन स्थिति में विधान परिषद की सहमति के बिना अध्यादेश जारी कर सकता है।

इंडियन काउंसिल एक्ट, 1892 (भारतीय परिषद अधिनियम, 1892)

  • केंद्र और प्रांतीय विधान परिषदों में एक बड़ी संख्या में गैर सरकारी सदस्यों की की वृद्धि की गई थी।
  • विधायिका के कार्यों में वृद्धि की गयी थी जिससे सदस्यों को बजट से संबंधित मामलों पर सवाल पूछने या चर्चा करने का अधिकार मिल गया था।

इंडियन काउंसिल एक्ट, 1909 ((मॉर्ले-मिंटो सुधार)

  • केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में सदस्यों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हो गयी थी।
  • वायसराय और राज्यपालों की कार्यकारी परिषद में भारतीयों संस्था को शामिल किया गया था। एक कानूनी सदस्य के रूप में सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यकारी परिषद में शामिल हो गए थे।
  • इसने मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन की शुरुआत की थी।

भारत सरकार का अधिनियम, 1919

  • इस अधिनियम को मोंटेग- चेम्सफोर्ड सुधारों के रूप में जाना जाता है।
  • अधिनियम ने केंद्र में द्विसदनीय विधायिकाओं की स्थापना की जिसमें दो सदन शामिल थे-  राज्यों की परिषद (ऊपरी सदन) और केन्द्रीय विधान सभा (निचला सदन)।
  • केंद्रीय और प्रांतीय विषयों का सीमांकन और बटवारा हो गया था।
  • आगे चलकर प्रांतीय विषयों को स्थानांतरित विषय और आरक्षित विषयों में विभाजित कर दिया गया था, इसमें विधान परिषद का कोई सीधा दखल नहीं था। इसे द्वैध शासन प्रणाली के रूप में जाना जाता था।
  • पृथक निर्वाचन का सिद्धांत आगे चलकर सिख, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-भारतीय और गोरों में विस्तारित हो गया था।
  • इस अधिनियम ने दस साल के बाद अधिनियम के काम-काज की रिपोर्ट देने के लिए एक वैधानिक आयोग की नियुक्ति प्रदान की थी।

भारत सरकार का अधिनियम, 1935

  • केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों को संघीय सूची, प्रांतीय सूची और समवर्ती सूची के संदर्भ में विभाजित कर दिया गया था।
  • प्रांतों में द्वैध शासन को समाप्त कर दिया गया था।
  • तबादले और आरक्षित विषयों के साथ द्वैध शासन को केंद्र में अपनाया गया था। (जैसे रक्षा , जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन आदि के रूप में)
  • बंगाल, बम्बई, मद्रास, बिहार, असम और संयुक्त प्रांत की विधायिका को द्विसदनीय  बनाया गया था। द्विसदनीय विधायिका में एक विधान परिषद और विधान सभा शामिल रहती थी।
  • पृथक निर्वाचन के सिद्धांत का विस्तार दलित वर्गों, महिलाओं और मजदूरों में हो गया था।
  • भारतीय रिजर्व बैंक के गठन का अधिकार प्रदान किया गया था।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

  • भारत की स्वतंत्रता के संबंध में 3 जून 1947 को एक अधिनियम ने भारत के लॉर्ड माउंटबेटन योजना को औपचारिक रूप दिया था।
  • इस अधिनियम से भारत में ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया था और 15 अगस्त 1947 से इसके प्रभावी होने के साथ ही भारत स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के रूप में घोषित हो गया था।
  • भारत का विभाजन दो भागों मे हो गया था जिनमें एक का नाम भारत और दूसरे का नाम पाकिस्तान था।
  • वायसराय के कार्यालय को समाप्त कर दिया गया था और अब प्रत्येक राज्य में एक गवर्नर जनरल की नियुक्त होनी थी।
  • दो उपनिवेशों या देशों की संवैधानिक सभाओं को उनके संबंधित प्रदेशों के लिए कानून बनाने  के अधिकार प्रदान किये गये थे।
  • रियासतें दो उपनिवेशों अथवा देशों में से कहीं भी शामिल होने के लिए स्वतंत्र थी या स्वयं में स्वतंत्र बनी हुयी थी।
Hemant Singh is an academic writer with 7+ years of experience in research, teaching and content creation for competitive exams. He is a postgraduate in International
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