ऐसा माना जाता है कि भारत में पहली बार परिवहन के लिए पहिये का इस्तेमाल 4000 साल पहले किया गया था. लेकिन सड़कों पर चलने वाले मोटरकार या अन्य वाहन में पहली बार पहियों का इस्तेमाल 18वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुआ था. हालांकि पूरी दुनिया में ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के निर्माण के लिए 14वीं शताब्दी के शुरुआत से ही कोशिश की जाती रही है और इटली के कई नागरिकों ने हवा से चलने वाली कार के निर्माण की दिशा में कोशिश भी की थी, जिनमें लियोनार्दो द विंची का नाम प्रमुख है. लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में पहली मोटरकार कब चली थी और उसके मालिक कौन थे? यदि आप इस प्रश्न के उत्तर से अनभिज्ञ हैं तो इस लेख को पढ़ने के बाद अवश्य जान जाएंगे कि भारत में पहली मोटरकार कब चली थी और उसके मालिक कौन थे.
दुनिया की पहली मोटरकार
1705 ईस्वी में जेम्स वाट द्वारा भाप इंजन के आविष्कार के बाद ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के निर्माण को गंभीरता से लिया गया. 1769 में फ्रांसीसी नागरिक निकोलस जोसेफ कुगनोट ने भाप से चलने वाली एक तिपहिया वाहन का निर्माण किया था, जिसे दुनिया की पहली मोटरगाड़ी की संज्ञा दी जाती है.
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मोटरकार उद्योग का विकास
1878 में कार्ल बेंज और गोटलिब डेमलर ने जर्मनी में मोटरकार उद्योग की नींव रखी थी, जो आज भी विश्वप्रसिद्ध है. बेन्ज़ ने 1885 में पेट्रोल इंजन का आविष्कार किया था और एक साल बाद डेमलर ने स्वतः डिजाइन किए गए मोटर द्वारा संचालित एक कार का निर्माण किया था. 1887 में अमेरिका में रैनसम ओल्ड्स ने भाप से चलने वाली कारों का निर्माण किया था. 1890 में दो फ्रांसीसी नागरिकों पैनहार्ड और लेवसर ने डेमलर इंजन से चलने वाले मोटरकार का निर्माण कार्य शुरू किया था.
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1892 में अमेरिका में चार्ल्स डूरेया ने पेट्रोल इंजन से चलने वाली मोटरकार का निर्माण किया था. 1898 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका में मोटरकार निर्माता कंपनियों की संख्या 50 थी जो 1908 तक बढ़कर 241 हो गई थी. उसी वर्ष हेनरी फोर्ड नामक कंपनी ने विभिन्न पुर्जों को आपस में जोड़कर (assembly-line style) मोटरकार का उत्पादन करना शुरू किया, जिससे मोटरकारों के निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव हुआ. बाद में हर्बर्ट ऑस्टिन और विलियम मॉरिस ने ब्रिटेन में इसी प्रणाली की शुरूआत की थी.
भारत में चलने वाली पहली मोटरकार
भारत में अपनी उपस्थिति दर्ज करने से पहले ही भाप और गैसोलीन दोनों से संचालित मोटरकारों का विकास हो चुका था. ऐसा कहा जाता है कि 1894 में मद्रास के माउंट रोड पर कुछ ही समय के लिए एक कार को चलते हुए देखा गया था, लेकिन इस घटना की पुष्टि हेतु आवश्यक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं. भारत में पहली मोटरकार के चलने के संबंध में जो साक्ष्य उपलब्ध हैं, उनके अनुसार भारत में पहली मोटरकार 1897 में कलकत्ता में चली थी और इस मोटरकार के मालिक मुंबई के क्रोम्पटन ग्रीवेस (Crompton Greaves) कंपनी के मालिक मिस्टर फोस्टर थे. इसके बाद 1898 में मुंबई में चार मोटरकार खरीद कर लाई गई थी, जिनमें से एक मोटरकार जमशेदजी टाटा की थी, जबकि अन्य तीन मोटरकार भी पारसियों की थी. इसी साल भारत में पहली बार हवा भारी हुई टायरों का आगमन हुआ था, क्योंकि डनलप नामक कंपनी ने बंबई में अपना एक कार्यालय खोला था.
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मद्रास में नियमित रूप से मोटरकार के उपयोग के संबंध में पहली आधिकारिक तारीख 1901 की है. इस कार के मालिक “पैरी एंड को” कंपनी के निदेशक ए. जे. यॉर्क थे. वह अपनी मोटरकार से प्रतिदिन बेंस गार्डन, अड्यार से ब्लैक टाउन में स्थित अपनी कंपनी “पैरी एंड को” के कार्यालय में आते थे. दक्षिण भारत की पहली पंजीकृत कार एमसी-1 के मालिक मद्रास रेलवे बोर्ड के तत्कालीन सचिव फ्रांसिस स्प्रिंग थे, जो 1904 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष और मद्रास हार्बर के मालिक बन गए थे. मद्रास में भारतीय स्वामित्व वाली पहली मोटरकार एमसी-3 थी, जिसके मालिक पेशे से इमारतों के ठेकेदार टी. नम्बेरूमल चेट्टी थे.
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