जेनेरिक दवाएं क्या होतीं हैं और ये सस्ती क्यों होती हैं?

May 30, 2017, 15:17 IST

जेनेरिक दवा या ‘इंटरनेशनल नॉन प्रॉपराइटी नेम मेडिसिन’ भी कहते हैं, जिनकी निर्माण सामग्री (ingredients) ब्रांडेड दवाओं के समान होती है. साथ ही ये दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)की ‘एसेंशियल ड्रग’ लिस्ट के मानदंडों के अनुरूप होती हैं.जेनेरिक दवाओं की खपत कुल दवा बाजार की तुलना में अभी 10 से 12 फीसदी ही है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, डॉक्टर्स अगर मरीजों को जेनेरिक दवाएं लिखें तो विकसित देशों में स्वास्थ्य खर्च 70% और विकासशील देशों में इससे भी ज्यादा कम हो सकता है. जेनेरिक दवाओं की खपत कुल दवा बाजार की तुलना में अभी 10 से 12 फीसदी ही है. मुनाफा, कमीशन और उपहार के लालच में दवा कंपनियां, मेडिकल स्टोर्स और डॉक्टर कोई भी नहीं चाहता कि जेनेरिक दवाओं की मांग बढ़े. आज बाजार में लगभग हर तरह की जेनेरिक दवाएं उपलब्ध हैं, जिनके दाम ब्रांडेड दवाओं से बहुत कम हैं जिसके कारण ये दवाएं गरीब तबके के लोगों द्वारा आसानी से खरीदी जा सकतीं हैं.

जेनेरिक दवा किसे कहते हैं-

जेनेरिक दवा या ‘इंटरनेशनल नॉन प्रॉपराइटी नेम मेडिसिन’ भी कहते हैं, जिनकी निर्माण सामग्री (ingredients) ब्रांडेड दवाओं के समान होती है. साथ ही ये दवाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)की ‘एसेंशियल ड्रग’ लिस्ट के मानदंडों के अनुरूप होती हैं.

जेनेरिक दवाओं को बाजार में उतारने के लिए ठीक वैसे ही अनुमति और लाइसेंस लेना होता है, जैसा कि ब्रांडेड दवाओं के लिए जरूरी होता है. ब्रांडेड दवा की ही तरह जेनेरिक दवाओं को गुणवत्ता मानकों की तमाम प्रक्रियाओं से गुजरना होता है.

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किसी एक बीमारी के इलाज के लिए तमाम तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार किया जाता है जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दवा की शक्ल दे दी जाती है. इस साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है. कोई इसे महंगे दामों में बेचती है तो कोई सस्ते दामों पर .लेकिन इस साल्ट का जेनेरिक नाम साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान रखते हुए एक विशेष समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है. जेनेरिक दवा का नाम पूरे विश्व में सिर्फ एक ही होता जैसे- बुखार में काम आने वाली पैरासिटामॉल की टेबलेट हर कंपनी अलग-अलग नामों से बनाती है, लेकिन यदि यह जेनेरिक होगी तो इस पर हर देश में सिर्फ 'पैरासिटामॉल' लिखा होगा.

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जेनेरिक दवाएं सस्ती क्यों मिलती हैं-

ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं वहीं जेनेरिक दवाओं की मनमानी कीमत निर्धारित नहीं की जा सकती. जेनेरिक दवाओं की कीमत को निर्धारित करने में सरकार का हस्तक्षेप होता है.  

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आपका डॉक्टर आपको जो दवा लिखकर देता है उसी साल्ट की जेनेरिक दवा आपको बहुत सस्ते में मिल सकती है. महंगी दवा और उसी साल्ट की जेनेरिक दवा की कीमत में कम से कम पांच से दस गुना का अंतर होता है. कई बार जेनरिक दवाओं और ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में 90% तक का भी फर्क होता है.

जेनेरिक दवाएं इसलिए सस्ती होती हैं क्योंकि इन्हें बनाने वाली कंपनियों को अलग से अनुसन्धान और विकास के लिए प्रयोगशाला बनाने की जरुरत नही पड़ती है. इसके अलावा जेनेरिक दवा निर्माताओं के बीच प्रतिस्पर्धा होती है जिसके कारण भी दाम कम हो जाते हैं और सबसे बड़ा कारण यह है कि जेनरिक दवा बनाने वाली कम्पनियाँ अपनी इन दवाओं का विज्ञापन नही देती हैं जिसके कारण उनकी लागत बहुत कम हो जाती है और लोगों को सस्ते दामों पर ये दवाएं मिल जातीं हैं.

जेनेरिक दवाएं बिना किसी पेटेंट के बनाई और वितरित की जातीं हैं. जेनेरिक दवा के बनाने की विधि  का पेटेंट हो सकता है लेकिन उसके मैटिरियल का पेटेंट नहीं किया जा सकता. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से बनी जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी ब्रांडेड दवाओं से कम नहीं होती और ना ही ये कम असरदार होतीं हैं. जेनेरिक दवाओं की डोज, उनके साइड-इफेक्ट्स सभी कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसे ही होते हैं. 

ब्लड कैंसर के लिए ग्लाईकेवब्राण्ड की दवा की कीमत महीनेभर में 1,14,400 रूपये होगी, जबकि दूसरे ब्रांड की वीनेटदवा का महीने भर का खर्च 11,400 से भी कम आएगा. इसी प्रकार कोलेस्ट्रॉल घटाने की दवा 'एस्ट्रोवेस्टाटिन' 10 मिलीग्राम में यदि ब्रांडेड में हो तो इसकी सालभर की खुराक करीब 2300 रुपए की है, वहीं इसकी जेनेरिक दवा महज 365 रुपए के आसपास आती है। गरीब हो या अमीर सबके लिए यह अंतर बहुत बड़ा है। गंभीर रोगों की दवाइयों में ज्यादा अंतर पेट से जुड़ी बीमारियों, किडनी, यूरीन, बर्न, दिल संबंधी रोग, न्योरोलॉजी, डायबिटीज जैसी बीमारियों की ब्रांडेड और जेनेरिक दवा की कीमत में कई बार 500 गुना तक का अंतर देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर मिर्गी रोग की एक कंपनी की दवा 75 रुपए में आती है। जबकि उसी कंपनी की जेनेरिक दवा महज पांच रुपए में भी उपलब्ध है।

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इन बीमारियों की जेनेरिक दवा होती है सस्ती-

कई बार डॉक्टर सिर्फ साल्ट का नाम लिखकर देते हैं तो कई बार सिर्फ ब्रांडेड दवा का नाम. कुछ खास बीमारियां हैं जिसमें जेनेरिक दवाएं मौजूद होती हैं लेकिन उसी सॉल्ट की ब्रांडेड दवाएं महंगी आती हैं. ये बीमारियां हैं जैसे- न्यूरोलोजी, यूरिन, हार्ट डिजीज, किडनी, डायबिटीज, बर्न प्रॉब्लम. इन बीमारियों की जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की कीमतों में भी बहुत ज्यादा अंतर देखने को मिलता है.

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जेनेरिक और ब्रांडेड दवा में अंतर कैसे पता करें-

एक ही साल्ट की दो दवाओं की कीमत में बड़ा अंतर ही जेनेरिक दवा का सबूत है. लोगों की सुविधा के  लिए कई मोबाइल ऐप जैसे Healthkart plus और Pharma Jan Samadhan भी मौजूद हैं इनके जरिए आप आसानी से सस्ती दवाएं खरीद सकते हैं.

जेनेरिक दवाओं को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

जब भी किसी डॉक्टर के पास जायें तो उससे जेनेरिक दवाएं लिखने को कहें और मेडिकल स्टोर्स पर भी जेनेरिक दवाओं की ही मांग करें.

जेनेरिक दवाओं के मिलने में मुख्य परेशानी

यदि डॉक्टर्स जेनरिक दवा लिख भी देते हैं तो मेडिकल स्टोर्स वाले किसी भी कंपनी की दवा ये कह कर मरीज को दे देते हैं कि उनके पास लिखी हुई मेडिसिन नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि मेडिकल स्टोर्स को जिस दवा कंपनी से अधिक मार्जन या लाभ मिलता है वे वही कंपनी की दवा मरीज को बेचते हैं. ऐसे में सरकार का यह दायित्व है कि कुछ ब्रांड्स को ही जेनेरिक मेडिसिन बनाने की परमिशन मिलनी चाहिए. कई बार डॉक्टर जो दवा लिखते हैं और मेडिकल स्टोर से जो दवा मरीज को मिलती है उसमें उतनी मात्रा में वैसी कंपोजिशन और साल्ट नहीं होता जितना कहा गया होता है. ऐसे में मरीज को पूरा फायदा नहीं मिलता.

ऐसे माहौल में सरकार को एक कानून बनाकर उसका सख्ती से पालन करवाना चाहिए ताकि डॉक्टर अनिवार्य रूप से मरीजों को जेनरिक दवाएं लिखे और मेडिकल स्टोर्स लोगों को वे दवाएं बिना किसी आनाकानी के उपलब्ध कराएँ.

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