भारत के उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने 11 फरवरी 2014 को भारत-चीन मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान वर्ष का सूत्रपात किया. वर्ष 2014 को भारत और चीन की सरकारों द्वारा मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान वर्ष के रूप में नामित किया गया है.
मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान वर्ष भारत और चीन के बीच अधिक नजदीकी और मजबूत संबंध बनाने में मदद करेगा.
भारत द्वारा चीन के साथ अधिक नजदीकी और मजबूत संबंध बनाने के लिए उठाए गए अन्य कदम
• दोनों अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ने के लिए चीनी कंपनियों को उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाएँ स्थापित करने के हेतु प्रोत्साहित करना. इससे अधिक संतुलित व्यापार भी सुनिश्चित किया जा सकेगा. वर्तमान में दोनों देशों में व्यापार का असंतुलन है, जो चीन के पक्ष में झुका है. एक विचार, जिस पर सजगतापूर्वक विचार किया जा रहा है, भारत में समर्पित चीनी औद्योगिक पार्क निर्मित किए जाने का है.
• भारत के माध्यमिक विद्यालयों में चीनी भाषा की पढ़ाई शुरू करना. हाल ही में देशभर में चुनिंदा सीबीएसई स्कूलों में पढ़ाने के लिए 22 चीनी अध्यापक आए हैं. दोनों देशों के साधारण लोगों के बीच अधिकाधिक अंत:क्रिया (इंटर एक्शन) सशक्ततर समग्र द्विपक्षीय संबंधों की एक अनिवार्य शर्त है. अधिक पर्यटन, छात्रों का अधिकाधिक आदान-प्रदान और विश्वविद्यालयों तथा चिंतन-समूहों (थिंक टैंक्स) के बीच अधिक अंत:क्रिया एक-दूसरे के बारे में और साथ ही विश्व में उनके संबंधित स्थानों के बारे में बेहतर समझ-बूझ विकसित करने में दोनों देशों की मदद करेगी.
• वार्षिक कार्यक्रम, जिसमें एक देश के 100 युवा लोगों का एक समूह दूसरे देश के दौरे पर होगा, इस पहल का एक अन्य उदहारण है.
• 'भारत की झांकियाँ' चीन में भारतीय संस्कृति को उजागर करने वाला कार्यक्रम है.
• अक्तूबर 2013 में भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह चीन के दौरे पर गए थे. ये उच्चस्तरीय बैठकें द्विपक्षीय संबंध और मजबूत बनाने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिए आगामी वर्षों में दोनों देशों के बीच उच्चस्तरीय आदान-प्रदान जारी रखना अनिवार्य है. नेतृत्व के स्तर पर रणनीतिक संवाद बढ़ाना रणनीतिक और सहकारितापूर्ण साझेदारी को एक स्वस्थ संवेग प्रदान करता है.
भारत और चीन के बीच सशक्ततर संबंध स्थापित करना क्यों अनिवार्य है?
इस तरह के कार्यक्रम भारत और चीन दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि दोनों देश :
• प्राचीन सभ्यताएँ हैं. दोनों देशों को जोड़ने वाले प्राचीन 'रेशम मार्ग' ने माल और वस्तुओं के आदान-प्रदान में ही मदद नहीं की, बल्कि विचारों, मूल्यों और दर्शनों का विनिमय बढ़ाने में भी योगदान किया.
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