भारत ने रचा इतिहास, चांद पर Chandrayaan-3 की दस्तक

आज पूरी दुनिया की नजरें भारत पर टिकी हुई थी, भारत आज अपने चंद्रयान-3 मिशन के विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करा कर इतिहास रच दिया है. यहां देखें लेटेस्ट अपडेट.  

Bagesh Yadav
Aug 23, 2023, 18:13 IST
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आज पूरी दुनिया की नजरें भारत पर टिकी हुई थी, भारत आज अपने चंद्रयान-3 मिशन के विक्रम लैंडर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करा कर इतिहास रच दिया है. विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग के साथ भारत दुनिया में ऐसा करने वाला पहला देश बन गया है.

यहां देखें चंद्रयान-3 के लैंडिंग का लाइव टेलीकास्ट:

Chandrayaan-3 Mission Soft-landing LIVE Telecast

चंद्रयान-2 मिशन के साथ भारत ने पहले भी यह प्रयास किया था, लेकिन उस समय विक्रम लैंडर की मून के साउथ पोल पर हार्ड लैंडिंग हुई थी. इस बार इसरो किसी भी स्थिति से निपटने की तैयारी कर रखा है.

चंद्रयान-3 की लैंडिग ऐसे देखें लाइव:

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर की लैंडिंग आज शाम लाइव प्रसारित की गयी. इसका प्रसारण आज शाम 5:20 से ही शुरू कर दी गयी थी. आप सभी विक्रम लैंडर की चांद पर लैंडिंग इसरो के ऑफिशियल वेबसाइट से देश सकते है. इसके अतिरिक्त आप मोबाइल पर यूट्यूब पर भी इसका लाइव टेलीकास्ट देश सकते है.    

चंद्रयान-3 की टाइम लाइन आप इस ऑफिसियल लिंक के माध्यम से देख सकते है.

  LVM3-M4-Chandrayaan-3 Mission Time line 

लैंडिंग के अंतिम 20 मिनट है चुनौतीपूर्ण:

Chandrayaan-3 के विक्रम लैंडर का अंतिम 20 मिनट काफी महत्वपूर्ण और चुनौती भरा था. इसरो ने बताया कि इसके लिए सभी सिस्टम को समय-समय पर चेक किया जा रहा था. साथ ही इसरो ने बताया कि 23 अगस्त चंद्रयान-3 मिशन के चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए सही है.    

ये है चंद्रयान -3 के लैंडिंग के चार फेज:

लैंडिंग से पहले चंद्रयान -3 मिशन के आखिरी क्षणों में "15 मिनट का टेरर" (15 minutes of terror) में चार फेज शामिल हैं:

1. रफ ब्रेकिंग फेज: इस चरण के दौरान, सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर का क्षैतिज वेग लगभग 6,000 किलोमीटर प्रति घंटे से कम होकर शून्य के करीब होना चाहिए. 

2. एटीट्यूड होल्डिंग फेज: चंद्रमा की सतह से लगभग 7.43 किलोमीटर की ऊंचाई पर, लैंडर 3.48 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर स्थिति में झुक जाएगा. 

3. फाइन ब्रेकिंग फेज: यह फेज लगभग 175 सेकंड तक चलेगा, इस दौरान, लैंडर लैंडिंग क्षेत्र तक क्षैतिज रूप से लगभग 28.52 किलोमीटर की यात्रा करेगा, साथ ही ऊंचाई लगभग 1 किलोमीटर कम हो जाएगी. चंद्रयान-2 ने एटीट्यूड होल्ड और फाइन-ब्रेकिंग फेज के बीच कंटोल खो दिया था.

4. टर्मिनल डीसेंट: यह लैंडिग का आखिरी फेज है जब पूरी तरह से लंबवत लैंडर को चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए तैयार होगा. 

विशेष क्लब में शामिल हुआ भारत:

चंद्रयान-3 मिशन 2019 के चंद्रयान-2 मिशन का अनुवर्ती है, चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. मिशन सफल होते ही भारत उन देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया जो चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में कामयाब रहे हैं.  

लैंडिंग की क्या थी चुनौतियाँ?

दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग के लिए वहां का उबड़-खाबड़ क्षेत्र सबसे बड़ी जटिलताओं में से एक थी. इसरो वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने समायोजन किया था ताकि विक्रम लैंडर लैंड कर सके. इसको देखते हुए इसरो ने संभावित लैंडिंग क्षेत्र का विस्तार भी किया था.

साथ ही अतीत से सीखते हुए, इसरो ने चंद्रयान -3 लैंडर में काफी बदलाव किया है. लैंडिंग विफलता की संभावना को कम करने के लिए इसमें सेंसर और प्रणोदन प्रणाली को भी बेहतर किया गया था.     

भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह मिशन?

दिलचस्प बात यह है कि Luna-25 का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने में कामयाब नहीं हो पाया था, जो दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला मिशन होता. लेकिन अब चंद्रयान-3 ने इतिहास रच दिया है.

कितना रहस्यमयी है चांद का दक्षिणी ध्रुव?

दुनिया के देशों द्वारा अब तक चांद पर भेजे गए सभी मिशन चांद के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में लैंड हुए है. यहां की जमीन दक्षिणी ध्रुव की तुलना काफी सपाट है इसलिए इन क्षेत्रों में लैंडिंग आसान होती है. 

इसकी तुलना में चांद का दक्षिणी ध्रुव की जमीन काफी ऊबड़-खाबड़ है, साथ ही यहां कई ज्वालामुखी भी है. इस क्षेत्र में सौरमंडल का सबसे पुराना इंपैक्ट क्रेटर भी है जो क़रीब ढाई हज़ार किलोमीटर चौड़ा और 8 किलोमीटर गहरा है.

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग हमेशा से ही वैज्ञानिकों के लिए चुनौती भरा रहा है. अभी तक कोई भी देश यहां कोई भी लैंडर नहीं उतार सका है. भारत के पास इतिहास रचने का यह सुनहरा मौका है.  

अंधेरे में डूबा है यह क्षेत्र:

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती है, यह क्षेत्र हमेशा ही अधेरें में डूबा रहता है. भारत का यह मिशन इसरो के साथ-साथ दुनिया के अन्य देशों के लिए भी महत्वपूर्ण है.   

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पर सूरज क्षितिज के नीचे या हल्का सा ऊपर रहता है. इस क्षेत्र में सूरज की थोड़ी ही रोशनी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचती है इसलिए उन दिनों में तापमान 54 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

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