एक कल्याणकारी देश होने के नाते भारत 1.2 अरब लोगों का घर है और इस संदर्भ में जन कल्याण शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो जाता है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रहन– सहन के सभ्य मानक आदि प्रदान करने में सरकार की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती.
स्वच्छ भारत अभियान केंद्र सरकार का ऐसा ही एक कार्यक्रम है जिसके तहत देश की गलियों, सड़कों और संरचनात्मक ढांचों की सफाई के लिए 4041 वैधानिक शहरों और कस्बों को कवर किया जा रहा है. इस अभियान का उद्देश्य 2 अक्टूबर 2019 तक 'स्वच्छ भारत' के विजन को पूरा करना है. इस मिशन के लिए 62009 करोड़ रुपए के निवेश की कल्पना की गई है.
स्वच्छ भारत उपकर
मिशन के वित्तपोषण के लिए सरकार ने 6 नवंबर 2015 को सभी करयोग्य सेवाओं पर 0.5% की दर से स्वच्छ भारत उपकर लगाने की अधिसूचना जारी की थी. यह कर 15 नवंबर 2015 से प्रभावी हो गया है.
यह ऐसा उपकर है जो वित्त अधिनियम 2015 के छठे अध्याय के प्रावधानों के अनुसार लगाया जाएगा और जमा किया जाएगा. प्रभावी रूप से सेवा कर और स्वच्छ भारत उपकर की नई दर 14.5% होगी.
यह उपकर सेवा कर से स्वतंत्र होगा और सरकार को इसका भुगतान किया जाएगा. इसके लिए चालान में अलग से इसे लगाने की जरूरत होगी, लेखा पुस्तकों में इसका हिसाब अलग से लिखा जाएगा और अलग लेख कोड के साथ इसका भुगतान भी अलग किया जाएगा. इस संबंध में अधिसूचना जल्द ही जारी की जाएगी. इससे साल 2015 के बाकी बचे समय के लिए 3800 करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 2015– 16 के पूर्ण वित्त वर्ष में करीब 10,000 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है.
उपकर क्या है ?
उपकर एक प्रकार का कर होता है जिसे खास उद्देश्य जैसे शिक्षा आदि के लिए लगाया जाता है. साल 2011 में भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले के अनुसार यह एक प्रकार की फीस है न कि कर. संविधान के अनुच्छेद 270 में इसे लगाए जाने का वैध प्रावधान दिया गया है.
उपकर संसद द्वारा बनाए गए एक कानून के तहत विशिष्ट प्रयोजनों के लिए लगाया जाता है. इसे केंद्र सरकार लगाती है और इसे जमा भी केंद्र सरकार ही करती है. यह भारत के समेकित निधि का हिस्सा नहीं है. इसके अलावा उपकर से प्राप्त धन केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के विभाज्य पूल का हिस्सा नहीं बनाता.
नमक, चीनी, चाय, कॉफी, रबड़ आदि जैसी कई वस्तुओं पर उपकर इनके संबंधित बाजारों, उद्योगों और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए लगाया गया है. साल 2013–14 में इनका संग्रह दस खरब रुपयों (एक ट्रिलियन रुपये) से भी अधिक या सकल कर राजस्व का 13.14% का था.
स्वच्छ भारत उपकर पर बहस
बीमारों की घटनाओं में बढ़ोतरीः 120 करोड़ लोगों की आबादी वाला देश ज्यादातर गंदे परिवेश का सामना करता है जिसकी वजह से मलेरिया, डेंगू, डायरिया, पीलिया, हैजा आदि जैसी बीमारियां होती हैं. इससे उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय भी जुड़ा है. भारत सरकार के अनुमानों के अनुसार स्वास्थ्य के क्षेत्र में होने वाला खर्च सालाना 6700 करोड़ रुपयों से भी अधिक है. स्वच्छ भारत अभियान के लिए अधिक आवंटन के जरिए सभी के लिए लाभ के साथ इनमें से कई बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है.
राजकोषीय बोझ में बढ़ोतरीः सामाजिक क्षेत्र में बढ़े व्यय और जन कल्याण की प्रतिबद्धता ने सरकार पर राजकोषीय बोझ को बढ़ा दिया है. इसलिए जन कल्याण के संदर्भ में देखने पर उपकर से प्राप्त राजस्व महत्वपूर्ण हो जाता है.
स्वच्छ भारत उपकर के खिलाफ तर्क
सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफः उपकर या अधिभार के जरिए प्राप्त होने वाले राजस्व को केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित होने वाले पूल से बाहर रखा जाता है इसलिए स्वच्छ भारत उपकर सहकारी संघवाद की भावना के खिलाफ है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के अनुसार इसमें पारदर्शिता की कमी है और सरकारी खातों में पैसों के खर्च करने की सही रिपोर्ट नहीं की जाती है.
संस्थागत संरचना पर स्पष्टता का अभावः सभी उपकरों के साथ स्वच्छ भारत उपकर से मिलने वाले राजस्व को स्वच्छता में सुधार हेतु सरकारी पहल के लिए निर्धारित किया गया है. हालांकि सड़क उपकर के जैसे ही, संस्थागत संरचना जिसके तहत इन संसाधनों को खर्च किया जाएगा, में स्पष्टता का अभाव है.
बिना लाभ के जीएसटी की ओर कदमः स्वच्छ भारत उपकर लगाकर सेवा कर को बढ़ाकर 14.5% करने को जीएसटी की ओर एक और कदम के तौर पर देखा जा रहा है जहां प्रतिशत 16 से 18 के बीच होने की उम्मीद है. यह बिना जीएसटी लाभों के जीएसटी दरों का भुगतान करने जैसा है. इसके अलावा जबकि 1 अप्रैल 2016 से जीएसटी को लागू किया जाना प्रस्तावित है, ऐसे में स्वच्छ भारत उपकर की जरूरत सवाल पैदा करता है.
परिणामों के साथ उपकर का संबंध संदिग्ध हैः हालांकि विभिन्न प्रकार के उपकरों के माध्यम से संग्रह में साल 2000– 01 के 7.53% के मुकाबले साल 2013–14 में बढ़ोतरी हुई और यह 13.14% हो गया लेकिन विभिन्न कार्यक्रमों के नतीजों के साथ इसके संबंध को समझने की जरूरत है. उदाहरण के लिए, शिक्षा उपकर और माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा उपकर को देश में बेहतर शैक्षणिक सुविधाओं को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से लगाया गया था. लेकिन जैसा कि हम स्थिति देख रहे हैं, साल 2014 में प्राथमिक और मूल स्तर पर पढ़ाई छोड़ने वालों की दर 52% यही दर्शाता है कि नतीजे हमारे उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे.
निष्कर्ष
एक पहल तब तक पहल रहती है जब तक कि देश की आबादी स्वैच्छिक और निःस्वार्थ भाव से इसमें योगदान दे लेकिन जैसे ही इसे अनिवार्य बना दिया जाता है या जनता पर जबरन थोप दिया जाता है, एक अच्छी पहल भी बेकार परियोजना भर रह जाती है.
शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे मूल जन कल्याण कार्यों के लिए भारत में राजस्व की उगाही के लिए वार्षिक बजट है. इसके इस कार्यों हेतु अतिरिक्त उपकर या अधिभार के जरिए धन जुटाया जाता है तो यह सवाल उठता है कि क्या सामान्य बजटीय राजस्व निहित स्वार्थों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है– जो अधिकतम सरकार, न्यूनतम शासन का उदाहरण है.
हमें चालबाजी से कराधान को मुक्त करने की जरूरत है. कुशल वित्तीय प्रबंधन के लिए प्रशासन में सुधार और फालतू खर्च में कटौती की जानी चाहिए.
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