हम अपनी प्रकृति के जितने रहस्यों को जानने की कोशिश करते है उतने ही नए रहस्य हमारे सामने आते जाते है. यह इस बात की ओर इशारा करता है कि प्रकृति में ऐसा बहुत कुछ है जो अभी खोजा जाना बाकी है.
इसी कड़ी में मिजोरम के जंगलों में वैज्ञानिकों ने उड़ने वाली छिपकली की एक नई प्रजाति की खोज की है. खोजी गयी यह नई प्रजाति अन्य छिपकलियों से अलग है. इसका नाम राज्य के नाम पर रखा गया है. यह खोज उत्तर-पूर्वी भारत में छिपे जैवविविधता को दर्शाती है.
In Mizoram a flying gecko species has been newly identified and named the Mizoram parachute gecko, or Gekko mizoramensis the species is one of 14 gecko species known to be able to fly. The newest member of the world's oldest group of lizards, geckos, unravels the hidden and… pic.twitter.com/pWrMZFhYGr
— Jon Suante (@jon_suante) June 15, 2023
'गेको मिजोरमेंसिस' रखा गया है नाम:
इस नई प्रजाति का नाम मिजोरम राज्य के नाम पर ‘मिज़ोरम पैराशूट गेको’ (Mizoram parachute gecko) या ‘गेको मिज़ोरामेन्सिस’ (Gekko Mizoramensis) रखा गया है. हालांकि, नई प्रजातियों का एक नमूना 20 साल से अधिक समय पहले ही एकत्र किया गया था लेकिन इसका विस्तृत अध्ययन अब किया गया है.
इस नई प्रजाति की खोज मिजोरम विश्वविद्यालय और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा की गयी है. इसके बारें में विस्तृत आर्टिकल जर्मन जर्नल ऑफ हर्पेटोलॉजी सैलामैंडरा के मई माह के संस्करण में प्रकाशित किया गया था.
क्या है इसकी खासियत:
1. वैज्ञानिकों के अनुसार, यह छिपकली अन्य फ्लाइंग गेकोस की तरह की ही एक नई प्रजाति है जिसकी लम्बाई लगभग 20 सेंटीमीटर लम्बी होती है. यह एक पेड़ से दूसरे पर ग्लाइडिंग करने में सक्षम है इसलिए इसे उड़ने वाली छिपकली कहा जा रहा है.
2. यह एक रात्रिचर जीव है, यह गेको की उन 14 प्रजातियों में शामिल है, जो हवा में इस तरह ग्लाइड कर सकती है. इस खोज में शामिल वैज्ञानिक मानते है कि पूर्वोत्तर भारत में मौजूद जैवविविधता उतनी प्रसिद्ध नहीं हो पाई है जितना उसे होना चाहिए.
3. इन छिपकलियों में शिकारियों को विचलित करने और अंधेरे में अच्छी तरह से देखने की क्षमता होती है. इनके अन्दर अपनी पूंछ को दोबारा विकसित करने की भी क्षमता होती है. नई खोजी गई गेको प्रजाति 'गेको मिजोरमेंसिस' आनुवंशिक अध्ययन के आधार पर आकार और रंग में अन्य गेको प्रजतियों से अलग होती है.
4. गेको छिपकलियां, अपनी ज्ञात निकटतम प्रजाति गेको पोपेंसिस से अराकान पर्वत द्वारा हो गयी थी. अराकान पर्वत में कई अलग-अलग प्रजाति की छिपकलियां निवास करती है.
5. शोधकर्ताओं की मानें तो भारत के अलावा बांग्लादेश और म्यांमार के आसपास के क्षेत्रों में भी गेको छिपकलियों की प्रजातियाँ हो सकती है. जिस कारण वैज्ञानिकों ने इन पर ज्यादा ध्यान देने की बात कही है.
गेको छिपकलियों के बारें में जानें:
यह छिपकली रेप्टाइल वर्ग (सरीसृप) प्रजाति में आते है. यह प्रजाति अंटार्कटिका को छोड़कर लगभग सभी महाद्वीपों में पाई जाती है. यह प्रजाति वर्षावनों से लेकर रेगिस्तानों ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के लिए अनुकूलित है.
जीवाश्मों और उनके अध्ययन से पता चला है कि शुरूआती गेकोस ने 10 करोड़ साल पहले ही पैरों में चिपकने वाले पैड की तरह संरचना का विकास कर लिया था.
गेको सबसे पुराने जीवित रेप्टाइल वर्ग में से एक है, साथ ही यह भी माना जाता है कि यह सबसे पहले विकसित होने वाले स्क्वामेट्स में से एक है. स्क्वामेट्स समूह में छिपकलियां, सांप और उनके करीबी प्रजाति के जीव शामिल है.
गेको छिपकलियों की 1,200 से ज्यादा प्रजातियां:
गेको छिपकलियों के बारें दिये गए आकड़ों की मानें तो आज गेको छिपकलियों की 1,200 से ज्यादा प्रजातियां है. जो छिपकलियों की सभी ज्ञात प्रजातियों का करीब पांचवां भाग है जिनमें उड़ने वाली गेकोस को काफी विशिष्ट प्रजाति माना जाता है.
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