अदिलाबाद डोकरा और वारंगल की दरियों को जीआई टैग हासिल हुआ

Apr 25, 2018, 16:23 IST

अदिलाबाद डोकरा धातु की काश्तकारी है जिससे अक्सर विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां तैयार की जाती हैं. वारंगल की दरियां इस क्षेत्र के बुनकरों की विशेष पहचान हैं.

Adilabad Dokra and Warangal Durries get GI tag
Adilabad Dokra and Warangal Durries get GI tag

तेलंगाना स्थित अदिलाबाद की डोकरा क्राफ्ट तथा वारंगल की दरियों को हाल ही में जीआई रजिस्ट्री, चेन्नई द्वारा भौगोलिक संकेत (जीआई) पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राप्त हुआ.

अदिलाबाद डोकरा धातु की काश्तकारी है जिससे अक्सर विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां तैयार की जाती हैं. वारंगल की दरियां इस क्षेत्र के बुनकरों की विशेष पहचान हैं. जीआई टैग प्राप्त होने के बाद इस क्षेत्र में कार्यरत कलाकार अपनी कृतियों के लिए उचित दाम भी प्राप्त कर सकेंगे.

अदिलाबाद डोकरा क्राफ्ट के बारे में

•    डोकरा कलाकार वोज समुदाय से आते हैं जिन्हें तेलंगाना में वोजरी अथवा ओटरी के नाम से भी जाना जाता है.

•    अदिलाबाद डोकरा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी प्रत्येक कलाकृति दूसरे से भिन्न होती है.

•    इसकी एक कलाकृति की हूबहू कॉपी बनाना लगभग असंभव है क्योंकि इसमें धातु पर बेहद बारीकी से काम किया गया होता है.

•    कलाकार कांसे की वस्तुओं को पुरातन तरीके से ढाल कर उसे मोम के ढांचे में डालकर तैयार करते हैं जिससे इस कला को और भी अधिक बारीकी हासिल होती है.

•    अदिलाबाद डोकरा की कलाकृतियों में अधिकतर स्थानीय देवताओं, घंटियों, नृत्य करते हुए, आभूषण, छोटी मूर्तियां तथा अन्य साजो-सामान की वस्तुएं शामिल होती हैं.

•    इन कलाकृतियों की विदेशों में काफी मांग है. अदिलाबाद जिले के पांच गावों के में 100 से अधिक परिवार इस काम में आज भी जुटे हैं.

वारंगल की दरियां

•    वारंगल भारत में दरियों की बुनाई के लिए एक विशेष केंद्र के रूप में जाना जाता है.

•    वारंगल की दरियों को इसकी महीन बुनाई के कारण विश्व में विशेष पहचान हासिल है.

•    इस क्षेत्र में सूत की उपज अधिक है इसलिए यहां की दरियां खासकर सूत से बनाई जाती हैं.

•    इस क्षेत्र में लगभग 2000 बुनकर समुदाय हैं जो दरियों की बुनाई का काम करते हैं.

•    यहां बुनी गई दरियां इंग्लैंड, जर्मनी तथा यूरोप व् अफ्रीका के विभिन्न देशों में निर्यात होती हैं.

 

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जीआई टैग क्या है?

•    भौगोलिक संकेत को बौद्धिक संपदा अधिकारों और बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं के अंतर्गत शामिल किया जाता है.

•    भौगोलिक संकेत प्राप्त उत्पाद मुख्यतः एक ऐसा कृषि, प्राकृतिक अथवा विनिर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक वस्तुएँ) होता है, जिसे एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में ही उगाया या बनाया जाता है.

•    जीआई टैग प्रदान करना किसी विशिष्ट उत्पाद के उत्पादक को संरक्षण प्रदान करता है जो कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में उनले मूल्यों को निर्धारित करने में सहायता करता है.

•    यह संकेत प्राप्त होने पर उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता सुनिश्चित होती है.

•    भौगोलिक संकेत का टैग किसी उत्पाद की उत्पत्ति अथवा किसी विशेष क्षेत्र से उसकी उत्पत्ति को दर्शाता है क्योंकि उत्पाद की विशेषता और उसके अन्य गुण उसके उत्त्पति स्थान के कारण ही होते हैं.

•    यह दर्शाता है कि वह उत्पाद एक विशिष्ट क्षेत्र से आता है. यह टैग किसानों और विनिर्माताओं को अच्छे बाज़ार मूल्य प्राप्त करने में सहायता करता है.

•    जीआई टैग प्राप्त कुछ उत्पाद हैं- कांचीपुरम सिल्क साड़ी, अल्फांसो मैंगो, नागपुर ऑरेंज, कोल्हापुरी चप्पल, बीकानेरी भुजिया, इत्यादि.

भारत में जीआई टैग की स्थिति


•    जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है.

•    अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीआई का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं पर समझौते के तहत किया जाता है.

•    वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ था.

•    वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है.

 

 

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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