बेसिक देशों ने जलवायु वित्त लक्ष्य को किया रेखांकित
ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन - 'बेसिक' समूह बनाने वाले देश - ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन में इस ब्लॉक की ओर से एक नए दीर्घकालिक जलवायु वित्त लक्ष्य की मांग कर रहे हैं.

भारतीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने COP26 के उद्घाटन के यह दौरान कहा कि, इस समूह ने विकासशील देशों के लिए वादा किए गए 100 बिलियन डॉलर के जलवायु वित्त समर्थन के वितरण और एक कार्बन बाजार तंत्र, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में निजी क्षेत्र की भागीदारी की सुविधा प्रदान करता है, के लिए समर्थन किया है.
जलवायु संकट पर भारत का रवैया
भारत के पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा प्रस्तुत एक बयान के अनुसार, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन - 'बेसिक' समूह बनाने वाले देश - ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन में इस ब्लॉक की ओर से एक नए दीर्घकालिक जलवायु वित्त लक्ष्य की मांग कर रहे हैं.
जलवायु के संकट पर नेताओं की मुलाकात और 'कयामत की निरंतर आगे बढ़ती घड़ी'
विश्व के नेताओं, पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने सोमवार को स्कॉटिश शहर ग्लासगो में दो सप्ताह के COP26 शिखर सम्मेलन की शुरुआत में लगातार बढ़ते हुए ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए निर्णायक कार्रवाई की गुहार लगाई, जिससे इस ग्रह के भविष्य को खतरा है.
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यादव ने COP26 के उद्घाटन के दौरान यह कहा कि, इस समूह ने विकासशील देशों के लिए वादा किए गए 100 बिलियन डॉलर के जलवायु वित्त समर्थन के वितरण और एक कार्बन बाजार तंत्र, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में निजी क्षेत्र की भागीदारी की सुविधा प्रदान करता है, के लिए समर्थन किया है.
जलवायु वित्त लक्ष्य के बारे में बेसिक देशों का बयान
बेसिक ग्रुप ने यह कहा कि, इसके विचार पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी द्वारा विकासशील देशों और चीन के G77 समूह की ओर से ली गई स्थिति के अनुरूप थे.
वर्ष, 2009 में कोपेनहेगन में COP15 की बैठक में, विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में विकासशील देशों का समर्थन करने के लिए वर्ष, 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की थी. ये फंड सार्वजनिक और निजी, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय, और वित्त के वैकल्पिक स्रोतों सहित विभिन्न प्रकार के स्रोतों से हासिल किये जाने थे.
बेसिक देशों ने यह कहा कि वे वर्ष, 2021 से वर्ष, 2025 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन डॉलर जुटाने के लिए अपने मौजूदा दायित्वों पर विकसित देशों से एक स्पष्ट रोड मैप की उम्मीद कर रहे थे, जोकि वित्त पर एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य है.
बेसिक ब्लॉक ने यह भी कहा कि, यह एक बाजार तंत्र की उम्मीद कर रहा था जो जलवायु संकट के खिलाफ बड़ी लड़ाई में कार्बन बाजारों में निजी क्षेत्र की भागीदारी की सुविधा प्रदान करता है.
जलवायु वित्त की पृष्ठभूमि
कनाडा और जर्मनी के नेतृत्व में संयुक्त रूप से एक वित्त वितरण योजना में पिछले महीने यह कहा गया था कि, विकसित देश केवल वर्ष, 2023 में तीन साल की देरी के साथ 100 बिलियन डॉलर का फंड जुटाने में सक्षम होंगे.
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भारत जैसे विकासशील देशों ने जिम्मेदारी और जलवायु न्याय में समानता की कमी की ओर इशारा किया है क्योंकि विकसित देशों ने आमतौर पर दशकों तक बेलगाम जलवायु प्रतिबंधों के तहत दोहन किया है जब वे विकसित हुए थे.
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