उच्चतम न्यायालय ने 05 जुलाई 2016 को फैसला दिया कि चर्च की अदालतों से तलाक के बारे में दिए गए आदेशों की कोई कानूनी मान्यता नहीं है. मुख्य न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसले में कहा कि जो कोई भी व्यक्ति चर्च से दिए गए तलाक के फैसले के बाद दोबारा विवाह करेगा, ऐसे विवाह को अपराध माना जाएगा.
क्या है मामला-
- न्यायालय में बंगलूरू के एक कैथोलिक वकील क्लैरेंस पाएस ने याचिका दायर की थी.
- याचिका में चर्च की अदालतों से दिए गए तलाक के आदेशों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध किया था.
- याचिका में उनका तर्क था कि कैथोलिक इसाइयों में विवाह और तलाक के मामले चर्च से संचालित होते हैं.
- मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक और चार शादियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट संविधान के दायरे और पूर्व फैसलों के आलोक में विचार कर रहा है.
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