सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि सरकार एक ऐसी नीति बनाए जिसके आधार पर सरकारी कॉलेजों में कोर्स करने के बाद एक निर्धारित अवधि तक ग्रामीण इलाकों के सरकारी अस्पतालों में अपनी सेवाएं देना अनिवार्य किया जाए.
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच जस्टिस एल नागेश्वर राव एवं हेमंत गुप्ता ने कहा कि कि सरकारें प्रत्येक मेडिकल छात्र पर बड़ी रकम खर्च करती है. इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य विशेषज्ञ स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों तक करना है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परा स्नातक एवं किसी तरह का खास कोर्स में दाखिले के समय डॉक्टर जो बांड भरते हैं, उन्हें उनका अच्छी तरह से पालन करना होगा. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार अपने अधिकारों का उपयोग कर डॉक्टरों को अनिवार्य सेवा देने हेतु कह सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़नेवाले छात्रों हेतु एक निश्चित अवधि तक ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी अस्पतालों में सेवा देने का अनिवार्य कानून होना चाहिए.
राज्य की ओर से लगाई गई शर्त एक समान नहीं
यह नियम देश के कई राज्य की ओर से लगाया गया है पर यह शर्त एक समान नहीं है. कई राज्यों में सेवा की यह शर्त दो साल से पांच साल की है. बॉन्ड की राशि भी प्रत्येक राज्य में अलग-अलग है तथा जुर्माने की राशि पचास लाख रुपये तक की है. कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा की अनिवार्य शर्त को तय किया जाए तथा सेवा की अवधि दो साल तय की जाए और जुर्माने की राशि बीस लाख रुपये रखी जाए.
देश के कुछ राज्यों में यह नियम लागू
यह नियम अभी तक आंध्र प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं बंगाल में अनिवार्य है. इन राज्यों में सरकारी कॉलेजों से पढ़नेवाले छात्रों को सरकारी अस्पतालओं, हेल्थ सेंटरों एवं ग्रामीण क्षेत्र में सेवा देना अनिवार्य है.
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