कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों और अन्य प्रवासियों की वापसी हेतु अनुकूल माहौल बनाने के लिए जम्मू कश्मीर विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया. इस मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला पहल की.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला के अनुसार दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विधानसभा को कश्मीरी पंडितों की वापसी हेतु प्रस्ताव पारित करना चाहिए.
मुख्य तथ्य-
- संसदीय मामलों के मंत्री अब्दुल रहमान वीरी ने कश्मीरी पंडितों और अन्य प्रवासियों की वापसी हेतु प्रस्ताव को सदन में लाये जाने की मंजूरी प्रदान की.
- जम्मू कश्मीर के शिक्षा मंत्री नईम अख्तर के अनुसार कश्मीर को बहुसांस्कृतिक, विशिष्ट संस्कृति और विश्वप्रेमी बनाना होगा. इसके लिए कश्मीरी पंडितों और अन्य प्रवासियों की वापसी हेतु प्रक्रिया का शुभारम्भ किया जाना चाहिए.
- विपरीत परिस्थितियों के कारण कश्मीरी पंडितों, कुछ सिखों और मुसलमानों को 27 वर्ष पूर्व घाटी छोड़कर जाना पड़ा.
- 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडितों को पलायन किए हुए 27 वर्ष पूरे हो गए. 19 जनवरी 1990 की रात ही कट्टरपंथियों के जुल्म से तंग 4 लाख कश्मीरी पंडितों ने मजबूरी में अपनी जमीन, अपना घर छोड़ा था.
- फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने भी कश्मीरी पंडितों के इसी दर्द पर एक कविता ट्विटर पर शेयर की है.
कश्मीरी पंडितों का विस्थापन-
- वर्ष 1985 के बाद से ही कश्मीर पंडितों को कट्टरपंथियों और आतंकवादियों से निरंतर धमकियां मिलने लगी. अब से 27 वर्ष पूर्व 19 जनवरी 1990 को कट्टरपंथियों ने 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया.
- घाटी में कश्मीरी पंडितों के भयानक दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई.
- उसी दिन 14 सितंबर, 1989 को बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या कर दी गयी.
- 14 सितंबर, 1989 से कश्मीर में शुरू हुआ आतंक का दौर बीते समय के साथ और वीभत्स होता गया.
- बीजेपी प्रदेश उपाध्यक्ष टिक्कू लाल टपलू की हत्या के एक महीने बाद ही सेवानिवृत्त सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गई.
- न्यायाधीश नीलकंठ गंजू ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल बट को मौत की सजा सुनायी थी.
- उसके बाद 13 फरवरी को श्रीनगर टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की निर्मम हत्या कर दी गयी.
- उस दौर में अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई. उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओँ और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की.
- अंत में जान माल के भय से कश्मीरी पंडितों और अन्य प्रवासियों को जम्मू कश्मीर से पलायन करना पड़ा.
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