सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 पर सुनवाई करते हुए इस कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान इस कानून पर रोक लगाने से साफ तौर पर मना कर दिया है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है. इस मामले की सुनवाई अब 22 जनवरी 2020 को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जनवरी के दूसरे हफ्ते तक अपना जवाब दाखिल करने हेतु कहा है.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की खंडपीठ ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 को लागू करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
मुख्य बिंदु:
• सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 को चुनौती देने वाली 59 याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है.
• याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस के नेता जयराम रमेश, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा शामिल हैं.
• ज्यादातर याचिकाओं में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले कानून को संविधान के विरुद्ध बताया गया है.
• अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि ऐसे चार फ़ैसले हैं जिनके अनुसार इस कानून पर रोक नहीं लगाई जा सकती है.
याचिकाकर्ताओं का तर्क क्या है?
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं अधिकतर याचिकाओं में केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए नागरिकता (संशोधन) बिल को असंवैधानिक करार दिया है. याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया है कि ये बिल संविधान के आर्टिकल 14, 21, 25 का उल्लंघन करता है. इसके साथ ही ये बिल भारत की मूल भावना का भी उल्लंघन करता है.
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पृष्ठभूमि
संशोधित नए कानून के मुताबिक धार्मिक प्रताड़ना के चलते 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी जिससे यह कानून बन गया था. नागरिकता (संशोधन) बिल के खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहा है.
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