जर्मनी की जियोमार हेमहोल्त्ज़ सेंटर फॉर ओशियन रिसर्च द्वारा फरवरी 2017 में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव समुद्री जलजीवों पर पड़ रहा है.
इस अध्ययन में पाया गया कि पिछले 50 वर्षों में समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा दो प्रतिशत कम हुई है. परिणामस्वरूप समुद्र में जीवों की मृत्यु हो रही है तथा उनकी संख्या तेज़ी से घट रही है. इससे न केवल समुद्री पारिस्थितिक तन्त्र पर प्रभाव पड़ रहा है बल्कि एक अरब से अधिक लोगों के दैनिक आहार की कमी भी हो रही है.
अध्ययन के मुख्य बिंदु
• समुद्र में निवास कर रहे जीवों विशेषकर मछलियों के लिए ऑक्सीजन का स्तर 5 से 15 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए.
• कुल उत्सर्जित होने वालेकार्बन का 30 प्रतिशत समुद्र द्वारा स्वतः ही सोख लिया जाता है.
• विश्व भर में प्रतिवर्ष लगभग 10 करोड़ मीट्रिक टन मछलियां पकड़ी जाती हैं.
• मनुष्यों द्वारा विश्व भर में 892 प्रजातियों की मछलियों को बतौर आहार खाया जाता है.
• अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार इस सदी के अंत तक समुद्र के ऑक्सीजन स्तर में 7 प्रतिशत तक और गिरावट हो सकती है.
• ऑक्सीजन की कुल गिरावट का 40 प्रतिशत उत्तर व् भूमध्य रेखा पर स्थित प्रशांत महासागर में दर्ज की गयी.
• ऑक्सीजन के बिना समुद्री पानी का स्तर 1960 की तुलना में चार गुना बढ़ा है.
• प्रशांत महासागर के अतिरिक्त आर्कटिक महासागर में भी ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट दर्ज की गयी.
भारत पर प्रभाव
भारत में समुद्री तट रेखा की लम्बाई 7516.6 किलोमीटर है. समुद्र से जुड़े इन क्षेत्रों में लगभग 17 करोड़ लोगों का निवास स्थान है जिनके आहार में समुद्री जीव तथा वनस्पति मुख्य रूप से शामिल है. वे जीवनयापन के लिए पूरी तरह से समुद्र पर निर्भर हैं. जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इन क्षेत्रों में देखा जा सकता है.
मछलियों के लिए युद्ध
अनुसंधानकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि यदि ऑक्सीजन के स्तर में इसी प्रकार कमी होती रही तो समुद्री किनारों पर बसे लोगों के लिए जीवनयापन करना काफी मुश्किल हो जायेगा क्योंकि इन लोगों का मुख्य आहार मछली ही है. मछलियों की संख्या कम होने से ऐसे देशों में आहार के साथसाथ आजीविका का संकट भी आ जायेगा. इन सभी कारणों के कारण अनुसंधानकर्ताओं ने आशंका जताई की अगला भीषण युद्ध मछलियों के लिए भी हो सकता है.
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