उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने ओंगोल नस्ल की गाय को संरक्षित करने का आह्वान किया

May 21, 2019, 15:58 IST

उपराष्ट्रपति ने विजयवाड़ा स्थिति स्वर्ण भारत न्यास में आयोजित एक कार्यक्रम में ओंगोल नस्ल की गाय पर एक विवरणिका भी जारी की. यह विवरणिका 1200 पेजों की है.

Vice President M Venkaiah Naidu calls for protecting Ongole cattle breed
Vice President M Venkaiah Naidu calls for protecting Ongole cattle breed

भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने 20 मई 2019 को ओंगोल नस्ल की गाय को रक्षा करने का आह्वान किया है. उन्होंने कहा कि यह नस्ल पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रही है और हमें इसे बचाने की जरूरत है.

उपराष्ट्रपति ने विजयवाड़ा स्थिति स्वर्ण भारत न्यास में आयोजित एक कार्यक्रम में ओंगोल नस्ल की गाय पर एक विवरणिका भी जारी की. यह विवरणिका 1200 पेजों की है. इसमें साल 1885 से साल 2016 तक पशु इतिहास दिया गया है. पुस्तक में ओंगोल गाय पर किये जाने वाले अनुसंधान को भी शामिल किया गया है.

ओंगोल नस्ल की गाय: ओंगोल पशु आन्ध्र प्रदेश के नेल्लोर कृष्णा, गोदावरी और गुन्टूर जिलों में पाए जाते है. आंध्रप्रदेश के ओंगोल क्षेत्र में उत्पन्न होने के कारण इसे ओंगोल नाम दिया गया है. ओंगोले गाय उचित मात्रा में दूध देती हैं. ये गाये प्रतिदिन 3 लीटर से 8 लीटर तक दूध देती है. ओंगोले नस्ल के जानवरों को बड़े पैमाने पर अमेरिका और ब्राज़ील में निर्यात किया गया है.

भारत में गायों की 37 नस्लें पायी जाती है, जिनमें साहीवाल, गिर, लाल सिंधी, थारपारकर और राठी सर्वाधिक दूध देने वाली नस्लें हैं.

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भारत में पायी जाने वाली गायों की विभिन्न प्रजातियो की सूची इस प्रकार है.

गीर: यह प्रजाति भारत में पायी जाने वाली गाय की प्रजातियों में सबसे अच्छी कोटि की प्रजाति मानी जाती है. यह गुजरात राज्य के गिर वन क्षेत्र और महाराष्ट्र तथा राजस्थान के आसपास के जिलों में पायी जाती है. यह गाय अच्छी दुग्ध उत्पादताकता के लिए जानी जाती है. इस गाय के शरीर का रंग सफेद, गहरे लाल या चॉकलेट भूरे रंग के धब्बे के साथ या कभी कभी चमकदार लाल रंग में पाया जाता है.

साहीवाल: इस गाय को 'रेड गोल्ड' भी कहा जाता है और इसकी पहचान मुख्य रूप से इसके लाल रंग से की जाती है. साहीवाल गाय का मूल स्थान पाकिस्तान में है.

लाल सिंधी: लाल सिन्धी गाय भारत में पाए जाने वाली एक ऐसी नस्ल है जो बहुत अधिक दूध उत्पादन के लिए जानी जाती है. यह मूलतः लाल रंग की होती है और साहीवाल प्रजाति की गायो की तुलना में दूध उच्यतम कोटि की होती है. यह नस्ल मध्यम ऊंचाई की होती है.

राठी: राठी गोवंश राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भागों में पाए जाते हैं. इस नस्ल की गाय अत्यधिक दूध देने के लिये प्रसिद्ध है. गुजरात राज्य में भी राठी गाय बहुत पाली जाती है. यह गाय आमतौर पर भूरे रंग की होती है और इनकी त्वचा पर काले या धूसर रंग के धब्बे होते हैं. ऐसा माना जाता है कि इसका विकास साहीवाल, लाल सिंधी, थारपारकर और धनी के मेल से हुआ है.

थारपारकर: यह प्रजाति सफेद सिंधी", "ग्रे सिंधी" और "थीरी" के नाम से भी जानी जाती है. इस प्रजाति की गायों में गर्मी सहिष्णुता और रोग प्रतिरोधी क्षमता बहुत अधिक होती है. थारपारकर गाय राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर में मुख्य रूप से पाई जाती है. गुजरात राज्य के कच्छ में भी इस गाय की बड़ी संख्या है.

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Vikash Tiwari is an content writer with 3+ years of experience in the Education industry. He is a Commerce graduate and currently writes for the Current Affairs section of jagranjosh.com. He can be reached at vikash.tiwari@jagrannewmedia.com
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