सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुसूचित जाति और जनजाति कानून के तहत अभियुक्त के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आवश्यक है कि जातिसूचक शब्दों का प्रयोग दलित व्यक्ति की उपस्थिति में उसके सामने किया गया हो. अगर उसकी अनुपस्थिति में कोई जातिसूचक शब्दों से उसका अपमान करने की कोशिश करता है तो ऐसी दशा में एससी, एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती. यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने हैदराबाद के एक स्कूल की प्रधानाध्यापिका असमथुनिसा की याचिका पर दिया.
विदित हो कि हैदराबाद पुलिस ने प्रधानाध्यापिका असमथुनिसा और उसके पति मोहम्मद समीउद्दीन के खिलाफ अनुसूचित जाति- जनजाति निवारण अधिनियम की धारा तीन के तहत वर्ष 2006 में एफआईआर दर्ज की थी.
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