प्रख्यात उर्दू साहित्यकार शमीम हनफी को 20 सितम्बर 2015 को भारतीय ज्ञानपीठ ने उनके आवास पर ज्ञानगरिमा मानद अलंकरण पुरस्कार से सम्मानित किया. सम्मान के रूप में उन्हें सरस्वती प्रतिमा, एक रजत प्रशस्ति पत्र और एक शॉल से सम्मानित किया गया. इसके अतिरिक्त अगले एक वर्ष तक उन्हें 11000 रुपए की राशि भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से प्रदान की जाएगी.
इस पुरस्कार की घोषणा वर्ष 2015 के अगस्त माह में आयोजित ‘कविता समय’ नामक कार्यक्रम में की गई थी. कविता समय में हिंदू और उर्दू दोनों साहित्यकारों का कविता पाठ होता है.
हनफी को ‘जदिदियात की फलसफियानी असास’ ‘गजल का नया मंजरनामा’और ‘इंफरादी शउर और इंतजामी जिंदगी’ जैसी अनेक रचनाओं के लिए जाना जाता है.
शमीम हनफी के बारे में
• मूल रूप से सुल्तानपुर के रहने वाले हनफी ने इलाहाबाद से उच्च शिक्षा ग्रहण की. वहां पर उनकी मुलाकात मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी से हुई जिसके बाद बाद उन्होंने गोरखपुरी शैली को अपनी पहचान बनाया.
• विदित है कि ज्ञानगरिमा मानद अलंकरण पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी और यह भारतीय भाषाओं में योगदान देने वाले लेखकों को दिया जाता है.
• उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक संकाय सदस्य के रूप में भी अपनी सेवा दी.
• वर्ष 2012 में उन्होंने मानविकी और भाषा के डीन के पद से इस्तीफा दिया.
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