सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने निर्णय में निरोधात्मक हिरासत (Preventive detention) को नागिरकों की स्वतंत्रता संबंधी मूलभूत अधिकार के खिलाफ बताया. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू, न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएस निज्जर की पीठ ने निरोधात्मक हिरासत का उपयोग अपवाद बताया और उपयुक्त कारण साबित करने के बाद ही ऐसे अपवाद को लागू करने का निर्णय दिया. निर्णय में यह भी बताया गया कि सामान्य परिस्थितियों में संदिग्ध अपराधियों से निपटने के लिए देश के साधारण कानून ही काफी हैं.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू, न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएस निज्जर की पीठ ने 6 अप्रैल 2011 को अपने निर्णय में बताया कि निरोधात्मक हिरासत (Preventive detention) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करता है. हालांकि पीठ ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 (3) बी निरोधात्मक हिरासत को मंजूरी प्रदान करता है, इसलिए यह अवैधानिक नहीं कहा जा सकता.
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) की तीन सदस्यीय पीठ ने तमिलनाडु सरकार द्वारा अप्रैल 2010 में गलत दवाईओं की बिक्री के संबंध में सात लोगों को निरोधात्मक हिरासत (Preventive detention) में रखे जाने के विरुद्ध में दायर याचिका पर यह निर्णय दिया. ज्ञातव्य हो कि मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार द्वारा सात लोगों को निरोधात्मक हिरासत में रखे जाने को सही ठहराया था.
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