भारत के रक्षा मंत्रालय ने उच्च न्यायालय, मुंबई में आईएनएस विक्रांत पर कबाड वाले अपने फैसले को 16 जनवरी 2014 को उचित ठहराया. भारत के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि जहाज ने अपने परिचालन की अवधि पूर्ण कर ली है और इसे संक्षरित करने के बजाय इसे समाप्त करने का निर्णय भारत की नौसेना सेवाओं के सर्वश्रेष्ठ हितों में होगा.
आईएनएस विक्रांत भारत का पहला विमान वाहक पोत है.
विक्रांत का ढांचा (Body) 70 वर्ष पुराना है और इसका परिचालन अस्तित्व बंद हो गया है. इस अवस्था में जहाज की मरम्मत या नवीकरण करना, और इससे इसके रखरखाव में जहाज के लिए आर्थिक रूप से सार्वजनिक धन के रुप में एक भारी व्यय की आवश्यकता है, जिसे रक्षा मंत्रालय के एक हलफनामे में भी उल्लेखित किया गया है. शपथ पत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि भारतीय नौसेना ने जहाज को खड़ा करने और मरम्मत कार्यों पर अभी तक 22 करोड़ रुपए खर्च किए हैं और आज तक आईएनएस विक्रांत को संरक्षित कर बनाए रखा गया गया.
इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि वर्ष 1998 में महाराष्ट्र सरकार ने इसके एक संग्रहालय में तब्दील करने के लिए रक्षा मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया था जो लम्बित है, इस प्रस्ताव में उल्लिखित है कि जहाज को बनाए रखने में काफी मात्रा में धन खर्च किया गया. राज्य सरकार ने कभी भी जहाज के लिए एक वैकल्पिक बर्थ की व्यवस्था नहीं की और न ही जहाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वीकार की और एक संग्रहालय के रुप में तब्दील करने में भी नाकाम रही है.
हलफनामा, पश्चिमी नौसेना कमान के चीफ ऑफ स्टाफ अधिकारी एडमिरल शंकर माथुर द्वारा दायर किया गया था.

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